पहले के समय में भी लोग बहुत कुछ वास्तु की दृष्टि से देखकर करते थे। वास्तव में तब घरों में वास्तु की दृष्टि से सामंजस्य बना रहता था।

जहां कोई व्यक्ति स्वयं से या अपने काम से खुश या संतुष्ट होता है, वहीं कोई स्वयं से ही नाखुश रहता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अपने जतन के बावजूद उसको सही परिणाम नहीं मिल पाता है। बहुत चाहकर भी वह यह नहीं समझ पाता है कि ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा है। जब भी ऐसा हमारे साथ हो, तो हमें सजग हो जाना चाहिए कि क्या हमारा कार्यक्षेत्र, हमारा घर वास्तु अनुकूल है? पहले के समय में भी लोग बहुत कुछ वास्तु की दृष्टि से देखकर करते थे। वास्तव में तब घरों में वास्तु की दृष्टि से सामंजस्य बना रहता था।

1. जैसे पहले लोग घर का उत्तर-पूर्व खुला रखते थे ताकि वहां उस दिशा से हवा तथा सूर्य की रोशनी पूरी तरह से आ सके। यह आज भी उतना ही जरूरी है। इस दिशा के साफ होने और यहां सूर्य की रोशनी आने से घर के लोगों को मानसिक शांति का अनुभव होगा और जब सूर्य उदय होगा तो सूर्य की किरणें घर में आएंगी, जिससे नकारात्मक ऊर्जा जल्दी घर में प्रवेश नहीं करेगी।

2. उत्तर-पूर्व में पूजा घर हो तो और भी अच्छा है क्योंकि यहां पूजा करने से व्यक्ति ईश्वर के साथ स्वयं का जुड़ाव महसूस करेगा। उसकी अपने जीवन में मानसिक स्पष्टता बढ़ेगी। यहां पूजा में जाप लाभ देगा।

3. यदि यहां नित्य ध्यान-साधना करेगा तो बहुत फायदा देगा। उसके ध्यान में प्रगाढ़ता आनी शुरू हो जाएगी, जिससे उसको जीवन में अपने छोटे-बड़े फैसले लेने में सहायता मिलेगी।

4. देखा जाए तो जीवन में हमारे द्वारा लिए हुए फैसले ही हमें आगे बढ़ाते हैं। यदि यहां बच्चों का कमरा, पढ़ाई का कमरा होगा तो उनका ध्यान भी पढ़ाई में लगेगा। वह अपने करियर के प्रति सजग व गंभीर होंगे। यह उनके शयन के लिए भी अच्छा है।

5. पहले के समय घर के मुख्य द्वार के पास पूरी तरह से साफ—सफाई का ध्यान रखा जाता था। घर के मध्य आंगन बनाते थे। आज के समय में यह हर जगह संभव नहीं है पर हां साफ—सफाई घर के मुख्य द्वार के पास होनी जरूरी है, जिससे कि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश घर में हो।

6. घर में मुख्य द्वार के पास बाहर या अंदर की तरफ काला क्रिस्टल रखें, जिससे कि कोई व्यक्ति यदि किसी बुरी नीयत या ख्याल से भी आ रहा है, तो वह नकारात्मक ऊर्जा अंदर नहीं आती।

यदि आज भी हम इन बातों का, वास्तु का ध्यान रखते हैं तो आने वाली कई समस्याओं से बचा जा सकता है और हम अपना जीवन सरल और सुखमय बना सकते हैं। सच में देखा जाए तो यह ज्ञान है भी इसीलिए। पर हम जीवन में सजग तब होते हैं, जब हम स्वयं के जीवन में, रिश्तों में, कार्यों में, स्वास्थ्य में बहुत असहजता महसूस करने लगते हैं। बहुत बार तो यह भी देखने में आता है कि तब भी ध्यान इस तरफ जाता ही नहीं है।

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Posted By: Kartikeya Tiwari