हादसों का कोई वक्त तय नहीं होता है. जहां तक वीवीआईपी-वीआईपी विजिट का सवाल है. कब कौन कहां और किस वक्त विजिट करेगा? इस प्रोटेकॉल का हर एक मूवमेंट पहले से तय होता है.


वीआईपी रोड पर दिनदहाड़े एक बाइक सवार युवक की हत्या के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि सिक्योरिटी के लिहाज से जिस रूट से वीवीआईपीज और वीआईपीज का आना-जाना लगा रहता है, हकीकत में वो कितनी सुरक्षित है? थर्सडे को आई नेक्स्ट ने वीआईपी रोड की सिक्योरिटी को लेकर जो रियलिटी चेक किया वो चौंकाने वाला था। तो चलिए आप भी जानिए वो हकीकत।न CCTV न पिकेट


एक नजर वीआईपी रोड पर मौजूद सुरक्षा के इंतजामों पर। जाजमऊ से रावतपुर तिराहे तक के लगभग 20 किमी। स्ट्रेच पर न के बराबर सुरक्षा इंतजाम हैं। एक-दो जगह पुलिस पिकेट और वहां मौजूद इक्का-दुक्का पुलिसकर्मी सुरक्षा इंतजामों की पोल खोलते नजर आते हैं। आश्चर्य यह कि संदिग्धों और अपराधियों पर नजर रखने के लिए पुलिस ने प्रमुख चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे इंस्टॉल करवा रखे हैं। मगर, हाईली सिक्योर्ड रूट वाले वीआईपी रोड पर एक भी सीसीटीवी कैमरा इंस्टॉल नहीं करवाया गया है। कहां से कहां तक

यूं तो जाजमऊ, कैंटोमेंट, मुरे कम्पनी पुल, मेघदूत तिराहा, स्टॉक एक्सचेंज चौराहा, पार्वती बांग्ला रोड, कम्पनी बाग चौराहे से रावतपुर तिराहे तक का रूट वीआईपी रूट कहलाता है। मगर, मेघदूत से रावतपुर तिराहे तक का एरिया ज्यादा अहम है। क्योंकि वीआईपी रूट के इस स्ट्रेच पर आम पब्लिक की आवाजाही भी रहती है। इसलिए वीवीआईपी-वीआईपी विजिट के दौरान सुरक्षा कारणों से दोनों ओर का ट्रैफिक या तो रोका जाता है या उसे डाइवर्ट कर दिया जाता है लेकिन उनके जाते ही फिर वही हाल हो जाता है।इस road को ही क्यों चुना?पुलिस की मानें तो शानू ओलंगा की हत्या को अंजाम देने से पहले क्रिमिनल्स पूरी रेकी करके गए थे। वीआईपी रोड पर कहां-कहां पुलिस पिकेट तैनात रहती है? अगर पिकेट के सिपाहियों से मुठभेड़ हो भी जाती तो उनके पास जंग लगे हथियार थे। जो शायद प्रतिबंधित बोर की 9 एमएम पिस्टल का मुकाबला न कर पाते। दूसरा, सीसीटीवी कैमरा नहीं होने की वजह से भी उन्हें पहचाना नहीं जा सकता था। तीसरा, डीएवी तिराहे वाली गली से भाग निकलना सबसे आसान था। यह कुछ संभावित वजहें हैं जिनके बेसिस पर कहा जा सकता है कि आखिर क्रिमिनल्स ने शानू को मारने के लिए वीआईपी रोड को ही क्यों चुना? तो पकड़ जाते वो

वीआईपी रोड भी सिर्फ नाम की है। जब-जब वीवीआईपीज और वीआईपीज को गुजारना होता है। रूट पर सिक्योरिटी अरेंजमेंट्स कर दिए जाते हैं लेकिन बाद में सबकुछ फिर पहले जैसा हो जाता है। अगर पुलिस-प्रशासनिक ऑफिसर इस रोड पर भी सिक्योरिटी के ‘वीआईपी’ अरेंजमेंट्स करते तो न सिर्फ शानू के हत्यारों को पुलिस पिकेट पर तैनात सिपाही घेरकर पकड़ पाते। बल्कि, सीसीटीवी कैमरे में मर्डर का लाइव सीन और हत्यारों की आइडेंटिटी भी रिकॉर्ड हो जाती। मगर, अफसोस ताबड़तोड़ आपराधिक वारदातों के बावजूद यहां का पुलिस-प्रशासन सोया हुआ है। तीन सालों में 16 VVIPs आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों शहर में 16 वीवीआईपीज ने विजिट की। इन अति विशिष्टजनों में प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया, प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया, यूपी गवर्नर, यूपी सीएम समेत दूसरे स्टेट्स के गवर्नर और सीएम शामिल हैं। विभिन्न प्रोग्राम्स में हिस्सा लेने शहर आए इन वीवीआईपीज की फ्लीट वीआईपी रोड से गुजारी। यह डाटा तो सिर्फ वीवीआईपीज का है। इस बीच दर्जनों वीआईपीज भी इसी रोड से गुजरे।‘आंखें’ बंद हैं तो फिर कौन देखेगा criminals को?
वीआईपी रोड जैसी बिजी ट्रैफिक रोड पर किसी पर गोलियां बरसाने की हिम्मत क्रिमनल्स के पास यूं ही नहीं आई है। उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि निगहबानी के लिए जो मैन पॉवर (पुलिस) है भी उनका ध्यान सिक्योरिटी की बजाए अन्य कामों में अधिक लगा रहता है। फिर वीआईपी रोड पर निगहबानी के लिए कोई टेक्निकल पॉवर भी नहीं है। दूसरी ओर वीआईपी रोड के पैरलल रोड समेत 8 चौराहों पर लगाए गए अधिकांश सीसी टीवी कैमरे भी बंद पड़े हुए हैं।सीसी टीवी कैमरे हुए बेकारलास्ट इयर सिटी के बिजी रोड्स वाले 8 चौराहों पर करीब 27 लाख रुपए के सीसी टीवी कैमरा लगाए गए थे। इनमें घंटाघर, मूलगंज, कारसेट चौराहा परेड, नारायणी धर्मशाला परेड, बड़ा चौराहा, जरीब चौकी, विजय नगर और दादानगर चौराहा शामिल थे। इनका कंट्रोल रूम चौराहों पर बनी पुलिस चौकियों और थानो में बनाया गया। अगस्त, 2010 में सभी चौराहों पर कैमरे चालू हो गए। मगर 2010 भी नहीं बीत पाया कि कैमरों के खराब होने का सिलसिला शुरू हो गया। इसकी मुख्य वजह पॉवर सप्लाई साबित साबित हुई। प्रॉपर अर्थिंग न होने और सीसी टीवी कैमरे इलेक्ट्रिसिटी पोल में लगे होने की वजह से वो एक-एक करके खराब होते गए। मूलगंज थाना और एकता चौकी परेड में तो करंट आने से कैमरे, डीवीआर आदि सब जल गया।

Posted By: Inextlive