शानू ओलंगा के मर्डर के बाद वहां पिस्टल लेकर खड़े दो लोगों को पहचानने में पुलिस के तोते उड़ गए हैं. खुफिया तंत्र काम न आया और मुखबिर ढूढे न मिले.


आई नेक्स्ट में फोटो छपे दो दिन बीत चुके हैं लेकिन पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। मजबूर होकर दोनों लोगों के पोस्टर बनवाकर पब्लिक प्लेसेस पर लगावाने पड़ रहे हैं। सोर्सेज बताते हैं कि काम निकलने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह फेंक देने वाला पुलिस का प्रोफेशनल रवैया देखकर मुखबिरों का खाकी के ऊपर से भरोसा उठ गया है। वो भी अब ‘कॉमर्शियल’ हो गया है। यानि दाम दो सूचना लो। ठेके पर मुखबिरीशानू हत्याकांड में पुलिस के हाथ हत्यारों तक नहीं पहुंच पाए हैं। महकमे में मुखबिरों का अकाल पड़ गया है। पुलिस का रवैया देख नए दौर में मुखबिरों का तरीका भी बदल गया है। मुखबिर भी कॉमर्शियल हो चुके है। जल्दी कोई मुखबिरी के लिए तैयार नहीं होता और अगर हो भी गया तो मुंहमांगी रकम मांगता है। कई मामलों में तो वो पैकेज डील भी करने लगे हैं।


पूरा काम ठेके पर होने लगा है। सभी मुखबिर डायरेक्टली पुलिस से डील नहीं करते हैं। कोई एक लीडर डील करता है और सूचना पहुंचाता है। इस नए तरीके से मुखबिरों को पैसा तो मिलता ही है, पुलिस के सामने चेहरे न आने पर सुरक्षा की ज्यादा चिंता नहीं रहती है। ऐसे में मुखबिर की डिमांड को लेकर खींचतान मची हुई है। ज्यादा पैसे देकर एक-दूसरे के मुखबिर तोडऩे का खेल चल रहा है। It’s one way entry यह बात को जग जाहिर है कि पुलिस की न दोस्ती अच्छी और न दुश्मनी। ये बात मुखबिरों पर भी लागू होती है। यानि वन वे एंट्री। एक बार पुलिस का साथ देने के बाद वो अपने कदम पीछे नहीं खींच सकता। अगर इंफॉर्मेशन देना बंद किया तो पुलिस को पुरानी फाइलें खोलने में ज्यादा समय नहीं लगता। और अगर पुलिस के खिलाफ गए तो दुश्मन की गोली से बचना मुश्किल है। कुछ मुखबिरों ने पुलिस से दूरी बनाने की कोशिश की तो खाकी ने उनका जीना हराम कर दिया। हालात ऐसे कर दिए कि उन्होंने पुलिस हिरासत में सुसाइड तक करने की कोशिश की। किसी ने गर्दन काट ली तो किसी ने जहर पी लिया।एक मुखबिर, हजार दुश्मन

जान बचाने के लिए एक बार पुलिस का मुखबिर बनने पर हजार दुश्मन पैदा हो जाते हैं। उन्हें हर जगह, हर वक्त चौकन्ना रहना पड़ता है। पता नहीं दुश्मन कब और कहां हमला बोल दे। जरायम की दुनिया में मुखबिरी की सिर्फ एक ही सजा है, मौत। किसी मामले में अगर मुखबिर को जेल जाना पड़े तो वहां भी मुसीबतें कम नहीं होती हैं। जेल में पहले से मौजूद शतिर उसे अपना निशाना बनाते हैं। ना पैसे ना सुरक्षापुलिस सूत्रों ने बताया कि मुखबिर तंत्र फेल होने की एक वजह फाइनेंशियल हेल्प और सिक्योरिटी न मिलना है। पुराने पुलिस ऑफिसर्स सूचना की कीमत पर मुखबिर को पूरी सुरक्षा भी मुहैया कराते थे। मगर, अब पुलिस मतलब निकलते ही मुखबिरों को भी निपटाने लगती है। यही कारण है कि पुलिस का मुखबिर तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है।

Posted By: Inextlive