RANCHI : वो कहते हैं न पहाड़ ढाहना। इन्होंने तो पहाड़ बना दिया। कभी रांची कालेज में प्रोफेसर रहे अखौरी सिन्हा ने वह उपलब्धि हासिल कर ली है, जिसपर रांची गर्व कर सके। बक्सर (बिहार) इतरा सके। इलाहाबाद (यूपी) मुस्कुरा सके। खुशखबरी यह कि इस इंडो-अमेरिकन साइंटिस्ट के नाम पर अमेरिका सरकार ने अंटार्कटिका के एक पहाड़ का नाम माउंट सिन्हा रख दिया है। अपने गुगल बाबा भी इसकी मुनादी कर रहे हैं। यह पहला मौका है जब किसी भारतीय को इस तरह का सम्मान मिला हो। प्रो सिन्हा इन दिनों अमेरिका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।

मैन बिहाइंड दि माउंटेन

24-7 के इस जमाने में लोग कल की बातें करना पसंद नहीं करते। उन्हें विरासतों पर गुमान तो है लेकिन वह आज की बात में यकीन रखने वाले लोग हैं। लिहाजा, हम अपनी बात आज से शुरू करेंगे। आज की बात। ताजा-ताजा। इस खबर के इंट्रो में आप जान ही चुके हैं कि कभी रांची कालेज मेंर् श्रश्रद्यश्रद्द4 पढ़ा चुके प्रोफेसर अखौरी सिन्हा के नाम पर अमेरिकी सरकार ने अंटार्कटिका में एक पहाड़ का नाम माउंट सिन्हा रख दिया है। यह साउथ मैकडोनाल्ड पर्वत श्रृंखला के एलिक्सन ब्लफस के साउथ-ईस्ट हिस्से में स्थित है। करीब 990 मीटर ऊंचे इस पहाड़ का नामाकरण न्स्त्र1द्बह्यश्रह्म4 ष्टश्रद्वद्वद्बह्लह्लद्गद्ग श्रठ्ठ न्ठ्ठह्लड्डह्मष्ह्लद्बष् हृड्डद्वद्गह्य (स्-न्ष्टन्हृ) ड्डठ्ठस्त्र ह्लद्धद्ग स् द्दद्गश्रद्यश्रद्दद्बष्ड्डद्य स्ह्वह्म1द्ग4 के सुझाव पर किया गया है।

सिन्हा का रांची कनेक्शन

यह बात करीब 53 साल पुरानी है। नवंबर 1956 से जुलाई 1961 की। इसी दौरान अखौरी सिन्हा रांची कालेज मेंर् श्रश्रद्यश्रद्द4 पढ़ाया करते थे। तब रांची बिहार का हिस्सा था और शहर के तमाम इलाके वीरान थे। प्रोफेसर सिन्हा आज के मोराबादी मैदान के पास किराये के मकान में रहते थे। जुलाई 1961 में वह अमेरिका चले गए। फिर वहीं के होकर रह गए।

अखौरी सिन्हा ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से वर्ष-1954 में बीएससी (बैचलर ऑफ साइंस) की और पटना विश्वविद्यालय से 1956 मेंर् श्रश्रद्यश्रद्द4 में एमएससी की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद वह रांची चले आए और यहां पांच साल तक अध्यापन का काम किया। प्रोफेसर सिन्हा को अमेरिका के गिने-चुने वैज्ञानिकों में शामिल किया जाता है।

हर साल बक्सर आते हैं सिन्हा

अखौरी सिन्हा के पूर्वज नादिर शाह के आक्रमण के वक्त दिल्ली से विस्थापित होकर बिहार के बक्सर आए थे। यहीं के चुरामनपुर गांव में सिन्हा का जन्म हुआ। हर साल फरवरी में जब मिनेसोटा का तापमान माइनस में चला जाता है, प्रोफेसर सिन्हा और उनका परिवार एक महीने के लिए अपने पैतृक गांव आता है। इस दौरान वे लोग अपने सगे-संबंधियों से मिलते हैं। बकौल सिन्हा यह उनका सबसे बेहतर वक्त होता है। चुरामनपुर बक्सर ब्लॉक के आठ गांवों वाली एक पंचायत है।

Posted By: Inextlive