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Ranchi : नमो की आंधी में इस बार झारखंड की राजनीति में कई ऐसे सूरमा पराजित हो गए, जो न सिर्फ झारखंड में बल्कि केंद्र में भी मंत्री और कई बार सांसद रहे हैं। इसके साथ ही झारखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में अपना बड़ा जनाधार रखनेवाले झारखंड के कई विधायक और क्षेत्रीय दलों को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अब इन नेताओं के राजनीतिक करियर पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि इसमें से कुछ ऐसे नेता हैं, जिनकी उम्र काफी हो चुकी है। जबकि कुछ लोगों के सामने अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है। रांची से कई बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे सुबोध कांत सहाय, झारखंड विकास मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष और झारखंड के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी, आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो, जेएससीए के प्रेसिडेंट अमिताभ चौधरी, धनबाद से सांसद और केंद्र और राज्य में मंत्री रहे चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे, लोहरदगा से सांसद और केंद्र में मंत्री रहे डॉ रामेश्वर उरांव, बोकारो के विधायक और जेवीएम नेता समरेश सिंह, जमशेदपुर के सांसद रहे डॉ अजय कुमार, राजमहल से कई बार सांसद रहे और झारखंड में मंत्री रहे हेमलाल मुर्मू। आईए जानते हैं अब क्या है इनकी रणनीति

पांच साल बाद फिर चुनाव लड़ूंगा

जनता ने मुझे भले ही इस बार नकार दिया है, लेकिन मैं रंाची की जनता के बीच काम करता रहूंगा। रांची की जनता ने मुझे कई बार सांसद बनाया है। केंद्र में मंत्री रहा हूं। ऐसे में चुनाव हारने के बाद मैदान छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता है। पहले भी चुनाव हारा हूं और फिर जीता हूं। यह कहना है रांची लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव हारे सुबोध कांत सहाय का। सुबोधकांत भले ही पांच साल बाद वापसी का सपना देख रहे हों लेकिन रांची सीट से हार के बाद इनके राजनीतिक करियर पर ब्रेक लग सकता है। क्योंकि इस बार लोकसभा चुनाव में दो बार से सीटिंग एमपी होने के बाद कांग्रेस इनको टिकट नहीं दे रही थी। बहुत मुश्किल से इनको टिकट मिला था और वे चुनाव नहीं जीत पाए। इन्होंने इससे पहले हटिया विधानसभा उपचुनाव में संगठन के विरोध के बाद भी अपने भाई सुनील सहाय को टिकट दिलवाया था, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई थी। ऐसे में अब संगठन में भी इनके खिलाफ आवाज उठने लगी है। सुबोधकांत केंद्र में मंत्री और सीनियर नेता होने के बाद विधायक का चुनाव तो लड़ेंगे नहीं। इसके साथ ही संगठन में भी इनको कोई बड़ा पद मिलने से रहा।

विस चुनाव में होगा नया जोश

दुमका लोकसभा सीट से भले ही मुझे हार का सामना करना पड़ा है, लेकिन राजनीति में हार-जीत तो लगी रहती है। मेरा पूरा ध्यान अब विधानसभा चुनाव पर रहेगा। नए जोश के साथ उस चुनाव में उतरा जाएगा। यह कहना है जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी का। बाबूलाल मरांडी दुमका लोकसभा सीट पर शिबू सोरेन के हाथों पराजित हो गए। लेकिन अब बाबूलाल का पूरा जोर संगठन में ऊर्जा भरने पर है। इस हार से बाबूलाल बिना विचलित हुए काम करन की सोच रहे हैं। इस सीट पर बाबूलाल भले ही तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन इनको क्.भ् लाख से ज्यादा वोट मिले। हालांकि विधानसभा चुनाव में बाबूलाल किस सीट से चुनाव लड़ेंगे यह अभी तय नहीं हुआ है। लेकिन इतना तय है कि बाबूलाल को सीएम प्रोजेक्ट करके उनकी पार्टी चुनाव लड़ेगी। लेकिन बाबूलाल मरांडी के सामने भी चुनौतिया हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव में इनकी पार्टी का खाता नहीं खुला है। जबकि पिछली लोकसभा में इनके दो सांसद थे। ऐसे में इस बार इनके जनाधार पर असर पड़ा है। हालांकि वोट प्रतिशत इनकी पार्टी का बढ़ा है।

विधानसभा की तैयारी में जुट गया हूं

राजनीति में हार-जीत लगी रहती है। लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी मैं निराश नहीं हूं, बल्कि नए जोश के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में लग गया हूं। आनेवाले विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को झारखंड में ज्यादा सीटें मिले इसके लिए काम करूंगा। अभी से क्षेत्र का दौरा करना शुरू कर दिया हूं। यह कहना है ऑल इंडिया तृणमूल के टिकट पर रांची लोकसभा सीट से चुनाव लड़े बंधु तिर्की का। बंधु तिर्की तिर्की को रांची लोकसभा सीट पर ब्म्,क्ख्म् वोट मिले थे और वे पांचवें पोजिशन पर थे। लेकिन बंधु के सामने भी मुश्किलें कम नहीं है। क्योंकि कार्यकर्ताओं को इकट्ठा रखना इनके लिए मुि1श्कल है।

अभी क्रिकेट में बिजी हूं

पहली बार चुनाव में उतरने के बाद भी हर वर्ग और क्षेत्र में मुझे सपोर्ट मिला। इसके लिए मैं जनता का आभारी हूं। आगे मैं क्या करूंगा अभी से नहीं कह सकता। अभी आईपीएल चल रहा है। उसमें बिजी हूं। लेकिन इतना तय है कि जनता के बीच बना रहूंगा। उनके सुख-दुख में हमेशा शामिल रहूंगा। यह कहना है अमिताभ चौधरी का। रांची लोकसभा सीट पर जेवीएम के टिकट पर चुनाव लड़कर चौथे पोजिशन पर रहे अमिताभ चौधरी अपनी हार से निराश नहीं हैं। लेकिन अमिताभ चौधरी के सामने भी राजनीति में बने रहने की चुनौतियां हैं।

समीक्षा के बाद तय करूंगा अागे की बात

लोकसभा चुनाव में अपनी हार की समीक्षा करने के लिए अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के साथ जल्द ही एक मीटिंग करूंगा, जिसमें यह पता लगाया जाएगा कि हार क्यों हुई। मैं जितने वोट का हकदार था, उससे बहुत कम वोट मिले। इसके बाद मैं अपने अगले कदम की घोषणा करूंगा। यह कहना है धनबाद लोकसभा सीट से ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे का। यह पूछने पर कि क्या वह ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाएंगे या फिर कांग्रेस में शामिल होंगे। इसके जवाब में उनका कहना है कि अभी तो वह तृणमूल में हैं, लेकिन झारखंड में तृणमूल उनके अनुसार चलेगी तो वह उस पार्टी के साथ रहेंगे। पार्टी अगर बात नहीं मानी तो फिर सोचेंगे। लेकिन इतना तय है कि वह कभी भी कांग्रेस में वापसी नहीं करेंगे। हालांकि ददई दूबे के सामने भी मुश्किलें ही मुश्किलें हैं। क्योंकि अब इनके सामने अपनी विधानसभा विश्रामपुर सीट भी बचाए रखने की चुनाैती है।

लोकसभा चुनाव कभी नहीं लड़ूंगा

ददई दूबे की तरह ही धनबाद से जेवीएम प्रत्याशी समरेश सिंह भी चुनाव हार गए। समरेश सिंह का कहना है कि वह अब कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि अपनी विधानसभा सीट बोकारो से विधानसभा में विधायक रहेंगे। समरेश सिंह अपनी पार्टी बनाने के साथ ही कभी बीजेपी में भी रह चुके है।

Posted By: Inextlive