पूरे हफ्ते काम करने के बाद जब संडे यानि रविवार की छुट्टी मिलती है तो वो किसी जन्‍नत के एहसास से कम नहीं होती। अगर किसी संडे को भी ऑफिस जाना पड़ जाए तो लोगों को मूड खराब हो जाता है। सच है अगर ये संडे न हो तो ऑफिस का काम जिंदगी पर भारी पड़ जाएगा। पर क्‍या आपने कभी सोचा कि ये संडे की छुट्टी दुनिया में कब और कैसे शुरु हुई। वैसे दुनिया के बाद भारत में संडे छुट्टी का इतिहास भी कम रोचक नहीं है।

दुनिया के ज्यादातर देशों में संडे को ही होती है ऑफिसेज में छुट्टी

पश्चिमी देशों से लेकर अधिकतर देशों में संडे को ही वीकऑफ मनाया जाता है। यानि कि लोग सैटरडे को वीकएंड इंज्वाय निकल सकते हैं। पारंपरिक क्रिश्चियन कैलेंडर के मुताबिक संडे हफ्ते का पहला दिन होता है, जबकि International Organization for Standardization ISO 8601 के अनुसार संडे सप्ताह का सातवां और अंतिम दिन होता है। तभी इस दिन ऑफिसेज में छुट्टी रखी जाती है।

 

क्रिश्चियन कैलेंडर में ही पहली बार घोषित हुई संडे की छुट्टी

क्रिश्चियन धर्म में संडे को प्रार्थना और आराधना का दिन माना जाता है। जीसस क्राइस्ट के दोबारा जी उठने का भी संडे से सीधा संबंध है। इसी कारण अंग्रेजों ने ईसाई धर्म के मुताबिक संडे को साप्ताहिक छुट्टी का दिन घोषित किया, ताकि कामकाजी लोग इस दिन आराधना और आराम कर सकें। हालांकि इससे पहले सालों तक पूरी दुनिया में मजदूर हफ्ते के सातो दिन काम करते थे। वैसे बता दें कि सऊदी अरब से लेकर मिडिल ईस्ट के कई देशों में शुक्रवार को होने वाली जुमे की नमाज के चलते शुक्रवार को ही साप्ताहिक अवकाश मनाया जाता रहा है, लेकिन साल 2013 में सऊदी अरब ने भी पूरे देश में संडे को ही वीकऑफ घोषित कर दिया।


भारतियों को संडे की छुट्टी यूं ही नहीं बल्कि कड़े संघर्ष के बाद मिली

यह बात तो आप जानते ही हैं कि अंग्रेजों से कई सौ सालों तक भारत पर शासन किया। इस दौरान अंग्रेज अधिकारी तो पारंपरिक रूप से संडे को छुट्टी पर रहकर चर्च जाकर प्रार्थना सभाओं में हिस्सा लेते थे, लेकिन अंग्रेज शासन के लिए काम करने वाले कर्मचारियों और फैक्टरी मजदूरों को कोई छुट्टी नहीं मिलती थी और उन्हें हफ्ते के सातो दिन काम करना होता था। ऐसे में भारतीयों को भी हफ्ते में एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए। इस विचार को लेकर अंग्रेज शासन के सामने आए प्रसिद्ध समाज सेवक श्री नारायण मेघाजी लोखंडे। नारायण लोखंडे वही शख्स थे, जिन्हें भारत में श्रम आंदोलन का जनक कहा जाता है, उन्होंने ही कामगारों के हित में ट्रेड यूनियनें बनवाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब लोखंडे जी ने भारतीय कर्मचारियों और श्रमिकों को भी हफ्ते में एक दिन का अवकाश देने का प्रस्ताव अंग्रेज अधिकारियों के सामने रखा, तो अंग्रेजों से ऐसा करने से इंकार कर दिया। पर लोखंडे जी की लगन पक्की थी, उन्होंने ठान लिया कि मजदूरों के हितों के लिए वो एक आंदोलन खड़ा करेंगे।


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साल के आंदोलन के बाद अंग्रेज सरकार ने हमें दी संडे की छुट्टी

19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भारत में तमाम तरह छोटे उद्योग और कपड़ा मिलें लगाईं थीं, जिनमें भारतीय कामगार काफी बुरी स्थितियों में काम करने को मजबूर थे। ऐसे में श्रम आंदोलन के प्रमुख नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने कामगारों के हितों की लड़ाई के लिए कपड़ा मिलों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए भी लड़ाई की शुरुआत की। इसी दौरान उन्हें महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सेवक महात्मा ज्योतिबा फुले का मार्गदर्शन मिला। उनके साथ मिलकर लोखंडे जी ने भारत के पहले कामगार संगठन “बांबे मिल एसोसिएशन” की स्थापना की थी। इसी तरह चले कई मजूदर आंदोलनों के दम पर 7 सालों तक अंग्रेजी शासन की खिलाफत करने के बाद 10 जून 1890 को लोखंडे जी का आंदोलन रंग लाया और ब्रिटिश शासन ने भारतीय कामगारों के लिए भी संडे की छुट्टी का प्रस्ताव मंजूर कर लिया।


लोखंडे जी के प्रयासों
से ही भारत में मिल मजूदरों और संगठित क्षेत्र के व्यापारिक उपक्रमों में काम करने वाले लोगों को हफ्ते में संडे का अवकाश, हर रोज दोपहर में भोजन के लिए आधे घंटे की छुट्टी और समय पर मासिक वेन मिलना शुरु हो सका। संडे की छुट्टी पाने के लिए जितना संघर्ष किया गया है, उसे जानकर तो हम आपको अपना संडे बेहतर ढंग से गुजारना चाहिए और खुश होना चाहिए।


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Posted By: Chandramohan Mishra