- मंडल में ताइक्वांडो के भीष्म पितामह हैं रेलवे में कार्यरत हरीश बोहरा

- कई खिलाड़ी प्रशिक्षण लेकर देश भर में नाम कर रहे रोशन

बरेली : महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य की भूमिका से हर कोई वाकिफ है. उन्होंने अपने हुनर से अर्जुन व अन्य योद्धाओं को धुरंधर बनाया. ऐसी ही एक मिसाल हैं शहर के न्यू मॉडल कॉलोनी निवासी हरीश वोहरा. जिन्होंने बरेली को ताइक्वांडो से रू-ब-रू कराया. रेलवे में टेक्निीशियन के पद पर कार्यरत हरीश वोहरा अब तक करीब 20 हजार खिलाडि़यों को ताइक्वांडो के गुर सिखा चुके हैं. इतना ही नहीं, उनसे ट्रेनिंग लेकर कई खिलाड़ी नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर भी बरेली का नाम रोशन कर चुके हैं.

39 साल पहले बनाया अखाड़ा

बात है वर्ष 1980 की, जब बरेली मंडल के लिए ताइक्वांडो स्पो‌र्ट्स अंजान था. काफी जद्दोजहद के बाद हरीश ने अपना अखाड़ा बनाया. एक महीने तक किसी ने इस अखाड़े में आकर हुनर सीखने की जहमत नहीं उठाई. फिर हरीश ने गली-गली नुक्कड़ नाटक और खेल प्रदर्शन कर युवाओं को इस खेल के बारे में बताया. धीरे-धीरे युवाओं का रुझान इस ओर बढ़ा और वर्ष 2000 तक उनके अखाड़े में 200 खिलाडि़यों ने प्रवेश लिया. हरीश के अनुसार करीब 20 हजार प्लेयर्स को वह अब तक कोचिंग दे चुके हैं.

हुनर ने दिलाया जॉब

हरीश बताते हैं कि अपने इसी हुनर के दम पर वर्ष 1991 में उन्होंने रेलवे में टेक्नीशियन के पद पर नियुक्ति हासिल की, लेकिन जॉब मिलने के बाद भी खेल से किनारा नहीं किया. जॉब के साथ ही खिलाडि़यों को ट्रेनिंग देने का सिलसिला आज भी जारी है.

रिश्तेदार की बातों से हुए प्रभावित

हरीश कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही खेल के प्रति अधिक लगाव था. उनके एक रिश्तेदार आर्मी में कार्यरत थे जो उन्हें दुश्मन से लड़ने की कहानियां सुनाते थे, इन कहानियों से प्रेरित होकर उनके अंदर कुछ ऐसा करने की ललक उठी कि दूसरे को धूल कैसे चटाई जाए.

मैगजीन में देखा विज्ञापन

हरीश ने बताया कि वर्ष 1975 में एक दिन उनके पिता सुंदर सिंह वोहरा उन्हें हेयर सैलून ले गए. वहां उन्होंने डेस्क पर रखी मैगजीन उठाई, जिसमें बंगलुरु में ताइक्वांडो अखाड़े के मास्टर रघु का आर्टिकल छपा था. जिससे प्रभावित होकर उन्होने आर्टिकल पर दिए गए पते पर तार भेजा वहां से रेस्पांस आया तो मां को बताकर घर से चले गए और पांच वर्ष की कड़ी ट्रेनिंग के बाद वापस शहर लौट कर अपना अखाड़ा बनाया.

तराशी जाती हैं धाकड़ बेटियां

हरीश वोहरा के अखाड़े में प्रवेश करते ही आपको अगर सबसे ज्यादा कोई चीज आकर्षित करेगी तो वह है अखाड़े में लगा बैनर. जिस पर लिखा है वोहरा सर का ताइक्वांडो अखाड़ा यहां तराशी जाती हैं धाकड़ बेटियां.

बेटियां किसी मायने में कम नहीं

हरीश वोहरा ने कहा कि मैंने ही बरेली में ताइक्वांडो की शुरुआत की. अखाड़े में महिला पुरुष और बच्चे सभी ट्रेनिंग लेने आते हैं. कभी भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में कमजोर नहीं लगीं. इसलिए बेटियों को कम कभी नहीं आंकना चाहिए.

Posted By: Radhika Lala