आश्विन शुक्ल दशमी के सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है। वह सब कामों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध परविद्धा शुद्ध और श्रवण युक्त सूर्योदय व्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है जिसमें अपराह्न काल में दशमी तिथि की प्रधानता होती है।

आश्विन शुक्ल दशमी को श्रवण का संयोग होने से विजया दशमी होती है। ज्योतिर्निबंध मे लिखा है कि " आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजयो ज्ञेय: सर्वकार्यार्थसिद्धये।"

आश्विन शुक्ल दशमी के सायंकाल में तारा उदय होने के समय "विजयकाल" रहता है। वह सब कामों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध परविद्धा शुद्ध और श्रवण युक्त सूर्योदय व्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है, जिसमें अपराह्न काल में दशमी तिथि की प्रधानता होती है।

मुहूर्त


पूर्व दिन तिथि नवमी गुरुवार को 20-36 घट्यादि (दिन२:३२) तक नवमी है तथा इसके बाद दशमी आ जाती है जो अपराह्न काल के कुछ भाग में है तथा इसी दिन श्रवण नक्षत्र भी है। द्वितीय दिन तिथि दशमी शुक्रवार को दशमी 25/49 घट्यादि (दिन 4:39) तक है तथा दशमी तिथि की अपराह्न काल में पूर्ण व्याप्ति तथा सम्पूर्ण विजय लक्षण (विजय मुहूर्त दिन 1:54 से दिन 2:40) में है।

अपराजिता का पूजन

“ एकादशो मुहूर्तो यो विजयः परिकीर्तितः।

तस्मिन् सर्वैविधातव्या यात्रा विजयकांक्षिभि:।।(नवरात्रि प्रदीप)

अतः इस वचनानुसार 19 अक्टूबर 2018 को ही विजया दशमी मनानी चाहिए। इस दिन अपराजिता का पूजन किया जाता है। उसके लिए अक्षतादि के अष्टदल मृत्तिका की मूर्ति स्थापन :ऊँ अपराजितायै नमः' इससे अपराजिता का, ( उसके दक्षिण भाग में) 'ऊँ क्रियाशक्त्यै नमः' इससे जया का, (उसके वाम भाग में) 'ऊँ उमायै नमः' इससे विजया का स्थापन करके आवाहनादि पूजन करें।

मंत्र


'चारुणा मुख पद्मेन विचित्रकनकोज्वला।

जया देवि भवे भक्ता सर्व कामान् ददातु मे।।

काञ्चनेन विचित्रेण केयूरेण विभूषिता।

जयप्रदा महामाया शिवाभावितमानसा।।

विजया च महाभागा ददातु विजयं मम।

हारेण सुविचित्रेण भास्वत्कनकमेखला।

अपराजिता रुद्ररता करोतु विजयं मम।।'

इनसे जया-विजया और अपराजिता की प्रार्थना करके हरिद्रा से रँगे हुए वस्त्र में दूब और सरसों रखकर डोरा बनावें।

फिर इस मंत्र

'सदापराजिते यस्मात्त्वं लतासूत्तमा स्मृता।

सर्वकामार्थसिद्धयर्थं तस्मात्त्वां धारयाम्यहम्।।

इस मंत्र से उसे अभिमंत्रित करके-

'जयदे वरदे देवि दशम्यामपराजिते।

धारयामि भुजे दक्षे जयलाभाभिवृद्धये।।'

से उक्त डोरे को दाहिने हाथ में धारण करें। इस दिन शस्त्र और शमी पूजन भी होता है।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari