स्थिरता के बहुत से आयाम हैं। एक है मौन: यह ध्वनि का विपरीत ध्रुव है। यह ध्वनि न होना है। दूसरा आयाम है अ-गति यह गति का विपरीत धूव है।

प्रश्न: आपने आंतरिक स्थिरता को आंतरिक मौन के आयाम से समझाया। कृपया आंतरिक स्थिरता को किसी अन्य आयाम से भी समझाने की अनुकंपा करें?

स्थिरता के बहुत से आयाम हैं। एक है मौन: यह ध्वनि का विपरीत ध्रुव है। यह ध्वनि न होना है। दूसरा आयाम है अ-गति यह गति का विपरीत धूव है। मन एक गति है जैसे कि मन एक ध्वनि है। ध्वनि यात्रा करती है और मन भी। मन सतत चलता रहता है, बिना जरा भी रुके। तुम फिर मन के बारे में सोच भी नहीं सकते। ऐसी कोई चीज नहीं होती, क्योंकि जब स्थिरता, स्टिलनेस होती है तो मन नहीं होता। जब मन होता है, तो गति भी होती है। अत: मन की गति क्या है? इसके द्वारा हम स्थिरता के दूसरे आयाम के बारे में सोच सकते हैं: अ-गति। वाह्य रूप से हम जानते हैं कि गति का क्या अर्थ है: एक जगह से दूसरी जगह जाना: एक स्थान से दूसरे स्थान को हटना, 'अ’ से 'ब’ को पहुंचना। यदि तुम 'अ’ स्थान पर हो, और फिर तुम 'ब’ स्थान पर चले जाते हो, तो गति हुई इसलिए मन के बाहर गति का अर्थ होता है कि स्पेस में रिक्त स्थान में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना। यदि कोई रिक्त स्थान न हो, तो तुम नहीं चल सकते। तुम्हें बाहर चलने के लिए स्पेस की, खाली स्थान की आवश्यकता है।

मन इन दो स्थितियों में करता है गति

भीतरी गति खाली स्थान में न होकर समय में होती है। यदि कोई समय न हो, तो तुम भीतर नहीं जा सकते। समय भीतरी आकाश: एक सेकेंड से तुम दूसरे सेकेंड को, इस दिन से उस दिन को; यहां से वहां, अभी से तब में समय में गति करते हो। समय ही आंतरिक आकाश है। अपने मन का विश्लेषण करो, और तुम देखोगे कि सदा अतीत से भविष्य या भविष्य से अतीत में गति कर रहे हो या तो तुम अतीत की स्मृतियों में गतिमान हो, और या तो भविष्य की इच्छाओं में दौड़ रहे हो। जब तुम अतीत से भविष्य या भविष्य से अतीत में जाते हो केवल तभी तुम वर्तमान क्षण का उपयोग करते हो, लेकिन बस एक मार्ग की तरह।

मन के लिए वर्तमान नहीं होता


वर्तमान मन के लिए केवल अतीत और भविष्य का एक विभाजन करनेवाली रेखा है। मन के लिए सचमुच वर्तमान है ही नहीं, उसका अस्तित्व ही नहीं है। वह सिर्फ एक विभाजन करने वाली रेखा है, जहां से तुम अतीत या भविष्य में होने में असमर्थ हो। इसे समझ लो। तुम वर्तमान में गति करने में असमर्थ हो। वर्तमान में कोई समय नहीं होता। वर्तमान सदैव एक क्षण होता है। तुम कभी भी दो क्षणों में नहीं होते। केवल तुम्हारे पास सदा एक क्षण होता है। तुम 'अ’ से 'ब’ को नहीं जा सकते क्योंकि केवल 'अ’ ही होता है। कोई 'ब’ नहीं होता।

मन वर्तमान का उपयोग कभी नहीं करता


समय के इस गुण को, वर्तमान को ठीक से समझ लो कि सदा तुम्हारे पास एक क्षण होता है। चाहे तुम सड़क पर भीख मांगने वाले भिखारी हो और चाहे सम्राट, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारी समय की संपदा वही है। एक बार में केवल एक क्षण और तुम उसमें प्रवेश नहीं कर सकते, वहां कोई जगह नहीं है जहां कि जाया जा सके और मन सदा गति में पाया जाता है, इसलिए मन वर्तमान का उपयोग कभी नहीं करता। वह कर ही नहीं सकता। वह पीछे अतीत में चला जाता है। वहां बहुत से बिंदु हैं, जहां गति की जा सकती है। लंबी स्मृति है, तुम्हारा सारा अतीत वहां मौजूद है। या फिर वह भविष्य में चला जाता है। फिर तुम कल्पना कर सकते हो क्योंकि भविष्य भी मूलत: अतीत का ही प्रक्षेपण है।

तुम जिये हो, तुमने बहुत से अनुभव किये हैं। तुम उन्हें पुन: पाने की इच्छा करते हो या फिर तुम उनसे बचना चाहते हो। यही तुम्हारा भविष्य है। तुमने किसी से प्रेम किया है, और वह सुंदर था, आनंदपूर्ण था। तब तुम उसे पुन: करना चाहोगे, अत: तुम प्रक्षेपण करोगे कि तुम भविष्य में बीमार नहीं पड़ो इसलिए तुम्हारा भविष्य तुम्हारा प्रक्षेपित अतीत ही होता है, और तुम भविष्य में गति कर सकते हो। परंतु मन इस जीवन के भविष्य से संतुष्ट नहीं होता। वह स्वर्ग को भी प्रक्षेपित करता है, वह भविष्य के जीवनों की कल्पना करता है। वह मामूली से भविष्य से संतुष्ट नहीं होता, इसलिए वह मृत्यु के बाद भी समय निर्मित कर देता है। अतीत और भविष्य बहुत बड़े प्रदेश हैं। तुम उनमें आसानी से गति कर सकते हो। वर्तमान के साथ तुम गति नहीं कर सकते। अ-गति का अर्थ हल्ला है, वर्तमान में होना। वही स्थिरता का दूसरा आयाम है। यदि तुम क्षण में ठहर सको, अभी और यहीं, तो तुम स्थिर हो जाओगे।

ओशो

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Posted By: Kartikeya Tiwari