- शहर के लोगों की कहानी जिससे बच रहा है पानी

GORAKHPUR: पानी है तो ही जिंदगी है, यह बात सभी अच्छी तरह जान चुके हैं। पानी की किल्लत अब लोगों को इसे बचाने के लिए मजबूर कर रही है। कुछ लोगों ने इस किल्लत के बाद पानी बचाने की पहल की है, तो वहीं शहर में कुछ लोग ऐसे हैं, जो बरसों से पानी की अहमियत समझते हैं और इसे बचाने में उस वक्त से लगे हुए हैं। जब शहर में वॉटर लेवल बमुश्किल 20 फीट था। वहीं गोरखपुर क्या, कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो देशभर में कहीं भी पानी की किल्लत नहीं थी। हम बात कर रहे हैं शहर के रिनाउंड बिजनेसमैन और फ‌र्स्ट मेयर ऑफ गोरखपुर पवन बथवाल और एमएमएमयूटी के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और रिनाउंड एनवायर्नमेंटलिस्ट प्रो। गोविंद पांडेय की। इनमें से एक ने पानी बचाने के तरीकों पर अमल किया है, तो वहीं दूसरे पानी की एक-एक बूंद को सहेजने के लिए लोगों से अपील कर रहे हैं और सेमीनार व रिसर्च के जरिए लोगों को इसकी अहमियत बताने में लगे हुए हैं।

पवन बथवाल

गोरखपुर के फेमस बिजनेसमैन और शहर के पहले मेयर पवन बथवाल फ्यूचर को लेकर काफी पहले से अवेयर हैं। उन्होंने न सिर्फ अपने मकान, फैक्ट्री और होटल में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा रखा है, बल्कि होटल में सीटीपी भी लगाई है, जिससे कि वॉटर को री-साइकिल कर इसका यूज किया जा सके। मकान, फैक्ट्री और होटल से निकलने वाले पानी को ट्रीट कराने के बाद इसे वह कुएं में गिरवाते हैं ताकि जमीन में वॉटर का प्रॉपर रीचार्ज किया जा सके। पवन बथवाल ने साल 2003 में मोहद्दीपुर स्थित मकान पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया। उन्होंने वॉटर कंजर्वेशन की शुरुआत तब कर दी जब लोगों के सामने वॉटर क्राइसिस जैसी कोई बात नहीं थी। छतों और कैंपस में 4-4 इंच के पाइप का जाल बिछा है, जो सीधा कुएं से अटैच है। पाइप के जरिए बारिश और किचन का पानी कुएं में चला जाता है और फिर जमीन में पहुंच जाता है। होटल में खाने-पीने और नाश्ता करने पहुंचने वाले लोग गिलासों में जो पानी छोड़कर चले जाते हैं, उन्हें बाल्टियों में इकट्ठा कर सुबह-शाम कैंपस में लगे पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

प्रो। गोविंद पांडेय

मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के हेड और फेमस एनवायर्नमेंटलिस्ट प्रो। गोविंद पांडेय भी पानी को लेकर काफी सीरियस हैं। पानी की एक-एक बूंद को कैसे बचाया जाए, इस पर उनका हमेशा ही ध्यान रहता है। यही वजह है कि गोरखपुर में बनने वाले मल्टी स्टोरी कॉम्प्लेक्स के साथ ही फैक्ट्रियों में इंस्पेक्शन का जिम्मा भी उन्हें ही मिलता है। डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन उस फैक्ट्री या मल्टी स्टोरी कॉम्प्लेक्स में प्रो। गोविंद के आइडिया के मुताबिक ही वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इंस्टॉल करने के लिए जिम्मेदारों को निर्देशित करता है। इतना ही नहीं, प्रो। पांडेय ने शहर के करीब सभी इलाकों में अपने रिसर्च स्कॉलर्स की मदद से ड्रिंकिंग वॉटर क्वालिटी और वॉटर लेवल का सर्वे भी कराया है, जिससे शासन और प्रशासन को यहां के पानी की समस्या जानने में काफी मदद मिली है। इतना ही नहीं, किन एरियाज में पानी पीने लायक है या कहां आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा कम या ज्यादा है, यह भी एमएमएमयूटी के स्टूडेंट्स ने उन्हीं के अंडर में रिसर्च कर इंस्पेक्ट किया है। वहीं प्रो। पांडेय के कहने पर ही गोरखपुर के साथ ही आसपास के कई लोगों ने घरों में छोटा ही सही, लेकिन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनवा लिया है, जिससे कम से कम कुछ पानी रीचार्ज हो जा रहा है।

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रेलवे ने भी की पानी बचाने की पहल

रेलवे एडमिनिस्ट्रेशन ने भी पानी बचाने के लिए अहम कदम बढ़ाया है। बोगियों की धुलाई और सफाई के दौरान नालियों में बहने वाला हजारों लीटर पानी अब बचेगा और इसे दोबारा इस्तेमाल में लाया जाएगा। स्टेशन यार्ड स्थित दोनों कोचिंग वॉशिंग पिट में वाटर री-साइकिलिंग प्लांट लगाने की कवायद शुरू हो चुकी है।

पश्चिमी छोर का काम शुरू

वॉटर री-साइकिलिंग प्लांट जंक्शन यार्ड के पूर्वी छोर स्थित पुराने कोचिंग वॉशिंग पिट और पश्चिम यार्ड बौलिया स्थित न्यू कोचिंग वॉशिंग पिट में स्थापित किए जाने हैं, जिसमें से पश्चिमी छोर का काम शुरू हो चुका है। इसके लिए रेलवे बोर्ड ने दो करोड़ 53 लाख रुपए का बजट भी जारी कर दिया है। फेजवाइज पैसा मिल रहा है और इसकी वर्क प्रोग्रेस भी तेजी से हो रही है। पानी स्टोर करने के लिए बड़े-बड़े गड्ढे बनाए जाएंगे, जिसमें आने वाले पानी को ट्रीट कर दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाया जाएगा। प्लेटफार्म के साथ टॉयलेट और रेल लाइनों की सफाई में इसी पानी का इस्तेमाल किया जाएगा। स्टेशन यार्ड कैंपस स्थित पार्क व लॉन में फूल और पौधों की भी इससे सिंचाई होगी।

रोजाना 500 बोगियों की होती है धुलाई

दोनों कोचिंग वॉशिंग पिट में औसतन रोजाना 30 रेक पहुंचती हैं, उनमें से लगभग 500 बोगियों की धुलाई होती है। गोरखपुर से रोजाना करीब 20 एक्सप्रेस और 30 पैसेंजर व डेमू ट्रेन बनकर चलती हैं। एक कोचिंग वॉशिंग पिट में एक दिन में सिर्फ बोगियों की धुलाई में औसत रोजाना लगभग 27 हजार लीटर पानी नालियों में बह जाता है। एक पिट पर रोजाना दो लाख 96 हजार लीटर पानी का इस्तेमाल किया जाता है।

ऐसे लगता है सिस्टम

- छत पर पानी के लिए टैंक बनाया जाता है।

- उसमें होल कर पाइप को जमीन तक लाया जाता है।

- बीच में पिट (फिल्टर) बनाई जाती है।

- पिट में जाली, गिट्टी, मोरंग, बालू भरा जाता है।

- पाइप को जमीन में बोरिंग कर डाला जाता है।

- पाइप भवन की छत से जमीन के अंदर तक होता है, जिसके जरिए छत पर बने टैंक में एकत्र बारिश के पानी को जमीन के अंदर पहुंचा दिया जाता है।

यहां होता है इस्तेमाल

1. बर्तनों की साफ-सफाई

2. नहाना व कपड़ा धोना

3. टॉयलेट आदि कार्य

4. सिंचाई के लिए

5. नहाने आदि के साथ प्योरिफाई कर खाना बनाने के लिए

ये हैं फायदे

- रेन वॉटर क्राइसिस में काम आ जाता है।

- भूगर्भ जल स्तर संतुलित रहता है।

- पेयजल की समस्या नहीं होती।

Posted By: Inextlive