दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में भाजपा को 31 'आप' को 28 और कांग्रेस को आठ सीटें मिली हैं. अन्य के खाते में तीन सीटें आईं हैं.


दिल्ली में सरकार बनाने के लिए ज़रूरी बहुमत किसी भी दल के पास नहीं है. ऐसे में सवाल है कि संविधान में सरकार बनाने के कौन-कौन से विकल्प हो सकते हैं? बीबीसी ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बात की.दिल्ली में सरकार बनाने के लिए सबसे पहला क़दम ये हो सकता है कि सबसे बड़ी पार्टी की सरकार बनाने की कवायद हो.इसके लिए दिल्ली के उपराज्यपाल सबसे बड़े दल के नेता को बुलाएं और उन्हें अपना बहुमत साबित कर सरकार बनाने के लिए कहें.सबसे ज़्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी  भाजपा यदि यह कहती है कि वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं, तो फिर उपराज्यपाल, जो दूसरा सबसे बड़ा दल है, यानी 'आप' के नेता को बुला सकते हैं.यदि 'आप' भी यह कह दे कि वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं तो दो विकल्प हो सकते हैं.विकल्प


पहला विकल्प यह हो सकता है कि उपराज्यपाल राष्ट्रपति को सिफ़ारिश करें कि दिल्ली में सरकार नहीं बन सकती इसलिए राष्ट्रपति शासन ज़रूरी हो गया है.अब यह उस नेता पर निर्भर होगा कि वह अपनी सरकार में एक दल के लोगों को रखे या दो दल के लोगों को.

हालांकि इस तरह सरकार बनाने की बात पहले कभी नहीं उठी है. हां, जब अंतरिम सरकार बनी थी. इसमें मुस्लिम लीग भी थी और कांग्रेस भी थी.जनसंघ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी उसके सदस्य थे.तो इस तरह से तीन विकल्प हैं. पहला कि कोई दल अपना बहुमत साबित कर सके, चाहे भाजपा हो या ' आप'. दूसरा विकल्प कि अल्पमत सरकार बने.और तीसरा विकल्प यह है कि एक नेता चुना जाए और बिना दल की सरकार बने.सरकार बनाने के लिए ज़रूरी बहुमत किसी दल के पास नहीं है.'दल बदल विरोधी कानून'मौजूदा संख्या में एक स्थिति अगर यह बनती है कि दोनों दल, अगर दूसरे दल से चाहे भाजपा हो, आप या  कांग्रेस के, किसी विधायक को जोड़ती है तो इन पर 'दल-बदल विरोधी कानून' लागू होगा.जब तक विलय न हो इस क़ानून के लागू होने का ख़तरा है.इसमें बस एक अपवाद यही हो सकता है कि अगर दो तिहाई सदस्य दूसरी पार्टी से जुड़ जाएं तब ये स्थिति नहीं आएगी. लेकिन इस स्थिति के आने की संभावना भी नहीं लगती.अगर सरकार नहीं बनती है तो छह महीने के अंदर दोबारा चुनाव कराने होंगे.

मौजूदा परिस्थितियों में इस बात की संभावना ज़्यादा लगती है कि ये चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही कराए जाएं. मगर अंतिम निर्णय चुनाव आयोग का ही होगा. इस दौरान दिल्ली में उपराज्यपाल का शासन रहेगा.

Posted By: Subhesh Sharma