- टर्मिनल पर इनॉगरेशन के बाद से अबतक नहीं की जा सकी मैकेनाइज क्लोरीनेशन की व्यवस्था

- सच्चाई को नकार रहे हैं अधिकारी, हेल्थ पर पड़ता है बुरा असर

PATNA : हाल के दिनों में रेलवे कालोनियों में कई डेंगू और फूड प्वाइजनिंग के मरीज मिले। कई वजहों के साथ एक वजह यह भी मिली कि पटना जंक्शन और राजेंद्र नगर टर्मिनल दोनों जगहों पर ड्रिंकिंग वाटर का मैकेनाइज क्लोरीनेशन नहीं होता है।

वर्षो से खराब है मशीन

पटना जंक्शन पर लगभग दस साल से मैकेनाइज क्लोरीनेशन का काम बंद है। जब कभी इंस्पेक्शन होता है या फिर अधिकारी चाहते हैं तो मैनुअली ही क्लोरीनेशन किया जाता है। मैकेनाइज क्लोरीनेशन का जब यहां काम शुरू हुआ तो शुरुआत के दो साल तक काम ठीक चला। दो साल के बाद किसी नये कांट्रैक्टर को यह जिम्मा नहीं दिया गया और मशीन खराब हो गरी। स्थिति यह है कि इतने दिनों बाद भी न तो मशीन को बदला गया है और न ही उसे ठीक ही कराया गया है। इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के अधिकारी पूछने पर सिर्फ इतना कहते हैं कि क्लोरीनेशन हो रहा है। मैकेनाइज होता है या नहीं इस सवाल को वे टाल जाते हैं।

जांच होती है पर परिणाम जीरो

पानी में ब्लीचिंग पाउडर या यूं कहें कि क्लोरीनेशन की जांच हर रोज सुबह शाम की जाती है। टर्मिनल पर अधिकांश दिन इसका परिणाम शून्य पीपीएम ही आता है। अगर कभी परिणाम मिलता भी है तो वो मैनुअल की वजह से। क्लोरीनेशन के स्टैंडर्ड परिणाम की अगर बात करें तो इसे .क् पीपीएम से .भ् पीपीएम के बीच रहना चाहिए। अगर यह इतने के बीच है तो इसका पानी पीने योग्य है। अगर इसका परिणाम .क् पीपीएम से कम है तो इसे पीने से फूड प्वाइजनिंग, डिसेंट्री सहित कई बीमारी हो सकती है। हाल के दिनों में रेलवे कालोनियों में ही इसके कई मरीज मिले।

पैसेंजर्स के लिये नुकसानदेह

जंक्शन पर इस पानी का सेवन बड़ी मात्रा में पैसेंजर्स भी करते हैं। यह पानी उनके हेल्थ को भी हार्म करता है। पटना जंक्शन की एक मात्र टंकी से जीआरपी कालोनी, स्टेशन परिसर, प्लेटफार्म, वाटरबूथ, बेसकिचन और जन आहार तक में सप्लाई जाता है। इन सभी जगहों से पैसेंजर्स का सीधा नाता है इस वजह से यह यहां कर्मचारियों के अलावा पैसेंजर्स के लिये भी हार्मफुल है।

ऑफिसर करने लगे आनाकानी

ख्0क्फ् में इस रिगार्डिग इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट और हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से ज्वाइंट इंस्पेक्शन की जा चुकी है। इसके बाद मैकेनाइज क्लोरीनेशन की मांग चीफ मेडिकल डायरेक्टर से लेकर जीएम तक से की गयी थी, लेकिन अबतक इसपर अमल नहीं हो सका है। इस बाबत जब हेल्थ डिपार्टमेंट के अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह मेरे डिपार्टमेंट की बात नहीं है। इसके बाद जब अभियंता विभाग के एईएन डीके सिंह से बात की गयी तो उन्होंने तथ्य को नकारते हुए कहा कि आप आकर पानी पी लीजिये उसमें ब्लीचिंग नहीं मिलेगी तो कहिएगा। मैकेनाइज क्लोरीनेशन की बात को टालते हुए कहते हैं कि सब हो रहा है कहीं कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं एक साल से यहां हूं और यह हो रहा है। वहीं एक स्टाफ ने बताया कि मैं दो तीन महीने पहले तक वहीं था लेकिन मैकेनाइज क्लोरीनेशन तो नहीं हो रहा था। सच्चाई यही है कि मैकेनाइज क्लोरीनेशन नहीं की जा रही है।

टर्मिनल की हालत और भी बुरी

राजेंद्र नगर टर्मिनल का जब से इनॉगरेशन हुआ है तभी से मैकेनाइज क्लोरीनेशन की मांगी की जा रही है, लेकिन हालत यह है कि आज भी यह सुविधा यहां उपलब्ध नहीं की गयी है। टर्मिनल के एक स्टाफ बताते हैं कि जब भी इंस्पेक्शन की बात होती है हमलोग ब्लीचिंग मिला देते हैं नहीं तो कौन उतनी ऊंची टंकी पर चढ़ने जाता है। मैनुअली क्लोरीनेशन करने की भी परेशानी है। इसे किसी भी हालत में .भ् पीपीएम से अधिक नहीं होना चाहिए नहीं तो यह हेल्थ के लिये हानिकारक ही होगा।

क्या हो क्लोरीनेशन की मात्रा

क्लोरीनेशन की मात्रा पर पार्ट मीलियन में मापी जाती है। इसे कभी भी .क् पीपीएम से कम और .भ् पीपीएम से अधिक नहीं होना चाहिए। मालूम हो कि टर्मिनल पर ही बेस किचन भी है जिससे राजधानी एक्सप्रेस के पैसेंजर्स के लिए खाना जाता है और इसको भी बिना क्लोरीनेशन का पानी सप्लाई किया जाता है। बहरहाल, अन्य रिपोर्ट की तरह क्लोरीनेशन की भी मंथली रिपोर्ट सीएमडी को भेजी जाती है लेकिन नतीजा अब तक ढाक के तीन पात वाली ही है।

Posted By: Inextlive