नार्वे के मैग्नस कार्लसन चेन्नई में पांच बार के विश्व चैम्पियन भारत के विश्वनाथन आनंद को हराकर शतरंज के नए विश्व चैम्पियन बन गए हैं.


कार्लसन की प्रतिभा के आगे आनंद का अनुभव काम नहीं आ सका.लेकिन क्या कार्लसन अपनी इसी प्रतिभा के दम पर वह कारनामा भी कर सकते हैं जिस वर्ष 1997 में शतरंज के बादशाह गैरी कास्परोव करने से चूक गए थे?कास्पारोव के बाद सबसे कम उम्र में  वर्ल्ड चैम्पियन का खिताब जीतने वाले कार्लसन के लिए यह चुनौती संभवतः आसान नहीं है.दरअसल, हम बात कर रहे हैं शह-मात के इस खेल में ''कृत्रिम बुद्धि'' (आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस) के प्रयोग की, जिसके सामने तमाम दिग्गज खिलाड़ी धाराशायी होते रहे हैं.डेविड लेवी की शर्तइतना ही नहीं ऐसी गलतियां हर क्षेत्र के दिग्गजों से होती है. साल 2006 में पूर्व वर्ल्ड चैम्पियन व्लादिमीर क्रेमनिक ने एक चर्चित गलती की थी. वह अपने प्रतिद्वंद्वी को चेकमेट करना ही भूल गए.
लेकिन, कंप्यूटर ऐसा नहीं करता. प्रोग्रामर उमर सईद कहते हैं, ''जब डीप ब्लू की जीत हुई तो मुझे कास्पारोव के लिए दुख हुआ. मुझे पता है कि उनके पास कितना असाधारण दिमाग है, लेकिन वह एक कंप्यूटर को हराने में सफल नहीं हो पाए.''सईद मानते हैं, "जब आप कंप्यूटर के लिए इस खेल को जटिल बनाते हैं तो इंसान के लिए भी यह कठिन हो जाता है."


सईद यह भी कहते हैं कि यदि आप आसान मूवमेंट अपनाते हैं तो इंसान के लिए यह गेम आसान बना रहेगा. वह शर्त लगाते हैं कि कंप्यूटर बेहतरीन खिलाड़ियों को नहीं हरा सकता.मशीनों का पलड़ा भारीखेल के प्रति कंप्यूटर का नज़रिया इंसान से अलग होता है.इंसान सोच सकते हैं कि कोई ख़ास चाल ठीक है या नहीं और इसके बाद वे आगे की चालों के बारे में सोचते हुए दिमाग में इसका परीक्षण करते हैं लेकिन एक कंप्यूटर के खिलाफ वे कुछ नहीं कर सकते.कंप्यूटर एक गलत चाल और उसके बाद की दर्जनों चालों का परीक्षण कर सकता है.सईद का कहना है कि कंप्यूटर इंसान की तरह शतरंज खेलकर नहीं जीत सकता. वह इसलिए जीतता है क्योंकि उसके गणना करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है.

Posted By: Subhesh Sharma