पेपर लीक और गलत सवाल-जवाब को लेकर जमकर बोले प्रतियोगी

इसके लिए सीधे-सीधे विभागीय लोगों को ठहराया दोषी

ALLAHABAD: बीते कुछ सालों में विभिन्न भर्तियों को लेकर एक ट्रेंड तेजी से प्रचलन में आया है। भर्ती आयोगों या बोर्ड द्वारा प्रश्न पत्र में पूछे गए सवालों के गलत जवाब को सीधे कोर्ट में चुनौती दी जा रही है। यूपी लोक सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, अधिनस्थ शिक्षा सेवा आयोग के अलावा यूपीटीईटी समेत दूसरी भर्तियों के मामलों में भी ऐसा ही हो रहा है। कोर्ट द्वारा गलत जवाब को लेकर सख्त टिप्पणियां की जा रही हैं। इससे कभी परीक्षाओं के परिणाम में संशोधन करना पड़ रहा है तो कभी परीक्षाएं ही निरस्त करनी पड़ रही हैं। कोर्ट की चौखट पर जीत हार के फैसले का एक पहलू यह है कि दोनों ही परिस्थितियों में नुकसान छात्रों को उठाना पड़ रहा है।

बिना एक्शन नहीं क्लीयर होगा विजन

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इसी मुद्दे पर युवाओं से बातचीत की तो उन्होंने एक एक कर समस्याएं गिनानी शुरू की। समाधान भी बताये। प्रतियोगियों के मुताबिक ऐसे समय जब पेपर लीक के मामले बढ़े हैं और गलत सवाल-जवाब के चलते भर्तियां अटक रही हैं। तब जरूरी है कि सरकार और प्रशासनिक तंत्र द्वारा सजा का सख्त प्राविधान सुनिश्चित किया जाये। प्रतियोगियों का स्पष्ट मत है कि जब तक दोषियों को जेल भेज देने समेत दूसरी सख्त कार्रवाई अमल में नहीं लायी जायेगी, तब तक सुधार के कोई भी उपाय बेमानी सिद्ध होंगे।

परिचर्चा में बताई गई समस्या

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- आयोगों में अध्यक्ष, सदस्यों और अफसरों की नियुक्ति में धर्म, जाति, क्षेत्र और संबंधों को महत्ता प्रदान की जा रही है।

- इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विभिन्न आयोगों के अयोग्य अध्यक्ष और सदस्यों को हटाने का एक के बाद एक आदेश इसका प्रमाण है।

- ऐसा किसी एक सरकार के कार्यकाल में नहीं, बल्कि प्रत्येक सरकार के कार्यकाल में हो रहा है।

- कोर्ट या सड़क पर लड़ाई लड़ने वालों को भी ध्यान देना होगा कि वे अपनी लड़ाई में संबंधित अफसर के खिलाफ सजा की भी मांग को शामिल करें।

- इसी से भय का वातावरण बनेगा। अन्यथा ऐसे ही भर्ती, परीक्षा और परिणामों पर अड़ंगा लगता रहेगा।

- आयोग या भर्ती बोर्ड में राजनीतिक दखल को पूरी तरह से शून्य करना होगा।

- यह बात भी कॉमन है कि कोई आयोग नियमों के दायरे में काम कर रहा है तो नेता और मंत्री दबाव बनाकर वहां के अफसरों से इस्तीफा ले लेते हैं।

- यह बात समझे जाने की जरुरत है कि राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, तमिलनाडु और जम्मू कश्मीर जैसे आयोग क्यों और कैसे बेहतर काम कर रहे हैं?

- संघ लोक सेवा आयोग नई दिल्ली भी अपने आप में एक बड़ा उदाहरण है।

किसी भी संस्था को भ्रष्ट बनाना है तो एक अयोग्य व्यक्ति को टॉप पोजिशन पर बैठा दिया जाता है। फिर सारी चीजें अपने आप ही शुरू हो जाती हैं। बड़ा सवाल है कि कोर्ट में जो चीज लगातार सिद्ध हो रही है। उसका उत्तर आयोगों के पास विवादों के बढ़ जाने के पहले क्यों नहीं होता?

मनीष

परीक्षाओं से ऐसे अतार्किक सवाल पूछे ही क्यों जाते हैं, जिनका जवाब ढूंढना ही मुश्किल हो। यूनिवर्सिटी और कॉलेजेस में डायरेक्ट इंटरव्यू के आधार पर भरे जा रहे अयोग्य शिक्षक ही आयोगों में बतौर एक्सपर्ट बुलाये जाते हैं। इनसे बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती।

अशोक

गलत सवाल और जवाब के मामले में एक चीज बिल्कुल स्पष्ट है कि आंसर की पर ली जाने वाली आपत्तियों का निस्तारण गंभीरता से नहीं किया जा रहा। जबकि अथेंटिक बुक्स में सबकुछ अवलेबल है। दोषियों को सख्त सजा का प्राविधान न होने के कारण ऐसी प्रवृत्तियां बढ़ चली हैं।

अखिलेश

परीक्षाओं में उम्र सीमा और अवसर की बाध्यता होती है। कोई भी परीक्षा फंसती है तो इससे बहुत सारे परीक्षार्थी हर साल ओवरएज होते हैं। उनके पास फिर से परीक्षा देने का आप्शन ही नहीं होता। कोर्ट से चाहे जो भी फैसला आए, अगर इससे परीक्षा पर ब्रेक लगता है तो नुकसान परीक्षार्थी का ही है।

तरुन

एक के बाद एक भर्तियां क्लीयर न होने से हमारा भविष्य बर्बाद हो रहा है। युवाओं का फ्रस्टेशन बढ़ रहा है। सरकार को यह बात समझनी चाहिये। हमें हर हाल में तयशुदा समय में नौकरी चाहिये। इसके लिए अब एक कंपलीट सिस्टम डेवलप करना ही होगा।

अभिषेक भास्कर

Posted By: Inextlive