अमरीका और अफ़ग़ानिस्तान के बीच उस समझौते की उम्मीदें बढ़ गई हैं जिसके तहत अगले साल के अंत तक विदेशी सेनाओं की वापसी के बाद भी अमरीकी सेनाएं अफ़ग़ानिस्तान में रह सकेंगी.


इस समझौते को संकट में पड़ता देख अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने दख़ल दिया और अफ़ग़ान प्रतिनिधियों की बैठक यानी लोया जिरगा के नाम एक पत्र भेजने की पेशकश की है जिसमें अमरीका अफ़ग़ानिस्तान में अतीत में की गई अपनी ग़लतियों को स्वीकार करेगा.लोया जिरगा में अमरीका और अफ़ग़ानिस्तान के बीच होने वाले सुरक्षा समझौते पर विचार होना है.अफ़ग़ानिस्तान और अमरीका सुरक्षा का ऐसा दस्तावेज तैयार करने में जुटे हैं जो दोनों ही पक्षों को स्वीकार्य हो.अगर ये समझौता नहीं हो पाया तो अमरीका को भी अगले साल अफ़ग़ानिस्तान से हटना होगा.'जान जोखिम में होने पर'इस समझौते पर कई महीनों से बातचीत जारी है, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकल सका है. अफ़ग़ानिस्तान ख़ास तौर पर चाहता है कि इस समझौते में अमरीकी सेनाओं को अफगान घरों में घुसने का अधिकार नहीं होना चाहिए.


"अगर इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुए तो अफगानिस्तान वैसे ही संकट का सामना करेगा जो 12 साल पहले था. देश में गृह युद्ध होगा और मुश्किलें बढ़ेंगी."-अकबर खान बाबर, लोया जिरगा सदस्यलेकिन अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के ताजा प्रस्ताव के बाद अफगानिस्तान का रुख़ नरम हुआ है.

राष्ट्रपति हामिद करजई ने कैरी के इस प्रस्ताव को मान लिया है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बाक़ायदा पत्र लिख कर स्वीकार करेंगे कि अतीत में अफ़ग़ानिस्तान में अमरीका से ग़लतियां हुई हैं.साथ ही वो आग्रह करेंगे कि अमरीकी सैनिकों को 'जान जोखिम होने पर' अफगान घरों में घुसने का अधिकार दिया जाए.बीबीसी संवाददाता के अनुसार ये पत्र मिलने के बाद समझौते को तीन हज़ार सदस्यों वाले लोया जिरगा में रखा जाएगा जो गुरुवार से शुरू हो रहा है.'गृह युद्ध का खतरा'जिरगे के कई सदस्य इस समझौते को अफ़ग़ानिस्तान के अहम मानते हैं. इन्हीं में एक अकबर खान बाबर कहते हैं, "अगर इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुए तो अफ़ग़ानिस्तान वैसे ही संकट का सामना करेगा जो 12 साल पहले था. देश में गृह युद्ध होगा और मुश्किलें बढ़ेंगी."एक अन्य सदस्य ताहिरा अमीरज़ादा की राय है, "मुझे लगता है कि अफगानिस्तान को इस समझौते पर हस्ताक्षर करने की जरूरत है क्योंकि हमारा देश गंभीर स्थिति में है."अमरीका महीनों पहले ही इस समझौते को पक्का कर लेना चाहता था ताकि वो 2014 में अफ़ग़ानिस्तान में युद्धक अभियान ख़त्म होने की स्थिति को लेकर अपनी योजना बना सके.

लेकिन ये समझौते हो भी गया तो कई और मुद्दे अनसुझले रहेंगे, मसलन इस बात को लेकर अब भी मतभेद हैं कि 2014 के बाद अफगानिस्तान में रहने वाले अमरीकी बल अगर कोई अपराध करते हैं तो वो किसके अधिकार क्षेत्र में होगा.बहरहाल अमरीकी विदेश विभाग की प्रवक्ता जेन साकी का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत में लगातार प्रगति हो रही है.

Posted By: Subhesh Sharma