वर्दी केस्वास्थ्य का रखवाला खुद खोज रहा दवा
02 लाख रुपये सालाना बजट
50 से 60 की ओपीडी डेली 40 बेड का हॉस्पिटल 02 डॉक्टर हॉस्पिटल में 01 चीफ फार्मासिस्ट और एक फार्मासिस्ट 04 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तैनात - बजट के अभाव से नहीं मिल पा रहीं दवाइयां - 40 बेड वाले हॉस्पिटल के वार्ड में लटका ताला LUCKNOW : पुलिस कर्मी और उनके परिवार का ट्रीटमेंट करने वाला हॉस्पिटल खुद 'आईसीयू' में है। बिट्रिश हुकूमत में बना यह चिकित्सालय बुनियादी सुविधाओं की कमी से कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। संसाधनों और बजट के अभाव में यहां केवल सर्दी, खांसी और बुखार जैसी सामान्य बीमारियों का ही उपचार किया जा रहा है। वहीं 40 बेड के वार्ड में ताला लटका हुआ है। ट्रीटमेंट के लिए दो डॉक्टरपुलिस लाइन स्थित रिजर्व पुलिस हॉस्पिटल हेल्थ डिपार्टमेंट की मदद से चल रहा है। डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टॉफ की तैनाती हेल्थ डिपार्टमेंट करता है। इनका वेतन पुलिस के बजट से दिया जाता है। वर्तमान में इस हॉस्पिटल में दो डॉक्टर डॉ। संजीव विश्वास और डॉ। संयोगिता दुबे तैनात हैं। इसके साथ ही एक चीफ फार्मासिस्ट, एक फार्मासिस्ट और तीन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। चीफ मेडिकल अफसर डॉ। संजीव विश्वास के अनुसार हॉस्पिटल की ओपीडी में डेली 50 से 60 पेशेंट ट्रीटमेंट के लिए आते हैं।
बाक्स सालाना बजट केवल दो लाख राजधानी में करीब आठ हजार पुलिस कर्मी हैं। तीन हजार पुलिसवाले और उनके परिवार पुलिस लाइन में रहते हैं। इसके अलावा पीएसी जवानों का ट्रीटमेंट भी यहां किया जाता है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के ट्रीटमेंट के लिए इस हॉस्पिटल को केवल दो लाख रुपए सालाना बजट दिया जाता है। इस साल तो दस माह बीतने के बाद भी अभी तक हॉस्पिटल को मात्र 40 हजार रुपए ही मिले हैं। इतने कम बजट में 18 से 20 हजार लोगों का ट्रीटमेंट संभव नहीं है। केवल ओपीडी हॉस्पिटल में केवल ओपीडी की सुविधा है जो सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक चलती है। यह भी तय नहीं है कि इलाज के दौरान यहां दवाएं मिलेंगी या नहीं। क्यों कि सरकारी अस्पताल की तरह यहां दवाएं मुफ्त नहीं आती हैं। बल्कि डिपार्टमेंट से स्वीकृत बजट से ही दवाइयों की खरीदारी की जाती है। यह है प्रॉसेजपुलिसवालों को मेडिकल लीव लेने के लिए सिक बुक की पुलिस हॉस्पिटल में इंट्री करनी होती है। इसके अलावा जीडी में रवानी दर्ज कराने के साथ पुलिस अस्पताल से रेफर और छुट्टी की परमिशन लेने के बाद ही वे छुट्टी पर जा सकते हैं।
लोगों से बात-चीत
सामान्य बीमारियों के लिए ओपीडी में चेकअप कराते हैं। कभी दवाएं मिल जाती हैं तो कभी बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। बड़ी बीमारी का ट्रीटमेंट यहां संभव नहीं है। अशोक कुमार सिन्हा, पीएसी कुक यहां जरूरत पड़ने पर ट्रीटमेंट मिल जाता है। सरकारी अस्पताल में भीड़ को देखते हुए यहां केवल पुलिसकर्मियों का ही ट्रीटमेंट होता है। छोटी बीमारियों के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। सुधीर कुमार पांडेय, कांस्टेबल हॉस्पिटल में एक्सरे व अन्य बड़ी जांच की सुविधा नहीं है। बाहर से जांच कराने के बाद उसकी रिपोर्ट और इलाज संभव होता है। कई बार दवाइयां भी बाहर से खरीदनी पड़ती है। धर्मेन्द्र गौतम, कांस्टेबल अस्पताल की ओपीडी रोज चलती है। यहां लाइन नहीं लगानी पड़ती है। सुविधा है, बस संसाधन अच्छे कर दिए जाएं तो पुलिसकर्मियों और उनके परिवार को अच्छा ट्रीटमेंट मिल जाए। गुरु प्रसाद, कांस्टेबल कोट अन्य जिलों के पुलिस अस्पताल से लखनऊ रिजर्व पुलिस लाइन हॉस्पिटल कई मायनों में अच्छा है। यहां हर साल 18 से 20 हजार पुलिसकर्मियों और उनके परिजनों का ट्रीटमेंट किया जाता है। कुछ संसाधनों की कमी है, जिसकी सूचना अधिकारियों को देकर उनसे मदद ली जाती है।डा। संजीव विश्वास, चीफ मेडिकल अफसर