उत्ताराखंड में आई त्रासदी के बाद जान बचाने के लिए जंगलों का सहारा लेना पड़ा. खाना पहले ही खत्म हो चुका था. यूं लग रहा था कि भूख से ही मर जाऊंगी. दूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा था. अंत में जान बचाने के लिए जंगल में चौलाई व लीगडे नामक हरी घास खाकर जान बचाई. प्यास बुझाने के लिए पहाड़ों से गिरते झरने का पानी पिया. यह कहना है गीता चौहान का. ऐसी ही कहानी उनके साथ गए सात और लोगों की भी है.

14 जून को केदारनाथ यात्रा पर गए लोगों में रोहिणी, दिल्ली के रमेश एंक्लेव से आठ लोग चार धाम की यात्रा पर निकले थे. सभी एक ही परिवार के थे. यात्रा में तीन बच्चे शामिल थे. परिवार के एक अन्य सदस्य मुकेश उस दर्दनाक मंजर को अब तक नहीं भुला पा रहे हैं. कहते हैं कि अपनी जान की तो फिक्र नहीं थी, लेकिन साथ में जो बच्चे थे उनकी चिंता थी. 15 जून को सभी लोग दर्शन के लिए केदारनाथ की ओर आगे बढे़. केदारनाथ की तबाही का भयावह रूप खुली आंखों से देखा. जान बचाकर सभी लोगों ने पहाड़ के जंगलों का सहारा लिया.

सात दिन तक वे उसी पहाड़ में भटकते रहे. इस दौरान जलखोरी गांव में बाघ के आने की खबर ने पहाड़ी पर फंसे सभी लोगों को दहला दिया. ड्राइवरों ने गाड़ियों की लाइटें जला कर हार्न बजाना शुरू कर दिया. कुछ देर बाद बाघ वहां से भाग निकला। तभी बोर्ड पर लिखी जानवरों से सावधान रहने की चेतावनी पर नजर गई। इससे सभी लोग और भयभीत हो गए.

इसी परिवार की आरती कहती हैं कि प्राकृतिक आपदा के बाद पत्थरों के नीचे दबे लोग, पानी में बहते शव और चारों ओर मौत का मंजर नजर आ रहा था. कुछ ऐसे लोग भी नजर आ रहे थे जो गहने व कीमती सामान लूट रहे थे. दर्शना का कहना है कि केदारनाथ में फंसे लोगों के पास खाने को कुछ नहीं बचा तो कुछ लोगों ने अपना खाना दिया. धीरे-धीरे सभी का खाना खत्म हो गया. आठ लोगों के लिए खाना कम था.
स्थानीय लोगों के बताने पर पहाड़ी हरी घास खाई. त्रासदी के बाद लगातार दो दिन तक कोई सरकारी सुरक्षा नहीं मिली. हर पल मौत सामने थी. इस दौरान बीमार लोगों को चिकित्सा विभाग से दवा कम आश्वासन ज्यादा मिल रहे थे. 18 जून को सेना मदद के लिए पहुंची.

Posted By: Satyendra Kumar Singh