Kanpur : मंदिरों में शिवलिंग पर चढऩे वाले दूध को बचाने के लिए किसी भी स्तर पर कोई इंतजाम नहीं हैं. दूध शिवलिंग पर चढऩे के बाद एक पतली नाली से होते हुए या तो गंदे नाले में चला जाता है या फिर नदी और नहर के पानी में मिल जाता है. शॉकिंग फैक्ट ये है कि करीब डेढ़ साल पहले बाल सेवा समिति की तरफ से मंदिरों में बह जाने वाले दूध को प्यूरीफाई करने के लिए एक मशीन लगाने का प्रस्ताव भी रखा गया था लेकिन आज तक उस प्लानिंग पर काम नहीं किया जा सका है.


दूध एक ऐसा नेचुरल प्रोडक्ट है जिसमें ह्यूमन बॉडी के लिए जरूरी सभी न्यूट्रिएंटस मौजूद होते हैं। इसीलिए इसे कंपलीट फूड भी कहा जाता है। बच्चों के ओवरऑल डेवलपमेंट्स के लिए तो दूध किसी अमृत से कम नहीं। लेकिन शहर में लाखों बच्चे ऐसे हैं जिन्हें इस अमृत की दो बूंद भी नसीब नहीं होती। जबकि दूसरी सच्चाई ये भी है कि यहां आस्था के नाम पर लाखों लीटर दूध शिवलिंग पर चढ़ा दिया जाता है। रविवार को एक बार फिर ऐसा ही होगा। महाशिवरात्रि पर शहर भर के शिवालयों में करीब डेढ़ लाख लीटर से अधिक दूध शिवलिंग पर चढ़ाया जाएगा जिस न तो खुद भोलेनाथ पिएंगे और न ही उनके लिए मिल्क प्रोडक्ट्स बनेंगे। ये दूध नाली-नालों से होता हुआ गंगा में मिल जाएगा। जबकि इसी दूध से तीन लाख बच्चों का पेट भर सकता है। ये सवाल उठाने के पीछे आई नेक्स्ट का मकसद किसी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है लेकिन ये जरूरी है कि हम विचार करें कि देश के संसाधनों का उपयोग कहां हो रहा है और कहां होना चाहिए।डेली 4.5 लाख लीटर की खपत


महाशिवरात्रि की तैयारियों का जायजा लेने आई नेक्स्ट रिपोर्टर सैटरडे को सिटी के प्रमुख शिवमंदिरों में पहुंचा तो आस्था के नाम पर हो रही वेस्टेज की कड़वी हकीकत देखने को मिली। मौजूदा आकड़ों के मुताबिक सिटी में डेली लगभग 4.50 लाख लीटर दूध का कंजम्प्शन होता है। जिनके स्रोत छोटी-बड़ी दूध कंपनियां, फुटकर दूध वाले और चट्टे वाले हैं। जबकि महाशिवरात्रि पर मंदिरों में 1.50 लाख लीटर दूध चढ़ा दिया जाएगा। जिसमें परमट स्थित आनंदेश्वर मंदिर में ही 70 हजार लीटर दूध, जाजमऊ स्थित सिद्धनाथ मंदिर में 40 हजार लीटर दूध, नवाबगंज स्थित जागेश्वर मंदिर में 25 हजार लीटर दूध, पी रोड स्थित बनखण्डेश्वर मंदिर में 5 हजार लीटर, घंटाघर स्थित नागेश्वर मंदिर में 5 हजार लीटर और शिवराजपुर स्थित खेरेश्वर मंदिर में लगभग 5 हजार लीटर दूध शिवलिंग पर श्रद्धापूर्वक चढ़ा दिया जाएगा।वन फोर्थ हो जाएगा बर्बाद

महाशिवरात्रि के दिन सिटी में होने वाले दूध के डेली कंजम्प्शन का वन फोर्थ से ज्यादा हिस्सा वेस्ट हो जाएगा। जिससे सिटी में दूध की जबरदस्त क्राइसिस भी होगी। मंदिरों में शिवलिंग पर चढऩे वाले दूध को बचाने के लिए किसी भी स्तर पर कोई इंतजाम नहीं हैं। दूध शिवलिंग पर चढऩे के बाद एक पतली नाली से होते हुए या तो गंदे नाले में चला जाता है, या फिर नदी और नहर के पानी में मिल जाता है। शॉकिंग फैक्ट ये है कि करीब डेढ़ साल पहले बाल सेवा समिति की तरफ से मंदिरों में बह जाने वाले दूध को प्यूरीफाई करने के लिए एक मशीन लगाने का प्रस्ताव भी रखा गया था लेकिन आज तक उस प्लानिंग पर काम नहीं किया जा सका है।इन्हें तो देखने को नहीं मिलता पीडियाट्रिक डॉ। राज तिलक के मुताबिक सिटी में लगभग 20 लाख बच्चे हैं। जिनमें से 50 परसेंट बच्चे ग्रेड फोर मॉलन्यूट्रिशियन के शिकार हैं। उन्होंने बताया कि पॉश एरियॉज में बच्चों की संख्या बहुत कम है। जबकि सिटी के लक्ष्मीपुरवा, मुंशीपुरवा, खटिकाना, बाबाकुटी, तोपखाना, देवीगंज, लोहारों का भट्टा,पसियाना और कई अन्य एरिया में बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। सिटी में लगभग 150 स्लम एरिया हैं। जहां के बच्चे कई-कई दिन दूध की शक्ल भी नहीं देख पाते हैं। सिटी में डेली होने वाली दूध की सप्लाईनमस्ते इंडिया               लगभग 1.50 लाख लीटरअमूल                       50 से 60 हजार लीटरमदर डेयरी                   15 से 20 हजार लीटरपारस दूध                    6 से 7 हजार लीटरपराग दूध                    20 से 25 हजार लीटरवैरी फ्रेश दूध               लगभग 5 हजार लीटरफुटकर दूध वाले            लगभग 80 हजार लीटरचट्टे वाले                  लगभग 80 हजार लीटरऐसे खुश नहीं होते भगवान

शिवलिंग के दुग्धाभिषेक के महत्व को बताते हुए पंडित उमेश दत्त शुक्ल बताते हैं कि समस्त पुराणों में महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से लक्ष्मी की वृद्धि और पुत्र की प्राप्ति होने की बात कही गई है। ये आस्था का विषय है। क्योंकि भगवान पर श्रद्धा, भाव और आस्था के साथ चढ़ाया गया दो बूंद दूध भी उन्हें खुशी देता है। भगवान को इससे कोई खुशी नहीं होती कि उन पर कितने लीटर या कितनी बाल्टी दूध चढ़ाया गया। भगवान पर चढ़ाया गया दूध नालियों में नहीं बहाना चाहिए। बल्कि दूध का भगवान को भोग लगाकर जरूरतमंद और किसी भूखे को देकर उसका पेट भरना चाहिए।जरूरतमंद को मिले ये दूध
आनंदेश्वर मंदिर के महंत रमेश पुरी कहते हैं कि किसी भी पुराण, वेद या ग्रंथों में दूध की बर्बादी करने के लिए नहीं लिखा गया है। ये सच है कि भगवान भोले नाथ पर दूध चढ़ाने की आस्था प्राचीन काल से चली आ रही है। शिवलिंग पर गाय का दूध चढ़ाने से कई तरह के लाभ होते हैं। लेकिन हम समाज को यही संदेश देना चाहते हैं कि कई जिंदगियों की जरूरत कहे जाने वाले दूध को नालियों में न बहाएं, बल्कि किसी भूखे को पिलाएं, तब जाकर हम लोग भगवान को सही मायनों में खुश कर पाएंगे। इसलिए आम दिनों में मंदिर के शिवलिंग पर चढ़े हुए दूध को बाल्टियों में भर कर कई जरूरतमंद परिवार वालों को दिया जाता है।भक्त हों जागरूक तो बने बातबनखण्डेश्वर मंदिर के पंडित रामनरेश मिश्रा का कहना है कि जब मंदिर में ज्यादा मात्रा में दूध चढ़ाने के लिए लोग आते हैं, तो उस चढ़े हुए दूध को डिब्बों या बाल्टियों में भर लिया जाता है। लेकिन त्यौहारों या भीड़भाड़ के दौरान पूरे दूध को बचा पाना मुश्किल होता है। लेकिन इसके लिए भक्तों को भी जागरूक किया जाता है।"भगवान में विश्वास और श्रद्धा रखना जरूरी है। लेकिन दूध की बर्बादी से अच्छा है कि दूध को भगवान पर चढ़ाने के बाद किसी गरीब को या भूखे बच्चे को दे दिया जाए."- गिरीश मिश्रा"अगर किसी व्यक्ति ने भगवान पर 20 लीटर दूध चढ़ाने का संकल्प लिया है। तो वो शिवलिंग पर दो चम्मच दूध चढ़ा कर बाकी दूध भगवान के सामने भोग लगाकर गरीब बच्चों में बांट दे, तो मुझे लगता है कि भगवान भोले नाथ बहुत खुश होंगे."- योगेश शुक्ला"मैं शिवभक्त हूं और सालों से शिवलिंग पर दूध चढ़ाता आ रहा था। लेकिन ओह माई गॉड के एक सीन को देखकर मेरी सोच बदल गई। मैंने दूध चढ़ाना बंद कर दिया है और दूसरों को भी समझाता हूं."- अमित मिश्रा

Posted By: Inextlive