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-इंजीनियरिंग या मेडिकल तक ही बच्चों को सीमित रखना गलत

-सिविल सर्विसेज से लेकर दूसरे कई क्षेत्रों में हैं असीम संभावनाएं

prakashmani.tripathi@inext.co.in

PRAYAGRAJ: कुछ साल पहले आई फिल्म थ्री इडियट्स का फेमस डायलॉग था, 'काबिल बनो, काबिलियत झख मारकर पीछे आएगी.' यह फिल्म सबने देखी होगी, लेकिन बात जब इस डायलॉग को अप्लाई करने की आई तो भूल गए. एग्जाम आते ही बच्चों पर अच्छे परसेंटेज लाने का प्रेशर. कॅरियर को लेकर चुनिंदा फील्ड्स में से चुनाव करने का प्रेशर. जबकि सोसाइटी में कई ऐसे उदाहरण हैं. जिन्होंने दसवीं व 12वीं में कम नंबर्स पाए. मेडिकल और इंजीनियरिंग में कॅरियर नहीं बनाया. लेकिन आज वह विभिन्न क्षेत्रों में टॉप पोजीशन होल्डर हैं. आइए आज पढ़ते हैं कुछ ऐसी ही सक्सेस स्टोरीज, जो नंबर्स या परसेंटेज से नहीं, जज्बे और च्वॉइस से लिखी गई..

1.

मेडिकल के रास्ते सिविल सेवा की ओर

कौन: आनंद प्रकाश तिवारी

क्या: आईएएस

हाईस्कूल: 56 परसेंट, 1991, यूपी बोर्ड

इंटरमीडिएट: 50 परसेंट, 1993, यूपी बोर्ड

देवरिया के रहने वाले आनंद प्रकाश तिवारी के पैरेंट्स उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन आनंद का इसमें इंट्रेस्ट नहीं था. पैरेंट्स की दबाव में वह प्रयागराज आ गए. मेडिकल की तैयारी के लिए कोचिंग भी ज्वॉइन कर ली, एक महीने बाद भी वह खुद को इसके लिए कन्विंस नहीं कर पाए. इसी बीच उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीए में एडमिशन के लिए टेस्ट भी दिया था. दूसरी लिस्ट में एडमिशन के लिए नाम आ गया तो बीए करने लगे. बीए के बाद फिलॉसफी में पीजी किया और सिविल की तैयारी शुरू कर दी. पहले दो प्रयास में उनका सेलेक्शन नहीं हुआ. चौथी बार में वह आईपीएस के लिए सेलेक्ट हुए, जहां असम काडर मिला. वह आसाम स्टेट के पहले आईपीएस बने, जिसे प्रतिनियुक्ति पर आईएएस कैडर में पोस्टिंग मिली है. फिलहाल वह आसाम स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में एमडी के पद पर तैनात हैं.

यह है इनका मैसेज

पैरेंट्स बच्चों के टैलेंट का आंकलन उनके मा‌र्क्स के दमपर रखते हैं. जबकि विषय के चयन में मनमानी पैरेंट्स की चलती है. जरूरी नहीं कि हर बच्चा सिर्फ मेडिकल या इंजीनियरिंग के फील्ड में ही कॅरियर बनाए. बच्चे को कॅरियर सेलेक्शन का मौका दें जिससे वह अपना बेस्ट दे सके. पैरेंट्स बच्चों के पोटेंशियल को समझें और असफलता के कारणों पर फोकस करते हुए उन्हें दूर करने में बच्चों की मदद करें.

2.

मौजूदा दौर में है करियर के कई आयाम

कौन: सत्येंद्र कुमार सिंह

क्या: असिस्टेंट कमिश्नर, जीएसटी

हाईस्कूल: 69 परसेंट, 1993, यूपी बोर्ड

बच्चे की रुचि के आधार पर शिक्षा दी जाए. पैरेंट्स अपनी फेल्योर को बच्चों पर न थोपें. न ही दूसरे बच्चों से कंपेयर करें. उसके नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर जोर दें. बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने पर फोकस करें, जिससे बच्चा बेहतर कॅरियर चुन सके. नंबर पाने की होड़ से विकास नहीं होता है. -डॉ. कमलेश तिवारी

प्रधानाध्यापक

उत्तर प्रदेश मनोविज्ञानशाला

पढ़ने वाले बच्चों पर इस बात को लेकर तो प्रेशर बनाया जा सकता है कि वह डिसिप्लिन में रहें. कॅरियर के सलेक्शन को लेकर प्रेशर बनाना गलत है. कई बार पैरेंट्स अपनी फेल्योर को बच्चों के जरिए हासिल करना चाहते है. कई बार अपने प्रोफेशन में बच्चों को इनवॉल्व करना चाहते हैं. ऐसा न करके उन्हें वही करने दें जो वह करना चाहते हैं. उनका डिसीजन कई बार मैच्योर नहीं होता लेकिन यह उनके मन का होता है तो वह उसे मन से करते भी हैं.

-डॉ. हेमलता श्रीवास्तव

वरिष्ठ समाजशास्त्री

इंटरमीडिएट: 50 परसेंट, 1995, यूपी बोर्ड

मुरादाबाद में असिस्टेंट कमिश्नर जीएसटी के पद पर तैनात सत्येन्द्र कुमार सिंह मूलरूप से आजमगढ़ के रहने वाले हैं. उन्हें भी पैरेंट्स डॉक्टर बनाना चाहते थे. लेकिन हाईस्कूल में 69 व इंटरमीडिएट में 66 प्रतिशत अंक हासिल करने के बाद सत्येन्द्र कुमार को नहीं लगता था कि वह मेडिकल क्षेत्र में बेहतर कर सकेंगे. पैरेंट्स के प्रेशर इलाहाबाद आए. मम्फोर्डगंज में किराए पर रहते हुए उस समय की सिटी की फेमस कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन भी ले लिया. उन्होंने शुरू में बीएससी में एडमिशन भी लिया था. एक ही साल बाद बीएससी छोड़कर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए करने लगे. पीजी करने के बाद सिविल की तैयारी करने लगे. 2002 में उनका सेलेक्शन यूपी पीसीएस के लिए हुआ.

यह है इनका मैसेज

आज के समय में जरूरी है कि बच्चे जीवन में बहुआयामी व्यक्तित्व को देखें, इसके बाद कॅरियर का सलेक्शन करें. पैरेंट्स के लिए भी जरूरी है कि वह बच्चों पर बिना वजह प्रेशर बनाने के स्थान पर सही दिशा में सोचे और बच्चों को प्रोत्साहित करें. दसवीं या 12वीं के बाद ही असली संभावनाएं शुरू होती हैं. ऐसे में बेहतर कॅरियर के लिए अन्य क्षेत्रों के बारे में भी जानकारी एकत्र करें.

तैयारी मेडिकल की बन गए पीसीएस

कौन: देवेन्द्र प्रताप सिंह

क्या: बीडीओ

हाईस्कूल: 58 परसेंट, यूपी बोर्ड

इंटरमीडिएट: 55 परसेंट, यूपी बोर्ड

आजमगढ़ के ही रहने वाले देवेन्द्र प्रताप सिंह की कहानी भी काफी हद तक पहले के दो लोगों जैसी ही है. पैरेंट्स के सपने को साकार करने के प्रेशर में उन्होंने मेडिकल में एडमिशन की तैयारी शुरू कर दी. बाद में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए में एडमिशन ले लिया. ग्रेजूएशन के बाद ज्योग्राफी से पीजी किया और सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गए. इस बीच पैरेंट्स भी ताना मारते कि अगर मेडिकल की पढ़ाई करते तो आज बेहतर डॉक्टर रहते, लेकिन उन्होंने सभी बातों को इग्नोर करते हुए तैयारी जारी रखी. आखिरकार 2013 में उनका सेलेक्शन पीसीएस में हुआ. वर्तमान में वह प्रतापगढ़ डिस्ट्रिक्ट के मान्धाता में पोस्टेड है.

यह है इनका मैसेज

पैरेंट्स के दबाव में कई बार बच्चे अपना बेस्ट नहीं दे पाते हैं. जबकि कई ऐसी फील्ड है, जहां पर बच्चों को मौका मिले तो वह बेस्ट कर सकते हैं. ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए कि वह बच्चे से लगातार बात करते रहें.

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Posted By: Vijay Pandey