दादा 1954 में नियुक्त किए गए थे महाधिवक्ता, ठुकरा दिया था सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस का पद

पिता थे लॉयर, चाचा रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पोस्ट से

कई बड़े फैसले देने वाली पीठ में शामिल रहे जस्टिस संजय मिश्रा

ALLAHABAD: प्रदेश के लोकायुक्त की पोस्ट संभालने जा रहे जस्टिस संजय मिश्रा का परिवार प्रदेश के बड़े अधिवक्ता परिवारों में से एक है। दादा के जमाने से चली आ रही परंपरा को पोता आगे बढ़ाने निकल पड़ा है। इस खानदान की तीसरी पीढ़ी इस पेशे से जुड़ी हुई है। हाई कोर्ट से 2014 में रिटायर हुए प्रदेश के नए लोकायुक्त जस्टिस संजय मिश्र खुद इस पर कुछ भी बोलने के लिए सामने नहीं आए। अलग बात है कि पूरे दिन उनके इलाहाबाद स्थित आवास पर मीडियाकर्मी डटे रहे।

इलाहाबाद के मूल निवासी

जस्टिस मिश्रा इलाहाबाद के मूल निवासी हैं। उनकी हवेली कंपनी बाग के पीछे पॉश इलाके में है। उनका जन्म 19 नवंबर 1952 में हुआ। इलाहाबाद हाईकोर्ट में 24 सितंबर 2004 में उन्होंने बतौर जस्टिस ज्वाइन किया। यहां उन्होंने 18 नवंबर 2014 तक अपनी सेवाएं दी। नवंबर 2014 में वह हाईकोर्ट से रिटायर हुए। वह बलरामपुर में एडमिनिस्ट्रेटिव जज भी रह चुके हैं। यूपी सरकार की तरफ से लोकायुक्त चयन के लिए तैयार पैनल में भी जस्टिस संजय मिश्रा का नाम शामिल था।

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बड़े फैसलों से जुड़ा नाम

-2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इंडियन प्रेस काउंसिल के तत्कालीन चेयरमैन मार्कडेय काटजू की पीआईएल को खारिज किया था। ये पीआईएल पीपुल्स फोरम की ओर से सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने पूर्व चीफ जस्टिस के खिलाफ काटजू के आरोपों को लेकर दायर की थी। जस्टिस संजय मिश्रा और जस्टिस ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव की बेंच ने इसे इस टिप्पणी के साथ खारिज किया था कि इसमें जनहित उद्देश्य या लोकहित निहित नहीं है।

-जस्टिस संजय मिश्रा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को भी कड़ी फटकार लगा चुके हैं। काउंसिल ने मौलाना अली मियां इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस कॉलेज में 2014-15 के लिए एमबीबीएस की 150 सीटों पर दाखिले की इजाजत देने से मना कर दिया था। जस्टिस संजय मिश्रा और बीके श्रीवास्तव की बेंच ने काउंसिल और केन्द्र सरकार के आदेश को रद्द करार दिया था।

-प्रदेश के शिक्षा मित्रों सेलेक्शन पर रोक को जायज ठहराने का फैसला देने वाली हाई कोर्ट की बेंच में भी जस्टिस संजय मिश्र शामिल थे। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि वर्ष 2009-10 में चयनित 355 शिक्षा मित्रों को नियुक्ति पाने का वैधानिक अधिकार नहीं है।

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तो शायद देश इमरजेंसी न झेलना

यूपी के नए लोकायुक्त जस्टिस संजय मिश्रा प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता कन्हैया लाल मिश्र के पौत्र हैं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पद के ऑफर को ठुकरा देने वाले स्व। कन्हैया लाल मिश्र को जानने वाले बताते हैं कि वह राजनारायण केस में इंदिरा गांधी के वकील थे। इस केस के फैसले के दिन वह तबियत ठीक न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए नहीं पहुंच सके। इससे इंदिरा गांधी को मात मिली और देश में इमरजेंसी लगाने की नौबत आई। पं। कन्हैया लाल मिश्र जन्मशती समारोह मनाने वाली कमेटी से जुड़े अधिवक्ता संतोष त्रिपाठी का कहना है कि उस दिन स्व। कन्हैया जी कोर्ट पहुंच जाते तो इमरजेंसी न लगती।

सिक्योरिटी इंचार्ज ने गेट से लौटाया

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आने के बाद पत्रकारों का हुजूम जस्टिस संजय मिश्र के आवास पर पहुंच गया। फोटोग्राफर उन्हें अपने कैमरे में कैद करना चाहते थे तो रिपोर्टर उनसे तमाम मुद्दों पर सवाल करना चाहते थे। लेकिन, वह किसी से नहीं मिले। सिक्योरिटी इंचार्ज ने बताया कि उन्हें पद संभालने के संबंध में कोई आदेश नहीं मिला है। उन्होंने कहा है कि वह मीडिया से कोई भी बात ऑफिशियल लेटर मिलने पर पोस्ट ज्वाइन करने के बाद ही करेंगे। इसके बाद मीडियाकर्मी निराश होकर लौट गए।

Posted By: Inextlive