मनुष्य का संबंध के बिना कोई वजूद नहीं है। जीवन संबंध है। जीवन कर्म है। ये दोनों मनुष्य जीवन के लिए आधारभूत हैं।

जे. कृष्णमूर्ति। संबंधों में गति का नाम ही जीवन है। संबंध के बिना आप जी ही नहीं सकते। जीवन के मायने हैं संबंध और कर्म। यहां संबंध से हमारा आशय क्या है? यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि आदमी निपट अपने साथ नहीं जी सकता। वह सदा इस या उस चीज से संबंधित होता है। वह किसी अन्य मनुष्य से संबंधित होता है या उसका संबंध किसी विचार से, किसी धारणा से या छवि से संबंधित होता है। इस सब का अर्थ है आपके और दूसरे के बीच संबंध।

अब दूसरे के साथ आपका संबंध क्या है? यह एक समस्या हुई, क्योंकि दूसरे के साथ हमारे संबंध ने ही वह चाहे घनिष्ठ हो या न हो, इस समाज को बनाया है, जिसमें हम रहते हैं। यदि हम लालची, ईष्र्यालु और हिंसक हैं, तो हम हिंसा, लालच और ईष्र्या से भरा समाज रचेंगे। हमारे लिए शुरू से ही एकदम स्पष्ट होना और यह मालूम करना जरूरी है कि संबंध क्या होता है? मनुष्य का संबंध के बिना कोई वजूद नहीं है। जीवन संबंध है। जीवन कर्म है। ये दोनों मनुष्य जीवन के लिए आधारभूत हैं।

यदि आप संबंधों की ध्यान से जांच करते हैं, तो आप देखेंगे कि आपका संबंध तस्वीरों पर, छवियों पर आधारित है। वह छवि जो आपने ईश्वर के बारे में बनाई या अपने किसी रिश्तेदार की। ये छवियां बनती हैं दैनिक संपर्क, सुख-सुविधा आदि के जरिए। आखिर छवि क्यों गढ़ते हैं हम? छवि में सुरक्षा होती है। छवि के जरिए आप उसे उसी रूप में मान लेते हैं और यह छवि हमारे विचारों के जरिए आती हैं।

यदि आप छवि बनाने से मुक्त होना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने विचारों पर ध्यान देना होगा। धीरज के साथ स्वयं का अवलोकन करना होगा। धीरज का तात्पर्य है-तुरंत प्रतिक्रिया न करना, अपनी धारणाओं, राय रूझानों का प्रक्षेपण न करना।

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Posted By: Kartikeya Tiwari