दूसरे बंगालियों की तरह ही प्रसिद्ध मूर्तिकार फ़िरदौस प्रियभाषिनी ये देखकर बेहद ख़ुश हैं कि आख़िरकार 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान व्यापक स्तर पर हुईं कथित हत्याओं और बालात्कार के अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया जा रहा है.

प्रियभाषिनी उस वक़्त सिर्फ़ 23 साल की थीं जब पाकिस्तानी सैनिकों और उनके बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) सहयोगियों के एक गुट ने उनके घर पर धावा बोला था और उन्हें खींच कर बाहर ले गए थे। जब उन्हें सेना की एक जीप में डाला गया तो उनके पति और तीन बच्चों के पास असहाय होकर देखने के अलावा कोई चारा नही था।
राजधानी ढाका के एक सेना के शिविर में सात महीनों तक लगातार वो बलात्कार और शारीरिक तथा मानसिक यातनाएं झेलती रहीं। प्रियभाषिनी याद करती हैं कि किस तरह से उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ी। उनके पास पैसे नही थे। और उनकी आँखों के सामने दोस्तों और रिश्तेदारों का बेरहमी से क़त्ल कर दिया गया। प्रियभाषिनी कहती हैं कि 40 साल बाद ये देखना सुखद है कि उन घृणित यातनाओं के ज़िम्मेदार लोगों में से कुछ कटघरे में खड़े हैं।

ख़ूनी संघर्ष और हत्याओं का दौर1971 में बांग्लादेश का हिंसक जन्म उस समय हुआ था जब पाकिस्तान की सरकार ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में आज़ादी की माँग का दमन करने के लिए अपनी सेना भेज दी थी।

ये अभी तक साफ़ नही है कि नौ महीने तक चले इस ख़ूनी संघर्ष के दौरान कितने लोग मारे गए.लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुमान के मुताबिक़ तीस लाख से ज़्यादा लोग मारे गए और हज़ारों की तादाद में महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ।

इस हिंसक दौर में वहां अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाया गया। यहाँ तक कि उनको जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया।

ये युद्ध उस समय ख़त्म हुआ जब पाकिस्तानी सेना ने भारतीय फ़ौज के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। युद्ध समाप्ति के बाद पीड़ितों और मानवाधिकार संगठनों की तरफ़ से लूटने, बलात्कार और नृशंश हत्याओं के दोषियों को दंड देने की माँग होने लगी।

हांलाकि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों देशों के बीच इस बात पर समझौता हुआ था कि पाकिस्तान लौटने वाले सैनिकों पर युद्ध अपराध का मुक़दमा नही चलाया जाएगा।

लेकिन इन मानवीय यातनाओं को देने में पाकिस्तानी फ़ौज की मदद करने वाले बांग्लादेश के लोगों पर तमाम प्रयासों के बावजूद पिछले साल तक कटघरे में खड़ा नही किया जा सका था।

2010 में पहली बार अवामी लीग के नेतृत्व में बनी सरकार ने उन बांग्लादेशियों के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्राइब्यूनल का गठन किया जिन पर पाकिस्तानी फ़ौज के साथ मिलकर यंत्रणाएं देने का अभियोग है।

अब तक बांग्लादेश के मुख्य विपक्षी दल नेशनलस्टि पार्टी के दो और जमाते इस्लामी के पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और उन पर मुक़दमा चलाया जा रहा है। हाँलाकि सभी सातों ने आरोंपों का खंडन किया है।

निष्पक्षता पर संदेहजमाते इस्लामी के नेता दिलावर हुसैन सईदी पर युद्ध के दौरान 50 से ज़्यादा हत्याओं का अभियोग हैं दोनों विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार बदला लेने की नीयत से काम कर रही है।

बांग्लादेश के विधि मंत्री शफ़ीक अहमद का कहना है कि मुक़दमा निष्पक्ष और पारदर्शी होगा। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को मुक़दमे की सुनवाई देखने की अनुमति होगी साथ ही अभियुक्तों को अपना बचाव करने का पूरा मौक़ा मिलेगा।

मुक़दमा चलाए जाने को बांग्लादेश में व्यापक जनसमर्थन मिलने के बावजूद कुछ लोगों को इसकी निष्पक्षता पर संदेह है। ट्राइब्यूनल का गठन स्थानीय है और सभी तीनों न्यायाधीश बांग्लादेशी ही हैं।

संयुक्तराष्ट्र और दूसरी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की इसमें कोई महत्वपूर्ण भूमिका नही है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि कुछ नियम अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे नही उतरते।

Posted By: Inextlive