ये सफर नहीं, ''Suffer' है

- स्लीपर क्लास की जनरल बोगी से भी ज्यादा बुरी हालत

- पेसेंजर्स ने कहा ट्रेनों की संख्या में होनी चाहिए बढ़ोतरी

- जनरल बोगी में महिलाओं को भी नहीं मिलती जगह

- यात्रियों को पैंट्री के नाम पर मिलती है मोबाइल सर्विस

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut: हमारा इंटरनेट से टिकट नहीं हो सका। रात को आईआरसीटीसी की साइट से टिकट की कोशिश की तो हैंग मिली। फिर तय किया कि काउंटर टिकट ही खरीदेंगे। सुबह जब हम करीब 9:00 पर मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन पहुंचे तो इंक्वायरी पर कुछ खास भीड़ नहीं थी। हमने दिल्ली जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन के बारे में पूछा तो मुंह बनाते हुए बैठी मैडम ने बताया कि थोड़ी देर में प्लेटफॉर्म नंबर ख् पर अंबाला-दिल्ली एक्सप्रेस (गाड़ी नंबर क्ब्भ्ख्ख्) आने वाली है। हम टिकट की लाइन में लग गए। लाइन तेजी से बढ़ रही थी। जल्द ही नंबर आ गया।

प्लेटफार्म नंबर-क् और ख्

थोड़ा वक्त था तो सोचा कि प्लेटफॉर्म की व्यवस्थाओं पर नजर दौड़ा ली जाए। प्यास लगी तो प्लेटफॉर्म नंबर एक के वाटर कूलर की ओर बढ़ा। पानी गर्म था। पब्लिक गर्म पानी पीने को मजबूर थी। अमूमन हर वाटर कूलर की यही दशा थी। जीआरपी का एक जवान प्लेटफॉर्म की रिकॉर्डिग कर रहा था। आज एंट्री प्वाइंट जीआरपी की चौकी पर जवान मौजूद थे। खैर जब उससे रिकॉर्डिग के बारे में पूछा तो बताया कि नहीं मालूम साहब ने कहा तो कर रहे हैं। ट्रेन आने वाली थी। जीआरपी स्टेशन पर जानकारी लेने का वक्त नहीं था। हम फटाफट प्लेटफॉर्म नंबर दो पर आ गए। जहां की स्थिति काफी खराब थी। लग रहा था कि अभी तक सफाई नहीं हुई है। वहीं वेंडर जीआरपी और आरपीएफ जवानों के आगे पेसेंजर्स से बदतमीजी से बात कर रहे थे, लेकिन उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा।

स्लीपर में चढ़ना पड़ा

करीब 9.फ्0 बजे राइट टाइम पर ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर दो पर आकर खड़ी हो गई। भगवान का शुक्रिया अदा किया और दिमाग में तुरंत आया कि सफर अच्छा रहेगा। ट्रेन टाइम पर आ गई। मुहूर्त बढि़या था। जैसे ही जनरल बोगी की ओर दौड़े और चढ़ने की कोशिश करने लगे तो तीन बार भीड़ ने हमें पीछे धकेल दिया। दो बार और कोशिश करने पर फोटोग्राफर का कैमरा गिरने से बचा और ट्रेन की सीटी बजी तो दौड़कर स्लीपर बोगी में बैठने को मजबूर हुए। साथ ही खड़े एक पैसेंजर हंसते हुए कहा कि लगता है स्लीपर में सफर करने की आदत नहीं है। उसने आगे कहा भाई साहब सही किया इसमें चढ़ गए अगर जनरल बोगी के इंतजार में रहते तो न जाने कितनी ट्रेनें मिस करनी पड़ती। खैर हमने अपना काम करना था तो जनरल और क्या स्लीपर?

जनरल से भी बुरा हाल

जैसे ही अंदर झांका तो स्लीपर की हालत जनरल बोगी से ज्यादा खराब लग रही थी। पांव रखने को ट्रेन का बेस दिखाई ही नहीं दे रहा था। फिर पैसेंजर के पांव पर पांव रखते सॉरी बोलते हुए हमने अंदर एंट्री की। वहां का नजारा कोई फिल्मी सीन से कम नहीं था। कोई पैसेंजर अपनी रिर्जव सीट पर सो रहा था तो कोई बैठा गाने सुन रहा था। पूरी बोगी में चार-पांच लोगों ऐसे लोग थे जो ताश का आनंद ले रहे थे। हमने पूछा कि आप रोज इसी ट्रेन में सफर करते हैं। तो उसने हां में जवाब बातों-बातों में पता चला कि उनके पास बना हुआ है। जनरल में सीट नहीं मिली तो यहां बैठ गए। पास ही बैठी सहारनपुर से गाजियाबाद नौकरी के लिए जा रही महिला ने कहा कि और क्या करें? ट्रेन इस रूट पर है नहीं जनरल बोगी में मेरी जैसी महिला नहीं चढ़ सकती। सरकार को इस रूट पर गाडि़या बढ़ानी होंगी। तभी ट्रेनों की हाल में थोड़ा सुधार आएगा। टीटी के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि पिछले एक घंटे से तो टीटी आया नहीं तो अब क्या आएगा? अब तो उसे इसकी आदत हो गई है। महिला की एक बात में दम था कि जब जनरल बोगी में जवान लड़कों को चढ़ने में परेशानी हो रही थी वो तो एक महिला हैं। इस बारे में गवर्नमेंट को सोचना चाहिए।

पैंट्री के नाम पर मजाक

एक बोगी से दूसरी बोगी फिर तीसरी बोगी को पार किया। हर बोगी का हाल एक जैसा था। देखा खाने-पीने के कुछ कार्टन टॉयलेट के पास रखे हुए हैं। आसपास काफी गंदगी है। टी शर्ट और पैंट में खड़े लड़कों के बारे में पूछा तो उन्होंने अपने को पैंट्री कर्मी बताया। हमने पैंट्री कार के बारे में पूछा तो पैंट्री सुपरवाइजर मोहम्मद मोमीन ने बताया कि ट्रेन में गैस सिलेंडर के कारण होने वाली घटनाओं के चलते कार को हटा दिया गया है। अब इसमें रेलवे की मोबाइल सर्विस पैंट्री है। उसने बताया कि इस ट्रेन में सारी खाने पीने की चीजें मिलती है। जब हमने गंदगी के बारे में पूछा तो उसने उसने अपने अंडर में काम करने वाले लड़के से कहा जल्दी सफाई हो जानी चाहिए।

एसी में नहीं दिखाई दी दिक्कत

मोदीनगर और न्यू गाजियाबाद का स्टेशन क्रॉस हो चुका था। ट्रेन अपने स्पीड में थी। हम एसी थ्री टायर की ओर बढ़े। जैसे ही अंदर घुसे तो देखा कि वेंडर पैसेंजर्स की नींद हराम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। तभी कैमरे देखकर एक यात्री बिजेंद्र त्यागी हमारे पास आए और बोले कि मैं मीडिया के माध्यम से अपनी कुछ बाते रखना चाहता हूं। उन्होंने कहना शुरू किया कि रेलवे को बर्बाद करने में जितने नेता लोग जिम्मेदार हैं उतने ही हम भी हैं। पब्लिक स्टेशन में ट्रेन रुकने के बाद ही टॉयलेट का इस्तेमाल करती है। जिससे प्लेटफॉर्म सामने की पटरी गंदी हो जाती है। जिसे साफ करने में कितना पानी और पॉवर खर्च होता है इसका अंदाजा पब्लिक नहीं लगा सकती। इतनी बदबू आती है कि प्लेटफॉर्म पर चाय पीना मुश्किल हो जाता है। वहीं करीब बैठे प्रमोद पुरी से बात होने पर उन्होंने कहा कि पर्सनली कहूं तो ट्रेन में कोई बुराई नहीं है। बुराई सिर्फ ये है कि इस जैसी कोई दूसरी ट्रेन नहीं। सफाई से लेकर किट तक सभी अपनी जगह पर मिले और क्या चाहिए।

फटी हुई कुर्सियां

गाजियाबाद पार करने के दिल्ली आउटर पर ट्रेन रुक गई। हम ट्रेन के बीच से उतरकर जनरल बोगी में चढ़ गए। खैर भीड़ तो काफी छंट गई थी, लेकिन बोगी पूरी चरमराई हुई थी। ऐसी कोई सीट नहीं जोकि साबुत हो। सीट के ऊपर लेटने वाले रैंप के लकड़ी के फट्टे गायब थे। बेतहाशा बदबू आ रही थी, जिसे झेलना काफी मुश्किल हो रहा था। आउटर पर धीरे-धीरे गाड़ी अपने अंतिम स्टेशन की ओर रेंग रही थी। पूरे डिब्बे के कोने-कोने को देखा तो गुटखा और तंबाकू की पीक कोच की शोभा में चार चांद लगा रहे थे। खैर जैसे-तैसे कर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर क्क्:ब्0 पर ट्रेन प्लेटफॉर्म पर खड़ी हो गई।

Posted By: Inextlive