क्या आपने कभी सोचा है कि मुन्नी बदनाम हुई......डार्लिंग तेरे लिए या फिर माई नेम इज शीला...शीला की जवानी जैसे गानों में ऐसा क्या था कि जिसने भी इसकी धुन को एक बार सुना वो ही इन्हें गुनगुनाने लगा.

हम सबके साथ ऐसा कई बार हो चुका है, कुछ गानों के बोल बिना किसी वजह के हमारे दिमाग में अटक जाते हैं और हम उन्हें कभी-कभी कई घंटों नहीं बल्कि कई दिनों तक गुनगुनाते रहते हैं।

असल में अच्छे संगीत की एक अलग फितरत होती है, ये आपने भी अनुभव किया होगा कि जब इसकी धुन हमारे सिर में घुसती है तो बार-बार, बिना किसी अंत के बजती रहती है।

क्या आपने कभी ये सोचने की कोशिश की कि आखिर ऐसा क्यों होता है ? पिछले कुछ समय से संगीत पर शोध कर रही 'संगीत मनोवैज्ञानिक' डॉक्टर विलियम्सन के मुताबिक इस अवधारणा में किस हद तक शोध मुमकिन है ये कहना मुश्किल है, क्योंकि ऐसा उनके साथ भी अक्सर होता है।

लंदन के गोल्डस्मिथ कॉलेज में याद्दाश्त विशेषज्ञ के तौर पर काम कर रहे डॉक्टर विलियम्सन के अनुसार, ''वैज्ञानिक इस विषय का विवरण कई नामों से करते हैं, जिनमे स्टक सॉन्ग सिन्ड्रोम, स्टिकी म्यूजिक, कॉग्निटिव इच और इयरवॉर्म शामिल हैं.''

विलियम्सन ने बीबीसी रेडियो में प्रसारित किए जाने वाले शॉन कीवेनिज के ब्रेकफास्ट शो के साथ मिलकर इस विषय पर काम करना शुरू किया और श्रोताओं से पूछा कि वे सुबह किस 'इयरवॉर्म' के साथ जगते हैं।

कई विभिन्न कारणविलियम्सन ने एक ऑनलाइन सर्वेक्षण के जरिए भी लोगों के इससे जुड़े अनुभव और कहानियां जुटाना शुरू कर दिया।

इस सर्वेक्षण में उन्हें कुछ खास चीजों के बारे में पता चला, उनमें से एक ये था कि जब उनके डेटाबेस में एक हजार से ज्यादा जबान पर चढ़ने वाले गाने इकट्ठा हो गए तब उन्होंने देखा कि इनमें बड़ी मुश्किल आधा या एक दर्जन गाने ऐसे थे। जिनका इस लिस्ट में एक से ज्यादा बार वर्णन हुआ था।

इससे ये पता चला कि ये ना सिर्फ व्यक्तिगत पहलू है बल्कि इसमें काफी विविधताएं भी हैं।

हालांकि इस परिपाटी में तब बदलाव देखा जा सकता है जब कोई फिल्म या गाना बहुत लोकप्रिय होता हैजैसा विद्या बालन की फिल्म डर्टी पिक्चर के गानेउहललाउह ललाके मामले में देखा गया।

यहां दूसरी अहम बात ये देखी गई कि अगर आप किसी गाने को बार-बार सुनते हैं तो उससे चिपक जाते हैं।

लेकिन कभी-कभी लंबे समय से किसी गाने को नहीं सुनने के बावजूद, हमारे आसपास के माहौल में कुछ ऐसा घटता है जो गाने से जुड़ी हमारी याद्दाश्त को ताजा कर देता है।

मान लीजिए आप अपने स्कूल जाते बच्चे को दादी-नानी की कहानियों की किताब सुना रहे हैं और बरबस ही आपके मुँह से इन गानों के बोल फूट पड़ते हैं।

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गया, बाकी जो बचा वो काला चोर ले गया या फिर
चंदा है तू मेरा सूरज है तू हां मेरी आखों का तारा है तू

ये वो गाने होते हैं जो हमारी बचपन की यादों से जुड़ा होते हैं और हमें हमारी दादी-नानी की याद दिलाते हैं।

स्थितियाँएक और चीज जो आमतौर पर इस तरह के स्थिति पैदा करती है वो तनाव से भरी चुनौतीपूर्ण स्थितियां होती हैं।

तनाव कई तरह के होते हैं परीक्षा में बैठने से लेकर, शादी होने और बच्चे को जन्म देने के दौरान होने वाले तनाव तक और ये भी मुमकिन है इन तनाव भरी चुनौतीपूर्ण स्थितियों के दौरान आपको कोई एक गाना सुकून देता होजैसे फिल्म मेरी जंग का ये गाना

जिंदगी हर कदम, एक नई जंग हो, जीत जाएंगे हमजीत जाएंगे हम
तू अगर संग है.जिंदगीहर कदम.इक नई जंग है।

एक और चीज जो ईयरवॉर्म पैदा करती है, उसे अनिच्छा से आई हुई याद्दाश्त भी कहते हैं, मसलन अचानक से कुछ खास खाने की इच्छा जगना या फिर अचानक किसी पुराने दोस्त से मिलने की इच्छा करना।

कुछ ऐसा ही संगीत के साथ भी होता है और इसकी दो वजह है, पहला ये कि संगीत को हम कई तरीके से इनकोड कर सकते हैं जिसे 'मल्टी सेन्सरी स्टीमुलस' कहा जाता है और दूसरा ये कि संगीत को अक्सर निजी और संवेदनशील चीजों के साथ जोड़कर देखा जाता है जिससे वो हमारी याद्दाश्त में गहरे से जुड़ जाता है।

मैकगिल विश्वविद्यालय मॉन्ट्रियल के डैनियल लेविटिन के मुताबिक ऐसा मानव के विकास के कारण हुआ हो सकता है क्योंकि लंबे समय तक मानव को काफी जानकारियों को अपनी याद्दाश्त में ही संजो कर रखना पड़ता था।

जैसे कौन सा खाना सेहतमंद है और कौन सा जहरीला, चोट लगने पर कौन सा इलाज करें या फिर बदलते मौसम में खाने को दूषित होने से कैसे बचाएं।

मददक्योंकि मानव की उत्पत्ति जहां दो लाख साल पहले हुई है वहीं लिखित भाषा का जन्म सिर्फ पांच हज़ार साल पहले हुआ है। इसलिए हमारी सभ्यता में हर ज़रूरी जानकारी को गद्य या पद्य के रुप में याद रखने और उसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने की प्रथा है।

और यहीं से लोक-भाषा, लोक-संगीत और लोक-कथाओं का जन्म हुआ। भारत में वेद और उपनिषद जैसी धार्मिक पुस्तकें पद्य में ही लिखी गई हैं।

लेविटिन कहते हैं सुर, ताल और लय ये तीनों ऐसी चीजें हैं जो गानों को याद रखने में मदद करती हैं और किसी एक गाने से पीछा छुड़ाने का सीधा तरीका ये है कि आप दूसरा गाना गुनगुनाना शुरू कर दें।

वैसे विलियम्सन ये पता करने की कोशिश कर रही हैं कि क्या इस आदत से छुटकारा पाने में क्रॉसवर्ड्स जैसे दिमागी खेल या जॉगिंग मदद कर सकते हैं।

लेकिन फिर भी लेविटिन और विलियम्सन दोनों का ये मानना है कि एक अवांछित गाने को दिमाग से निकाल देने पर भले ही आपको राहत मिल जाए लेकिन हो सकता है कि 'वो' अगला गाना आपके दिमाग में अटक जाए।

Posted By: Inextlive