फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक माना जाता है। इन आठ दिनों में सोलह संस्कार पूर्णतयः वर्जित रहते हैं केवल प्रसूति निवारण कर्म जातकर्म अन्तिम संस्कार ही किया जा सकता है। इन दिनों विवाह मुर्हूत एवं अन्य संस्कार के मुर्हूत नही होते है।

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक माना जाता है। इस बार यह 14 मार्च 2019 से लेकर 21 मार्च 2019 तक है। इसी बीच में रवि पुष्य योग, अमृतसिद्ध योग और सर्वाथ सिद्ध योग का भी विशेष योग है। ज्योषित शास्त्र के अनुसार इन दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है। इस समय शुभ मांगलिक कार्य करने पर अपशगुन होता है।

ज्योतिषत शास्त्र के अनुसार, जिस जातक का चन्द्रमा पीड़ित अवस्था में हो, नीचस्थ अथवा त्रिक भाव में स्थित हो, ऐसे जातकों को इस समय में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ज्योतिष के अनुसार, पूर्णिमा तिथि से पूर्व के आठ दिनों में मस्तिषक में कुछ दुर्बलता एवं बेचैनी बढ़ती है, इसके साथ दुःख, अवसाद और निराशा का प्रभाव बढ़ने लगता है। इन आठ दिनों में सोलह संस्कार पूर्णतयः वर्जित रहते हैं, केवल प्रसूति निवारण कर्म, जातकर्म, अन्तिम संस्कार ही किया जा सकता है। इन दिनों विवाह मुर्हूत एवं अन्य संस्कार के मुर्हूत नहीं होते है।

क्यों अशुभ होता है होलाष्टक

ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दिनों में देवाधिदेव भगवान शिव के बाईं ओर आद्यशक्ति रूपादेवी पार्वती भी बैठकर उनके सानिध्य से आनन्द का अनुभव करती हैं। विश्व विनाशक सभी देवों तथा सभी देवों मे अग्रणी पूज्य गणपति जी भी अपनी दोनों पत्नियों रिद्धी-सिद्धी के साथ प्रेमालाप में आनन्दित हो जाते हैं।

पहला कारण


ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिवजी ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था, इस कारण संसार में शोक की लहर फैल गई, अतः उनकी पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना मांगी। इसके बाद शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया।

दूसरा कारण


एक पौराणिक कथा के अनुसार, होलाष्टक से धूलंडी तक के आठ दिनों तक प्रह्लाद के पिता राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भगवान विष्णु से मोहभंग करने के लिए अनेक तरह की यातनाएं दी थीं, इसके बाद प्रह्लाद को जान से मारने के भरसक प्रयास भी किए थे परन्तु प्रत्येक बार भगवान अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा कर उसे बचा लेते थे।

आठ दिन के बाद जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को खत्म करने के लिए अपनी बहन होलिका को अग्नि स्नान में साथ बैठाकर भस्म करने की योजना बनाई। तय समय अनुसार जब होलिका प्रह्लाद को गोद में बैठाकर अग्नि स्नान शुरु किया, तुरन्त ही भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका तो जलकर मर गई लेकिन प्रहलाद का बाल—बाका भी नहीं हुआ। इस तरह होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को अशुभ समझा जाता है।

— ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा

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Posted By: Kartikeya Tiwari