Gorakhpur : आई नेक्स्ट के स्टिंग के दौरान रिपोर्टर और शॉपकीपर के डायरेक्ट इंटरैक्शन से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिटी कितनी सेफ है. इससे यह बात भी सामने आती है कि महज चंद रुपयों के लिए शॉपओनर्स अपने ईमान के साथ सिटी की सेफ्टी को बेच रहे हैं. सिटी की सेक्योरिटी को तार-तार करने वालों को सजा देने वाला कोई नहींहै. उन्हें डर हो भी कैसे जब खुले आम फेक आईडी और बिना आईडी के सिम मिलने के बावजूद उन्हें न तो कोई मना करने वाला है और न ही रोकने वाला. यह हालत सिर्फ मार्केट की ही नहीं बल्कि खुद बीएसएनएल में ऐसे दो केस हो चुके हैं जिससे उनकी वेरिफिकेशन प्रॉसेस पर भी सवाल उठ रहे हैं.

रिपोर्टर - एक सिम चाहिए.
शॉपकीपर -
मिल जाएगा।
रिपोर्टर - लेकिन मेरे पास आईडी प्रूफ नहीं है?
शॉपकीपर - किसी और शहर का भी नहीं है?
रिपोर्टर - नहीं।
शॉपकीपर - सिम मिल तो जाएगा, लेकिन एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे।
रिपोर्टर - कितने?
शॉपकीपर - 100 रुपए।
रिपोर्टर - दे दो, लेकिन बंद नहीं होगा न?
शॉपकीपर - नहीं बंद नहीं होगा, एक्टिवेट करवाकर दूंगा।
केस वन -
2011 अप्रैल में बीएसएनएल में आईडी वेरिफिकेशन न होने की वजह से चार ऐसे पोस्टपेड सिम एलॉट कर दिए गए, जिससे कि उन्होंने लाखों रुपए की बातें कर डाली। इसके बाद भी मामला नहीं खुला, करीब दो मंथ के बाद जब सर्किल ऑफिस से वेरिफिकेशन हुआ उसमें यह बात सामने आई। तब तक वह कंपनी को लाखों का चूना लगा चुके थे और उसके बाद वह सिम बंद करके फरार हो गए। बीएसएनएल की जांच में सामने आया कि जिन आईडी पर सिम एलॉट किए गए थे, वह फेक आईडी थी। नाम और एड्रैस दोनों ही फर्जी था। वेरिफिकेशन न होने का खमियाजा खुद विभाग के लोगों को भुगतना पड़ा और कॉमर्शियल ऑफिसर समेत तीन लोगों को सस्पेंड कर दिया गया। कर्मचारियों को तो उन्होंने सस्पेंड कर दिया लेकिन 70 लाख रुपए की वसूली न कर पाए और इस तरह से विभाग को लाखों की चपत झेलनी पड़ी।
केस टू -
पहली गलती से सबक न लेते हुए बीएसएनएल को दोबारा हजारों की चपत लगी। एयरटेल का एक वीआईपी नंबर जो पोर्टिंग के थ्रू बीएसएनएल में आया उसे बीएसएनएल ने बिना वेरिफिकेशन के लिए एक्सेप्ट कर लिया। इस नंबर का न तो फिजिकल वेरिफिकेशन किया गया और न ही टेलीफोनिक वेरिफिकेशन, नतीजा 20 हजार रुपए की बात कर उस कस्टमर ने किसी और कंपनी में अपना नंबर पोर्ट करा लिया। इस तरह से उन्हें दोबारा हजारों की चपत का सामना करना पड़ा।
इन दोनों ही केसेज में जो बात सामने आई वह थी विभागीय लोगों की लापरवाही। अगर वे फिजिकल वेरिफिकेशन कर लेते तो शायद विभाग को लाखों की चपत नहीं लगती। यह तो हो गई डिपार्टमेंट को नुकसान होने की बात। वहीं देश में कई ऐसी क्रिमिनल एक्टिविटीज हुई हैं, जिनमें फेक आईडी पर सिम लिए गए और उनसे देश को सिर्फ नुकसान ही उठाना पड़ा है। वहीं फेक आईडी पर लिए गए सिमों का सिर्फ मिस यूज ही हुआ है, या तो उनसे जमकर बात की गई है और उनका पेमेंट नहीं किया गया है या तो वह किसी न किसी अपराधिक घटना में इनवॉल्व हुआ है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए बीएसएनएल ने लास्ट इयर डीएल पर सिम एलॉट करना बंद कर दिया था, लेकिन मार्केट में सेल डाउन होने के बाद उन्होंने इसपर दोबारा एलॉटमेंट शुरू कर दिया।
बिना रोक टोक मिल रहा सिम
सिटी में ऐसी बहुत सी शॉप्स है जहां आसानी से बगैर किसी रोक टोक और आईडी प्रूफ दिएसिम मिल जाएंगे। इसके लिए यह जरूरी भी नहीं है कि वह शॉपओनर आपको जानता पहचानता हो। बस आपने पैसा खर्च किया और आपको सिम मिल गया। सिम लेने और एक्टिवेशन के बीच के प्रॉसेस को शॉपओनर्स काफी चालाकी से निपटाते हैं। पहले तो वह कस्टमर्स को बिना आईडी के सिम इशु कर दे रहे हैं और दो तीन दिन बाद बुलाकर वेरिफिकेशन करवाकर सिम स्टार्ट कर दे रहे हैं या वह दूसरा तरीका यह अपना रहे हैं कि पहले से सिम एक्टिवेट कर ले रहे हैं और आईडी न देने वाले कस्टमर्स को वह सिम एलॉट कर दे रहे हैं।
वेरिफिकेशन के नाम पर सिर्फ फॉर्मेल्टी
सिम एलॉटमेंट में कोताही सिर्फ शॉपकीपर्स के एंड से नहीं है बल्कि सिम एलॉट करने वाली मोबाइल कंपनीज भी बराबर की जिम्मेदार हैं। अगर सिम एलॉटमेंट के बाद वेरिफिकेशन की बात की जाए तो सिवाए फॉर्मेल्टी वेरिफिकेशन के और कुछ नहीं हो रहा है। वेरिफिकेशन की बात की जाए तो अगर आपको यह पता हो कि जो सिम आपने लिया है उसका मोबाइल नंबर, नाम, फादर नेम और अड्रैस क्या है तो आपका सिम एक्टिवेट करने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि वेरिफिकेशन के दौरान सिर्फ इन्हीं चीजों को वेरिफाई किया जाता है, अगर यह सब मैच कर जाते हैं तो आपका सिम कुछ घंटो में एक्टिवेट हो जाएगा।
कंपनीज का प्रेशर है वजह
सिम एलॉटमेंट के दौरान डीलर्स द्वारा बर्ती जाने वाली कोताही की एक वजह और भी है। वह है मोबाइल कंपनीज द्वारा दिए गए टारगेट को एचीव करने का प्रेशर। सभी कंपनीज अपने डिस्ट्रिब्यूटर को एक फिक्स टारगेट देती है कि उन्हें हर मंथ में इतनी क्वांटिटी में नए कनेक्शन देने हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक प्राइवेट कंपनी के डिस्ट्रिब्यूटर ने बताया कि कंपनीज सिर्फ प्रेशर ही नहीं डालती बल्कि वह तरह तरह के लुभावने ऑफर भी देती है कि 100 एक्टिवेशन पर फलां प्राइज, 500 एक्टिवेशन पर फलां प्राइज। लालच में मोबाइल डिस्ट्रिब्यूटर और शॉपओनर्स खुद ही सिम एक्टिवेट करा देते हैं और स्कीम का फायदा उठा लेते हैं। बाद में वह उन सिम को बिना आईडी प्रूफ लिए ही बेच देते हैं।


report by : syedsaim.rauf@inext.co.in

Posted By: Inextlive