20 फीसद लड़कियों की शादी बालिग होने से पहले से पहले ही हो गई। 23 फीसद लड़के बालिग होने से पहले दूल्हा बन गए...

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VARANASI: बाल विवाह पर आधारित सीरियल बालिका वधू के किरदार आनंदी और जगिया सबके जेहन में हैं. बाल विवाह के चलते दोनों की जिदंगी में तमाम उलझने, परेशानियां और पारिवारिक तनाव भी पैदा हुए. बनारस में भी ऐसे आनंदी और जगिया की संख्या अच्छी खासी है. कानून होने बावजूद बाल विवाह थम नहीं रहा. जिले में करीब 20 फीसद लड़कियों की शादी कच्ची उम्र में हुई. 23 फीसद लड़कों की शादी 21 साल से पहले कर उन पर जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया गया.

शहर भी नहीं पीछे
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि बाल विवाह सिर्फ ग्रामीण इलाकों की समस्या नहीं है, बल्कि शहर में भी तमाम ऐसी फैमिली है जो अपरिपक्व बच्चों की शादी कर देते हैं. आंकड़े बताते हैं कि शहर में 12 और ग्रामीण इलाकों में 27 फीसद लड़कियों की शादी कानूनी उम्र से पहले हो चुकी है. लड़कों की बात करें तो यह आंकड़ा शहर में 14 और गांवों में 33 फीसद है.

शरीर में हो रहा बदलाव
मानव शरीर के अनुसार 20 से 24 साल की उम्र में लड़कियां शादी लायक होती हैं इसी तरह 25 से 29 साल की उम्र में लड़के शादी के लिए परिपक्य होते हैं. लेकिन बदलती लाइफ स्टाइल और खानपान का असर है कि कम उम्र के बच्चों का शरीर तेजी से विकसित हो रहा है. शरीरिक विकास तो समय से पहले हो रहा लेकिन उस अनुपात में मानसिक विकास नहीं हो पाता है. शरीर के विकास को देखते हुए मां-बाप बच्चों की शादी उनके बालिग होने से पहले कर देते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि 15 से 19 साल की उम्र में मां बन जाने या गर्भवती होने वाली लड़कियों की तादाद वाराणसी में लगभग 4 फीसदी है. ये बच्चे परिवार की जिम्मेदारी उठा नहीं पाते हैं. इससे परिवार में तनाव हो रहा और बिखराव भी बढ़ रहा है.

12 परसेंट शहरी लड़कियों की शादी हो रही हैं कम उम्र में.

27 परसेंट गांव की लड़कियों की शादी कच्ची उम्र में हो रही है.

14 परसेंट शहर के लड़कों की शादी 21 साल से पहले हो रही है.

33 परसेंट लड़कों की शादी गांवों में हो रही है जल्दी.

2 परसेंट शहर की लड़कियां 15 से 19 साल की उम्र में बन गयी मां.

7 परसेंट गांव की लड़कियां बालिग होने से पहले बन गई मां.

बाल अधिकार का हनन
बाल विवाह या कम उम्र या नाबालिग की शादी असलियत में जबरिया विवाह है. खासतौर पर लड़कियों की इसमें रजामंदी न होती है और न लेने की जरूरत समझी जाती है. इसीलिए यह बाल अधिकार और मानवाधिकार का हनन है.

अधिवक्ता
जल्दी शादी होते ही लड़कियों पर जल्दी मां बनने का सामाजिक दबाव होता है. यह कच्ची उम्र में जल्दी जिम्मेदारी लादने की शुरुआत होती है. वहीं कम उम्र में शादी से लड़के पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ जाती है. जिसकी उम्र खुद के खेलने-खाने की है वह परिवार का पेट पालने के लिए परेशान होता है. इससे लड़के और लड़कियां दोनों में तनाव आता है और इसका परिणाम बिखराव के रूप में सामने आता है.

समाजशास्त्री
शरीर में आने वाले खास बदलाव ही शादी कर देने की ओर इशारा करते हैं. उम्र नहीं, बल्कि यह बदलाव ही बालिग होने की पहचान है. इसलिए आमतौर पर हमारा समाज लड़के-लड़कियों की शादी उम्र देख कर नहीं करता है. खासतौर पर लड़कियों के साथ तो यही होता है. इसीलिए ये शादियां हमें अटपटी नहीं लगती हैं.

मनोवैज्ञानिक

Posted By: Vivek Srivastava