एलडीए की जानकारी में नही कितने हैं mobile towersआसानी से मिल जाती है NOC


भूकम्प की दस्तक ने लखनवाइट्स को हिला कर रख दिया है। संडे को जब लखनऊ थर्राया तो लोगों की दिलों की धड़कनें तेज हो गईं। हाईराइज बिल्डिंग्स का खौफ तो छाया ही था लेकिन घनी आबादी में लगे मोबाइल टॉवर से अब उन्हें जान का खतरा है। यदि भूकम्प आया तो कई घर इन मोबाइल टॉवर के नीचे दब जाएंगे। कई जानें जा सकती हैं। यही वजह रही कि नगर निगम और एलडीए के अधिकारियों के पास ऐसे कई इलाकों से फोन काल्स आईं जहां नए मोबाइल टॉवर लग रहे हैं या फिर पहले से ही लगे हुएहैं। यही नहीं, इन मोबाइल टॉवर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें भी धीरे-धीरे लोगों को बीमार बना रही हैं।
 जिला प्रशासन के पास पहुंची complaint 
सज्जादबाग की दूसरी गली में तीन मंजिला मकान पर मोबाइल टॉवर लगाया जा रहा है। पूरा मोहल्ला इसका विरोध कर रहा है। इसके बावजूद मकान मालिक चंद पैसों के लालच में कई लोगों की जान को खतरे में डाल सकता है। क्षेत्रीय निवासी हैदर मेंहदी ने बताया कि इस मोहल्ले में बच्चों के दो बड़े स्कूल हैं। वहीं कप्तान साहब की ऐतिहासिक मस्जिद है। तमाम स्थानीय निवासियों ने इसके खिलाफ जिला प्रशासन और एलडीए में शिकायत दर्ज कराई है। लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है। संडे को भूकम्प आने के बाद तो यहां हर कोई खौफजदा है। यदि तिमंजले मकान पर घनी बस्ती में मोबाइल टॉवर लग गया तो क्या होगा।
एक मकान, पांच towers
निरालानगर में भी कुछ ऐसा ही मामला है। यहां भी स्थानीय लोगों का आरोप है कि पोस्ट ऑफिस के पास एक मकान पर पांच टॉवर लगे हैं। कई बार लोग एलडीए और नगर निगम में कम्प्लेन दर्ज करा चुके हैं लेकिन आज तक कभी कोई एक्शन नहीं लिया गया। मंगलवार को स्थानीय निवासी फिर नगर निगम में कम्प्लेन करने जा रहे हैं।
मानकों का पालन नहीं
गाइडलाइन के अनुसार सेलफोनटावर से निकलने वाले रेडिएशन की तीव्रता 600 माइक्रोवाट प्रति वर्ग मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। अध्ययन के दौरान भारत में सिग्नल की क्षमता बढ़ाने के लिए कंपनियां 7500 माइक्रोवाट प्रति वर्ग मीटर की तीव्रता से रेडिएशन छोड़ रही हैं। यूएसए में तो एक कंपनी के टावर को ही कई मोबाइल कंपनियां इस्तेमाल करती हैं जबकि यहां तो अब हर मोहल्ले में कई कंपनियों के टावर बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे पॉल्यूशन से पर्यावरण और वनस्पति जीवन भी खतरे में हैंं। वह तमाम पौधे जिनसे विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनाई जाती हैं उनपर भी तरंगों का दुष्प्रभाव पड़ता है।

नगर निगम से इसका कोई लेना-देना नहीं। क्योंकि इसकी अनुमति नगर निगम नहीं देता है। इसकी एनओसी एलडीए देता है।
-प्रताप सिंह भदौरिया,
अपर नगर आयुक्त


Electromagnetic  तरंगें future के लिए खतरा
मोबाइल टॉवर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें फ्यूचर के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं। रिहायशी कालोनी में तेजी से बढ़ रहे मोबाइल टॉवर से यह आशंकाएं मजबूत हो रही है। यह एक ऐसा स्लो प्वाइजन है जो चुपचाप सेहत और लाइफ स्टाइल पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। बीबीडी में फिजिक्स के प्रोफेसर शहंशाह हैदर बताते हैं कि टावर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें निकलती हैं। जब ये हमारे शरीर से टकराती हैं तो दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं। ये थर्मल व नान थर्मल होते हैं। थर्मल प्रभाव टावर के 500 मीटर दायरे में रहने वालों को प्रभावित करता है। इनमें थकावट, मानसिक विचलन, सिर दर्द, रोशनी, व्यवहार में बदलाव जैसे लक्षण उनमें पाए जाते हैं। रेडिएशन ज्यादा होने पर कैंसर व गर्भपात तक का प्रभाव देखा गया। नान थर्मल प्रभाव कोशिका स्तर पर धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाता है.
एनओसी लेनी चाहिए
मोबाइल कंपनी को टावर लगाने के लिए पुलिस टेलीकॉम से एनओसी लेनी चाहिए। जिससे कि वायरलेस डिपार्टमेन्ट और मोबाइल कंपनी की फ्रिक्वेन्सी क्लैश न करें।


ढाई साल पहले चलाया था अभियान
करीब ढाई साल पहले अवैध तरीके से लगे मोबाइल टॉवर को सीज किया गया था लेकिन टेलीकॉम कंपनी$ज हाईकोर्ट से स्टे ले आई थीं। इसके बाद मोबाइल टॉवर पर शिकंजा ढीला पड़ गया। वैसे नियम के मुताबिक एलडीए से स्ट्रक्चरल इंजीनियर भेजा जाता है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही टॉवर की एनओसी दी जाती है। ऐसी कोई सूची नहीं है जिसके आधार पर यह बताया जा सके कि शहर में कितने मोबाइल टॉवर हैं।
एसएन त्रिपाठी
चीफ इंजीनियर, एलडीए


लखनऊ जोन 3 में आता है। आपदा प्रबंधन की दृष्टि से यहां कई खामियां हैं। लोगों में भी जागरूकता नहीं है। अक्सर ऐसे मौके पर लोग घबरा जाते हैं। लातूर भी पहले भूकम्प की दृष्टि से जोन 2 में माना जाता था लेकिन अर्थक्वेक के बाद इसे जोन 4 में शामिल कर लिया गया। सबसे जरूरी है कि मोबाइल टॉवर और हाईराइज बिल्डिंग बनाते समय भूकम्परोधी तकनीक का इस्तेमाल जरूर किया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। प्रशासन को भी लोगों को अवेयर करने के लिए कैम्पेन चलानी चाहिए।
अनुज तिवारी
प्रोजेक्ट हेड
जीएफडीआर

Posted By: Inextlive