13 साल का टेबिल टेनिस प्लेयर कर रहा था बंधुआ मजदूरी
एक साल की उम्र में मां की हुई मौत
प्रतापगढ़ के कुंडा निवासी राकेश पटेल और संगीता के घर 2000 में बेटे हिमांशु की किलकारी गूंजी। अभी एक साल ही बीता था कि संगीता की लंबी बीमारी की वजह से मौत हो गई। छोटी उम्र की वजह से संगीता के पिता श्यामलाल पटेल हिमांशु को अपने साथ चारबाग के पानदरीबा स्थित घर ले आए। आठ साल की उम्र में उसके मामा टेबिल टेनिस खिलाड़ी सुरेश पटेल ने हिमांशु को भी चारबाग रेलवे स्टेडियम स्थित टेबिल टेनिस कोचिंग में दाखिला करा दिया। हिमांशु को यह खेल भा गया और कुछ ही समय में उसकी परफॉर्मेंस गजब की हो गई।जीतीं तमाम चैंपियनशिपवह खुद से बड़े प्लेयर्स को भी आसानी से हराने लगा। महज 10 साल में उसने अंडर 12 डिस्ट्रिक्ट चैंपियनशिप जीत ली। नवंबर 2010 में 11 साल की उम्र में वह नोएडा में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप के फाइनल में जा पहुंचा, हालांकि वह फाइनल में जीत हासिल न कर सका और रनर अप रहा। 25 फरवरी 2011 की सुबह 8.30 बजे वह रेलवे स्टेडियम में प्रैक्टिस पर जाने के लिये निकला और वापस न लौटा। उसके मामा सुरेश ने नाका कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई। दो साल तक लापता रहने के बाद शनिवार को हिमांशु को उसके मामा सुरेश के दोस्त ने केकेसी स्थित एक होटल में बर्तन साफ करते देखा और इसकी इन्फॉर्मेशन सुरेश को दी। जानकारी मिलने पर पहुंचा सुरेश हिमांशु को अपने साथ घर ले आया।
अनजान शख्स ले गया थाघर पहुंचे हिमांशु ने बताया कि वह जब प्रैक्टिस जाने के लिये घर से निकला तो उसे रास्ते में एक व्यक्ति मिला। उसने उसे अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा दिया और साथ लेकर सोहावल जा पहुंचा। हिमांशु ने बताया कि वहां उसने उसे ईंट भट्ठे पर काम कराने वाले पेटी कॉन्ट्रैक्टर रामदेव के सुपुर्द कर दिया। वहां उसे दिन भर की मेहनत का 8 रुपये मेहनताना मिलता था। छह महीने तक वहां काम करने के बाद उसे निर्माणाधीन मकान में गारा ढोने में लगा दिया गया। हिमांशु ने बताया कि वहां उसे सिर्फ खाना मिलता था। एक दिन नया कपड़ा मांगने पर रामदेव ने उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी। जिसके बाद वह किसी तरह से वहां से भाग निकला।15 दिन पहले भाग निकलाइसी दौरान उसकी मुलाकात रविन्द्र सिंह नाम के शख्स से हुई। वह उसे अच्छा काम दिलाने का झांसा देकर अपने गांव करसरा ले गया और वहां उसे अपने खेतों में जुटा दिया। हिमांशु ने बताया कि वहां उसे सिर्फ खाना और कपड़ा मिलता था और उसकी बराबर निगरानी रखी जाती थी। 15 दिन पहले वह रविन्द्र सिंह की भी कैद से भाग निकला और भागकर बस्ती पहुंचा। पास में एक भी रुपया नहीं था, खाना खाने के लिये उसने स्टेशन के करीब एक होटल में नौकरी कर ली। तीन दिन तक काम करने के बाद उसे 150 रुपये मिले। जिसके बाद वह तीन दिन पहले लखनऊ पहुंचा। हिमांशु ने बताया कि मामा और नाना की नाराजगी से डरकर वह घर जाने की हिम्मत न जुटा पाया। हिमांशु के मामा ने बताया कि उन्होंने नाका पुलिस को घटना की इन्फॉर्मेशन दे दी।
शरीर पर बेरहमी के निशाननन्ही सी उम्र में कमरतोड़ मेहनत का नतीजा यह रहा कि हिमांशु के शरीर पर ढेरों जख्मों के निशान मौजूद हैं। उसके पैरों में मौजूद निशान देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसने बीते दो साल में किस तरह की मुश्किलों को झेला है।क्या कहते है अधिकारीहिमांशु के वापस लौटने की इन्फॉर्मेशन उसके मामा सुरेश ने दी है। उसे स्टेडियम से बहलाकर ले जाने वाले की पहचान की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा उससे बंधुआ मजदूरी कराने वालों पर भी कार्रवाई होगी।विजय प्रकाशइंस्पेक्टर, नाका