-दोपहर 01:10 बजे से अपराह्न 01:53 बजे तक रहेगा विजय मुहुर्त

-इस दिन के विशेष योग-सवार्थ सिद्ध योग, अमृत योग एवं गजकेशरी योग

BAREILLY :

विजया दशमी का पूजन अपरान्ह व्यापनी आश्रि्वन शुक्ल पक्ष दशमी को किया जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार इस पर्व के लिए श्रवण नक्षत्र युक्त, प्रदोष व्यापनी, नवमी, विजयादशमी प्रशस्त होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का आरम्भ ही विजय योग माना गया है।

दो दिन रहेगी दशमी

इस वर्ष आश्रि्वन शुक्ल दशमी 18 अक्टूबर को अपराह्न 03:29 बजे से आरम्भ होकर 19 अक्टूबर 2018 को सायं 05:57 बजे तक है। श्रवण नक्षत्र 17 अक्टूबर को रात्रि 09:28 बजे से आरम्भ होकर 18 अक्टूबर 2018 को रात्रि 12:34 बजे तक रहेगी। इस प्रकार श्रवण नक्षत्र केवल 18 अक्टूबर को ही दशमी के साथ विद्यमान है। निर्णय सिन्धु के अनुसार विजय मुहूर्त 18 अक्टूबर 2018 को दोपहर 01:14 बजे से 03:28 बजे तक है। उसी समय आश्रि्वन शुदी नवमी समाप्त होगी अर्थात् अपराह्न काल में दशमी तिथि का स्पर्श नहीं होगा। 19 अक्टूबर 2018 शुक्रवार को दशमी प्रदोष काल तक होने के कारण यह अपराह्न काल एवं विजय मुहूर्त दोनो को स्पर्श करेंगी। अत: विजय दशमी दशहरा मनाना 19 अक्टूबर 2018 को शास्त्र अनुसार उचित है।

विजय की प्राप्ति के लिए शुभ

इस पर्व के प्रमुख कर्म में दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाण, शमी पूजन तथा नवरात्रा पारण है। आश्रि्वन मास शुक्ल पक्ष की दशमी में विजय मुहूर्त का ही विशेष महत्व है, इस दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त में विजय मुहूर्त दोपहर 01:10 बजे से अपराह्न 01:53 बजे तक रहेगा। स्वयं सिद्ध मुहूर्त में लग्न शुद्धि का विचार नहीं माना जाता है। इस दिन प्रात: 06:26 बजे से 10:39 बजे तक चर, लाभ, अमृत का चौघडि़या मुहूर्त एवं वृश्चिक लग्न भी रहेगी इसके बाद दोपहर 12:04 बजे से 01:28 बजे तक शुभ का चौघडि़या भी रहेगा। इस दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त होने के कारण नवीन उद्योगों का आरम्भ, वाहन खरीदना, समस्त कायरें का शुभारम्भ सफलतादायक एवं लाभदायक रहेगा। अत: उपरोक्त चौघडि़या मुहूर्त एवं स्थिर लग्न में खाता पूजन आदि करना अत्यन्त शुभ रहेगा। दशहरा जहां बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है, वहीं यह दिन विजय की प्राप्ति के लिए पूजा उपासना के लिए बहुत शुभ है।

'विजया' नाम के कारण विजयादशमी

इस दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवास भोग कर तथा रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इस पर्व को भगवती के 'विजया' नाम के कारण भी विजयादशमी कहते हैं। कालिका पुराण के अनुसार महानवमी को रावण वध हुआ था, कृतज्ञता प्रकट करने के लिए देवताओं ने उस दिन देवी की सेवा में विशेष पूजन सामग्री चढ़ाई थी, विजयादशमी के दिन इन्होंने देवी को स्थापित किया था। इस दिन अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन की विशेष बात यह है कि इस दिन सवार्थ सिद्ध योग, अमृत योग एवं गजकेशरी योग भी बन रहा है। इस दिन नीलकण्ठ नामक पक्षी के दर्शन करना अत्यन्त शुभ माना जाता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए भी शमी वृक्ष के पास जाकर विधिवत् शमीदेवी का पूजन करना चाहिए, इस दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजन, ब्राह्माण सरस्वती पूजन एवं वैश्य वही पूजन करने का ि1वधान है।

कैसे मनाये विजयादशमी

पूजन विधि:- इस दिन घरों में दशहरा पूजन के लिए आटे अथवा गेरू से दशानन बनाकर उसके ऊपर जल, रोली, चावल, मोली, गुड़, दक्षिण, फूल, जौ के झंवारे अथवा मूली चढ़ाएं तथा दीपक, धूप बत्ती लगाकर आरती करें, परिक्रमा करें, तत्पश्चात् दण्डवत् प्रणाम करके पूजा के बाद हांडी में से रूपए निकालकर उस पर जल, रोली, चावल चढ़ाकर अलमारी में रख लें। वही पर नवरात्र का नवांकुर भी चढ़ाए एवं कलम-दवात का पूजन भी करें। शस्त्र, शास्त्र एवं पुस्तक पूजन भी करें।

अपराजिता पूजन:- अपराजिता देवी यात्रा, कायरें में सफलता और युद्ध प्रतिस्पद्र्धा में विजय दिलाने वाली देवी हैं। विजयदशमी पर इसकी पूजा सायंकाल की जाती है।

किनकी होगी पूजा:- एक थाली में चन्दन से मध्य में अपराजिता देवी, बाईं ओर उमादेवी और दायीं ओर जया देवी का चित्र बनाए, इन तीनों देवियों की पूजा करें।

पहली पूजा जया देवी की:- निम्न मंत्र से आह्वान करें:ऊं क्रियाशक्त्यै नम:

इस मंत्र से पूजा करें: ऊं जयाये नम:,

दूसरी पूजा उमा देवी की: जया देवी के उपरान्त उमा देवी की पूजा निम्न मंत्र से आह्वान करें ऊं उपाये नम:, ऊं विजयाये नम:, इस मंत्र से पूजन करें.

प्रधान पूजा: प्रधान पूजा में अपराजिता देवी की पूजा की जाती है। इस हेतु अपराजिता देवी का आह्वान एवं पूजन निम्न मंत्र से करें, ऊं अपराजितायै नम:.

तीसरी देवी शमी देवी: इमां पूजा मया देवी यथाशक्ति निवेदिता, रक्षार्थ तु समादाय व्रज स्वस्थानपुत्तम,

शमी पूजन: अमंगल, पाप नाश हेतु, विजय एवं कल्याण के लिए शमी के वृक्ष की पूजा की जाती है।

प्रदक्षिणा एवं संकल्प: शमी वृक्ष के पास जाकर उसकी प्रदक्षिणा करें एवं हाथ में अक्षत एवं पुष्पादि लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये संकल्प करें।

ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु: मम दुष्कृता अमंगलादिनिरासार्थ क्षेमार्थयात्रायां विजयार्थ

च शमीपूजां करिष्ये।

कैसे करें शमी पूजन: पूजन हेतु स्वस्तिवाचन, दिक्पाल पूजन एवं वास्तुपूजन करें तथा पंचोपचार या षोडशोपचार से निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये शमी वृक्ष का पूजन करें।

अमंगलानां शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च, दु:स्वप्ननाशिनी धन्यां प्रपद्येहं शमी शुभा।

अन्त में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये प्रार्थना करें।

शमी शमयते पापं शमी लोहितकंटका, धरित्रयर्जुवाणानां रामस्य प्रियवादिनी।

करिष्यमाणयात्रायां यथाकालं सुखम मया, तत्र निर्विघ्नक‌र्त्री त्वं भय श्रीरामपूजिते।

Posted By: Inextlive