गुजरात में गोधरा ट्रेन हादसे और इसके बाद हुए दंगों की जांच के लिए दो आयोगों का गठन हुआ था. ये आयोग थे नानावती आयोग और यूसी बनर्जी समिति.

यूसी बर्नजी समिति ने अपनी रिपोर्ट पूर्व में दे दी है जबकि नानावती आयोग का कहना है कि वो मार्च महीने के अंत तक अपनी अंतिम रिपोर्ट देगा। नानावती आयोग ने 2008 में अपनी रिपोर्ट का एक हिस्सा दिया था जो गोधरा में ट्रेन जलाए जाने से जुड़ा था। दंगों के बारे में उनकी रिपोर्ट इस वर्ष मार्च तक आ सकती है।

नानावती आयोग का गठन मार्च 2002 में तीन महीने के लिए हुआ था जिसके बाद इसकी कार्य अवधि 16 बार बढ़ाई जा चुकी है। आयोग की एक रिपोर्ट 2008 में आई थी। रिपोर्ट के अनुसार गोधरा में साबरमती ट्रेन के डिब्बों का जलना एक षडयंत्र का हिस्सा था। आयोग ने यह भी कहा है कि इस मामले में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई भूमिका नहीं है। हालांकि इस अंतरिम रिपोर्ट की कड़ी आलोचना हुई जिसके बाद आयोग की कार्य अवधि बार बार बढ़ाई जाती रही।

बीच में आयोग ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछताछ करने की कोशिश की थी लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी यह मांग खारिज़ कर दी है। अब आयोग को गोधरा के बाद हुए दंगों के मामले में अपनी रिपोर्ट पेश करनी है।

यूसी बनर्जी समिति रिपोर्ट

यूसी बनर्जी समिति का गठन केंद्र सरकार ने 2005 में उस समय किया था जब लालू प्रसाद रेल मंत्री थे। बनर्जी समिति ने लंबी जांच के बाद 2006 में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया कि कि गोधरा में ट्रेन जलने की घटना साज़िश नहीं थी बल्कि मात्र एक दुर्घटना थी।

बनर्जी समिति की रिपोर्ट को संसद में पेश करने की कोशिश भी की गई लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इतना ही नहीं आगे चलकर ट्रेन के एक यात्री ने बनर्जी समिति के गठन को चुनौती दी जिस पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बनर्जी समिति का गठन अवैध था।

कुल मिलाकर अभी भी गोधरा ट्रेन कांड और उसके बाद के दंगों को लेकर किसी की ज़िम्मेदारी तय नहीं हुई हैं हां ये ज़रुर है कि अदालत ने साबरमती ट्रेन जलाए जाने के मामले में 31 लोगों को सज़ा सुनाई है।

ट्रायल कोर्ट ने गोधरा में ट्रेन जलाने के आरोप में 20 लोगों को आजीवन कारावास और 11 लोगों को मौत की सज़ा दी है। हालांकि इस मामले में गिरफ़्तार 63 लोगों को बाइज्जत बरी भी किया गया है।

इतना ही नहीं अलग अलग स्थानों पर अदालतों ने दंगा करने के आरोप में भी 31 लोगों को सज़ाएं दी हैं जिसमें से सरदारपुरा में बीस से अधिक लोगों को सज़ा दिए जाने का महत्वपूर्ण फैसला शामिल है।

मानवाधिकार आयोग

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गोधरा कांड की जाँच के लिए गठित दो आयोगों की अलग-अलग रिपोर्टों को पक्षपातपूर्ण रिपोर्टें कहा है। 2008 में नानावती आयोग की रिपोर्ट आने के बाद मानवाधिकार आयोग ने दावा किया कि सरकार गठित ऐसे आयोगों के पास कोई स्वतंत्रता नहीं होती।

गोधरा कांड पर नानावती और बनर्जी आयोग की रिपोर्टों का हवाला देते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस एस राजेंद्र बाबू ने कहा कि किसी भी जाँच आयोग के लिए यह उचित नहीं कि वह पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट पेश करे क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम होते हैं।

उनका कहना था, "सामान्य तौर पर एक चीज़ जो नहीं होनी चाहिए वो है पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट। लेकिन नानावती और बनर्जी, दोनों आयोगों ने पक्षपातपूर्ण रिपोर्टें दी हैं."

Posted By: Inextlive