Varanasi: आज फर्स्‍ट अप्रैल है यानि अप्रैल फूल्स डे. दुनिया भले ही आज के दिन एक दूसरे को बेवकूफ बनाए मगर हम बनारसी तो 365 दिन ही फूल बने रहते हैं. वो भी एक साल से नहीं बल्कि कई सालों से हमारे साथ ऐसा ही है. हो सकता है आपको हमारी बात अच्छी ना लगे. आप सोचेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? हम बनारसियों को कौन फूल बना सकता है? सवाल जेनुइन है. ठीक है आज आप भी जानिये और मानिये कि हां आप भी हैं बनारस के एक 'फूल'... खुश होने की जरूरत नहीं क्योंकि हम हिंदी नहीं इंग्लिश वाले फूल की बात कर रहे हैं


हम हैं cool इसीलिए वो बनाते हैं हमें foolहम बनारसी ज्यादातर इश्यूज में बहुत कूल हैं। बेवजह की टेंशन लेने की तो अपनी आदत ही नहीं है। शायद यही वजह है कि हमें कुछ लोग फूल बनाते रहते हैं। आज अप्रैल फूल डे पर हम इंट्रोड्यूज कराने जा रहे हैं ऐसे ही लोगों से जिन्होंने हमें जाने-अनजाने में फूल बनाया है। हां, हो सकता है कि इनका इंटेंशन फूल बनाने का ना रहा हो और 'कुछ मजबूरियां रही होंगी वरना कोई इतना शातिर नहीं होता'। छोटे शहर का 'बड़ा' सांसद


बनारसियों को 'बनाने' वालों अपने सांसद डॉ। मुरली मनोहर जोशी उतने ही बड़े हैं जितनी बड़ी उनकी सोच है। नेशनल लेवल के लीडर हैं इसलिए सिटी, गली-मुहल्ले की प्रॉब्लम पर डिस्कस करना तो दूर, उसे सुनना भी पर्सनल इंसल्ट समझते हैं। हां, गवर्नमेंट उनकी होती तो अब तक नया ब्रिज बनवा देते, मेट्रो भी चलवा सकते थे। शहर में गंगा को लेकर खूब बवेला मचा मगर उन्होंने गंगा को लोकल इश्यू मानते हुए कुछ नहीं कहा। मैक्सिमम टाइम बनारस से दूर रहते हैं मगर आने के पहले ही उनके आने का फैक्स जरूर आ जाता है। सिक्योरिटी भी इतनी कि एक आम आदमी तो गाडिय़ों की फ्लीट देखकर ही साइड हो लेता है। सिटी में बढ़ता क्राइम, यहां की सड़कें, यहां का अनप्लैंड डेवलपमेंट इतने छोटे-छोटे इश्यू हैं कि सांसद जी को नजर आ भी नहीं सकते। उसके लिए उन्हें बनारस में रहना होगा तो बड़े नेता के लिए पॉसिबल भी तो नहीं है। अपना दुर्भाग्य यही है कि हमें सुई की जरूरत थी और हमने तलवार मोल लिया है। (सांसद जी के बारे में ज्यादा इसलिए लिखा गया है ताकि उन्हें कम मैटर तौहीनी ना लगे) ब्यूटीफुल के नाम पर बनाया फूल

अपने बनारस के इकलौते मिनिस्टर सुरेन्द्र पटेल। इन्होंने तो पब्लिक को ऐसा बनाया, ऐसा बनाया कि पूछिये मत। मिनिस्टर की कुर्सी संभालते ही सफेद दाढ़ी सहित दहाड़ मार के बोले की छह महीने में पूरा शहर ब्यूटीफुल हो जाएगा। अंकल को अब शायद याद भी नहीं होगा कि कुर्सी संभाले एक साल बीत गए और ब्यूटीफुल तो नहीं अप्रैल फूल नजर आ गया है। एक साल पहले सड़कों पर गड्ढे थे, अब गड्ढों में सड़कें हैं। वो भी तब जब ये खुद पीडब्ल्यूडी डिपार्टमेंट देख रहे हैं। पब्लिक समझ ही नहीं पा रही कि मिनिस्टर साहब पब्लिक को बना रहे हैं या उनके डिपार्टमेंट के अफसर उन्हें बना रहे हैं। शहर में कूड़े का नामो-निशान नहीं होगा, ये भी बोले थे। इस बात में कुछ दम निकला और अब पूरा शहर ही कूड़ा हो गया है, शहर में कूड़ा होगा भी तो शायद किसी की नजर नहीं पड़ेगी। काले कोट पर काला धब्बा थोड़े ही दिखता है। (मिनिस्टर साहब बजरंग बली के भक्त हैं इसलिए वो अब फ्लाईओवर से पब्लिक को उड़ाने की तैयारी कर रहे हैं) मेयर जो 100 दिन मोह'ले' गए

नाम ही इतना लवली है कि किसी का भी दिल मोहले मतलब मोह ले। वैसी ही मनमोहक हैं इनकी बातें। मेयर की मजबूत कुर्सी (कमजोर होती तो टूट चुकी होती) पर इस पर बैठे अपने रामगोपाल मोह ले जी ने कुर्सी संभालते ही कहा था कि बस सौ दिन की मोहलत दें, पूरे शहर का नजारा बदल जाएगा। सच्ची, सौ दिन बाद नजारा बिलकुल ही बदल गया। जो खराब था वो पूरी तरह 'झण्डू' हो गया। अब तो उनकी कॉलोनी के लोग भी होम थियेटर में गाना गाते हैं कि क्या हुआ तेरा वादा पूरा शहर खराब सड़क, गंदगी, सीवर ओवरफ्लो से बज-बजा रहा है। ये बात अलग है कि मेयर साहब अपने ऑफिस के अंदर के मच्छर भी नहीं भगा पा रहे हैं। इसके लिए आलआउट के सहारे रहते हैं। हां, अगर आगे के चार साल ऐसा ही रहा तो पब्लिक भी 'आलआउट' पारी खेलने को मजबूर होगी, यही बात बस समझने की देर है। शायद अगले 100 दिन में समझ आ जाए। (मेयर साहब को शायद समस्याएं इसलिए भी नहीं दिखतीं क्योंकि उनकी दौड़ घर से नगर निगम तक है)सालाना अनशन वाले दादा
अपने शहर के भालो मानुष दक्षिणी विधायक श्याम देव राय चौधरी 'दादा' को कम आंकना भूल होगी। उनका पब्लिक को 'बनाने' का अपना अलग ही अंदाज है। हां, ये अनूठा अंदाज ही उन्हें पिछले 30 साल से 'दक्खिन' में जमाए हुए है और शहर भी उनके नेतृत्व में 'दक्खिन' में जा रहा है। बोलते कम हैं मगर दिखते ज्यादा हैं। अजी उम्र नहीं, सशरीर की बात हो रही है। आप इनके पास कोई प्रॉब्लम लेकर जाइये तुरंत आपके मोटर साइकिल पर सवार होकर चल पड़ेंगे। प्रॉब्लम सॉल्व होगी या नहीं, इसकी गारंटी नहीं है। कोई भी बुलाये, कहीं बुलाये चाहे, पहुंचते जरूर हैं। हां, इनका एक खास अंदाज गर्मी में जरूर नजर आता है। हर गर्मी में ये एक दो बार बिजली को लेकर अनशन पर जरूर बैठते हैं। कई सालों से ये अनशन वाला उर्स चल रहा है मगर नतीजा क्या है, ये आप छत पर लटके पंखे को देख कर समझ ही गए होंगे। एक बार तो अपने ही सरकार के खिलाफ अनशन वाले उर्स पर बैठ गए। अपने पिछले कार्यकाल में तो अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठ गये थे। उन्हें बनाने का तरीका आ गया है कि बोलो कम, साथ में चलो ज्यादा। (गर्मी आ गई है और बिजली कटने लगी है, एक बार फिर आपके शहर में आ रहे हैं अनशन वाले दादा। कमिंग सून)बेचारी ज्यो। माता दी कैंट की विधायक डॉ। ज्योत्सना श्रीवास्तव को अब लोग माताजी के नाम से ज्यादा जानते हैं। हां, वो बेचारी अपनी जनता के लिए कुछ कर नहीं पा रही, यही उनकी सबसे बड़ी बेचारगी है। कैंट एरिया में आज भी दर्जनों ऐसे मुहल्ले हैं जहां गर्मी में भी वॉटर लॉगिंग होता है। मगर अब तक उनकी 'फैमिली' (पति-पत्नी दोनों बारी-बारी से ये विधान सभा संभालते रहे हैं) इसका सॉल्यूशन नहीं निकाल सकी। पति देव ने बड़ी मेहनत से नाले का नेटवर्क बनाया था मगर अब वो भी नालायक साबित हो रहा है। ऐसे में जब पब्लिक जलजमाव पर उनके घर के बाहर चिल्लाती है तो वो खुद ही धरने पर बैठ जाती हैं। अपने ही विधानसभा की प्रॉब्लम के लिए उन्हें अपने एरिया में धरना देना पड़ता है। इससे ज्यादा बेचारगी क्या होगी। ये जरूर है कि उनकी फैमिली ने भी काफी सालों से पब्लिक को बनाया ही है (माताजी को भी अब उम्मीद नहीं कि उनसे कुछ होगा इसलिए बेटे को तैयार कर रही हैं जनता को बनाने के लिए.)यहां तो जाय(ज) सवाल हैशहर उत्तरी के विधायक रविंद्र जायसवाल पहली बार कांटे की लड़ाई में कुर्सी पा सके। मगर उनके उत्तरी में आज भी कई जायज सवाल मुंह बाये खड़े हैं। जनता पूछ रही है कि विधायक जी ने अब तक के कार्यकाल में किया क्या? विधायक बनने पर इन्होंने पूरे विधान सभा में घूम-घूम कर समस्याएं जानीं और वादा किया कि एक-एक करके सभी समस्याओं को दूर किया जाएगा। कुछ नये काम कराये भी मगर ओवरआल गंदगी, खराब सड़क, गंदे पानी की सप्लाई जैसे मुद्दे पर वो भी पब्लिक को 'बनाते' ही आ रहे हैं। इनके एरिया में कई ऐसे मुहल्ले हैं जहां कदम रखना तो दूर झांकने में भी पेट का माल बाहर आ सकता है। (रविंद्र विधायक जी अपने काम से कम स्माइल से लोगों को ज्यादा बनाते हैं। कसम से बहुत कातिल है स्माइल)(यदि किसी जनप्रतिनिधि को आई नेक्स्ट की इस रिपोर्ट से तकलीफ हुई है तो वो कृपया अपनी आज की तकलीफ को 365 से गुणा कर दें। अब तो रिजल्ट आया वही आपके वोटर्स की तकलीफ है, बस यही फील कराना चाहते हैं हम.)अप्रैल, जून, जुलाई 12 महीने की रुलाई Varanasi: जनवरी हो या फरवरी, जून हो या जुलाई। बारह महीने होती है रुलाई। अपने शहर में कई ऐसी प्रॉब्लम्स हैं जो अंतहीन हैं। ये कम या ज्यादा तो होती हैं मगर खत्म नहीं होतीं। जबकि अपने शहर में एक नेशनल लेवल के सांसद, एक स्टेट लेवल के मिनिस्टर, कई स्टेट लेवल के पुरनिया विधायक और एक तजुर्बेकार मेयर रहनुमा हैं। सड़कअपने शहर की सड़कों की हालत के बारे में कुछ भी लिखना स्पेस बरबाद करना है। हर कोई जानता है कि बिना प्लैनिंग के चल रही खोदाई से सड़कों की क्या हालत है। जो बन रही हैं वो खोद दी जा रही हैं और जो खोदी जा चुकी हैं, वो बन नहीं रहीं। साफ-सफाईइस मामले में भी ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है। शहर में गंदगी है या गंदगी में शहर है, यही समझ के बाहर है। कुछ एरियाज तो ऐसे हैं मानो वहां पब्लिक नहीं जानवर रहते हैं। एटूजेड के जाने के बाद से सिचुएशन तो गड़बड़ हुई है, अब तक नहीं सुधरी।Traffic शहर का सबसे बड़ा रोना ट्रैफिक को लेकर भी है। अफसर कहते हैं कि पब्लिक को ट्रैफिक सेंस नहीं है जबकि एनक्रोचमेंट हटाने या फिर अवैध रिक्शों-ऑटोज को हटाने में उनकी जेब का नुकसान होता है। एनक्रोचमेंट हटाने में नेता टाइप के लोग भी अड़ंगे डालते हैं। सड़क की स्थिति भी बदहाल है। ऐसे में ट्रैफिक सुधरे कैसे। पानी शहर में लाखों लोग ऐसे भी हैं जो गंगा किनारे रह कर भी साफ पानी के लिए तरस रहे हैं। उनके यहां आने वाला सरकारी नल का पानी पी लिया जाए तो हैजा होने से कोई रोक नहीं सकता। मुम्बई-दिल्ली की तर्ज पर अब बनारस में भी लोग खरीद कर पानी पीने को मजबूर होते जा रहे हैं। बिजली भले ही बनारस की गिनती यूपी के बड़े शहरों में होती हो मगर बिजली के मामले में हम भिखमंगे ही नजर आते हैं। इस मामले में अपना शहर सौतेलेपन का भी शिकार है। बनारस की बहुत सारी इंडस्ट्रीज बिजली के चलते ही घाटे में जा रही हैं। इस बड़े मुद्दे को किसी ने मुद्दा माना ही नहीं। बातें बहुत हुईं मगर रिजल्ट फिलहाल जीरो ही है। जल जमावअपने शहर में कई हिस्से ऐसे हैं जहां गर्मी के दिनों में भी जलजमाव देखा जा सकता है। बारिश में तो यहां नाव चलाने की नौबत आ जाती है। इन इलाकों के लिए भी कुछ नहीं हुआ। सीवर ओवरफ्लो भी कई मुहल्लों में जलजमाव की वजह है। जबकि मच्छरों का प्रकोप भी इसी वजह से बढ़ता जा रहा है। Unplanned डेवलपमेंट बनारस का दुर्भाग्य अनप्लैंड डेवलपमेंट से भी है। यहां एक के बाद एक अवैध कालोनियां बनती जा रही हैं। बिना नॉम्र्स पूरा किये मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट्स बनते जा रहे हैं। बिना परमिशन लिए बिल्डिंग्स की हाइट बढ़ रही है। बिना सोचे-समझे नये प्लैन तैयार हो रहे हैं। झेलना पब्लिक को पड़ रहा है। इस दुर्दशा के लिए वीडीए लीड रोल में है। "अब तक हमारे जन प्रतिनिधियों ने हमें बेवकूफ ही बनाया है। वो जन प्रतिनिधि ही क्या जो जनता की समस्या को नहीं दूर कर सकता।  संजय जैन, लक्सा कोई कई दशक से विधायक हो और उसके एरिया में समस्याओं का अंबार हो। यह तो सीधा सीधा बेवकूफ बनाना हुआ। अपने नेताजी लोग बिलकुल यही कर रहे हैं। सुकेश तिवारी, गोदौलिया जीतने के पहले और बाद में जिस तरह के वादे किये जाते हैं, उससे लगता है कि अब सब दु:ख दूर होंगे। बाद में समझ आता है कि सब ढाक के तीन पात हैं.   बृजेश कुमार, मवइया कोई एक बार छला जाता है हम तो एक अर्से से छले जा रहे हैं। मूर्ख बनना तो हमारी नियति बन गयी है। हम वोट देते हैं और एक निरीह कैंडिडेट हमारा जनप्रतिनिधि बन जाता है। एसएन पांडेय, खोजवांवादे पूरे करने के लिए नहीं होते हैं। हमारे पॉलिटिशियंस ने हमें यह बेहतर एहसास करा दिया है। रोड बनाने के वादे के वायदे में हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ।अनुराग द्विवेदी, अस्सीरोड की हालत अरसे से खराब है। सांसद, मिनिस्टर, विधायक, मेयर सबने इसे बदलने की बात कही लेकिन किसी ने कोशिश तक नहीं की। करते तो कुछ सुधार जरूर होता। नवीन मिश्रा, खोजवांवोट देने के बाद वोटर्स का बेवकूफ बनना कोई नई बात नहीं। अब पॉलिटिक्स इसी का नाम है कि कौन पब्लिक को कितने ज्यादा दिनों तक बेवकूफ बनाये रख सकता है। आसिफ अली, लल्लापुरासमस्याओं को लेकर ज्यादातर जन प्रतिनिधि खुद को मजबूर बताते हैं। यदि इतनी ही मजबूरी है तो इस्तीफा दे देना चाहिए। कम से कम जनता को सुकून तो रहेगा कि हम अकेले ही हैं। अश्विनी राय, महमूरगंज

Posted By: Inextlive