Jamshedpur: टावर्स से होने वाले रेडिएशन की जांच करने वाली संस्था टेलिकॉम इनफोर्समेंट रिसोर्स एंड मॉनिटरिंग टर्म सेल की मानें तो झारखंड में उनके द्वारा अब तक जांच किए गए सभी मोबाइल टावर्स का रेडिएशन लेवल प्रिस्क्रिाइब्ड लिमिट के अंदर है. पर एक्सपर्ट इन दावों पर कई सवाल खड़े करे रहे हैं.

 नहीं है radiation का खतरा!
गवर्नमेंट ने इस संबंध में कई रूल बनाए हैं। साथ ही सभी टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स को रेडिएशन नॉम्र्स के कंप्लाएंस के संबंध में सेल्फ-सर्टिफिकेट सबमिट करने का भी आदेश दिया है। इसके अलावा डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम के अंतर्गत काम करने वाली टेलिकॉम इनफोर्समेंट रिसोर्स एंड मॉनिटरिंग(टर्म) सेल बेस ट्रांसमिशन स्टेशन्स से होने वाले रेडिएशन लेवल की जांच भी करती है। इस सेल द्वारा स्टेट में मौजूद मोबाइल टावर्स के रेडिएशन की जांच का काम भी किया जा रहा है। टर्म ने स्टेट में अब तक जांच किए गए सभी मोबाइल टावर्स को क्लीन चीट दे दिया है। टर्म झारखंड के डीडीजी जेबी प्रसाद ने बताया कि स्टेट में करीब 13 हजार मोबाइल टावर्स है जिनमे लगभग 8 सौ टावर्स की जांच की गई है। जांच किए गए सभी टावर्स का रेडिएशन लेवल नॉम्र्स के अनुसार है।

अनुमान लगाना है गलत
इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर के मेंबर और रेडिएशन संबंधी मामलों के जानकार अतुल अग्निहोत्री बताते हैं कि एक बार जांच के आधार पर मोबाइल टावर्स के रेडिएशन लेवल को सही बताना गलत होगा। उन्होंने कहा कि इन टावर्स में फ्रिक्वेंसी को लेवल जरूरत के हिसाब से ट्यून किया जा सकता है, ऐसे में ये संभव है कि जब जांच कि जाए तो इन टावर्स में रेडिएशन का लेवल घटा दिया जाए। इस प्रॉब्लम से बचने के लिए उन्होंने टावर्स के कंटीन्यूअस मॉनिटरिंग की जरूरत बताई। ।

Indians को है ज्यादा खतरा
इंटर मिनिस्ट्रीयल कमिटी की रिपोर्ट में आईसीएमआर के मेंबर साइंटिस्ट ने इंडियन्स पर रेडियो फ्रिक्वेंसी रेडिएशन से होने वाल बुरे प्रभावों का असर ज्यादा पडऩे की बात कही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हॉट ट्रॉपिकल क्लाइमेट, लो बॉडी मास इंडेक्स, लो फैट कंटेट और रेडियो फ्रिक्वेंसी रेडिएशन के हाई कंसंट्रेशन की वजह से इंडियन्स पर इसका बुरा असर पडऩे का रिस्क ज्यादा है।

Mobile phone radiation की भी तय होगी limit
मोबाइल फोन टावर के साथ-साथ गवर्नमेंट द्वारा सेल फोन रेडिएशन के लिए स्ट्रिक्ट रूल बनाया गया है। नए रूल के अंतर्गत हैैंडसेट्स का स्पेशिफिक अब्जॉप्र्शन (एसएआर) वैल्यू 1.6 वाट पर केजी निर्धारित किया गया है। एक सितंबर से कंट्री में मैन्यूफैक्चर या इंपोर्ट किए जाने वाले सभी हैैंडसेट्स के लिए इस रूल को फॉलो करना मैंंडेटरी होगा। जेबी प्रसाद ने बताया कि हैैंडसेट्स की जांच के लिए दिल्ली में लोबोरेट्री बनाई जा रही है। रूल के लागू हो जाने पर दूकानों से हैैंडसेट्स के सैैंपल लेकर भी जांच की प्रक्रिया स्टार्ट की जाएगी।

Court में भी चल रहा है मामला
स्कूल्स, हॉस्पिटल्स और दूसरे पब्लिक बिल्डिंग्स पर मोबाइल टावर लगाने पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट सहित देश के कई हाई कोर्ट में केस चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सितंबर में राजस्थान हाई कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें सभी स्कूल और हॉस्पिटल के पास लगाए गए मोबाइल टावर्स को हटाने का आदेश दिया गया था। झारखंड हाई कोर्ट में भी 2010 में अनऑथोराइज्ड मोबाइल टावर्स पर कारवाई की मांग को लेकर पीआईएल फाइल किया गया था।

'स्टेट में करीब 13 हजार मोबाइल टावर है इनमें से 8 सौ की जांच की गई है। जांच किए गए टावर्स का रेडिएशन प्रिस्क्राइब्ड लिमिट के अंदर पाया
गया है.'
-जे बी प्रसाद, डीडीजी टेलिकॉम इनफोर्समेंट रिसोर्स एंड मॉनिटरिंग सेल
'एक बार की गई जांच से मोबाइल टावर्स के रेडिएशन लेवल के सही होना का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। फ्रिक्वेंसी को जरुरत के हिसाब से बढ़ाया या घटाया जा सकता है। मोबाइल टावर्स के कंटीन्यूअस मॉनिटरिंग की व्यवस्था होनी चाहिए.'
-अतुल अग्निहोत्री, मेंबर, इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स

'मोबाइल टावर्स से होने वाला रेडिएशन अगर प्रिस्क्राइब्ड लिमिट से ज्यादा हो तो उसके कई हेल्थ इफेक्ट्स हो सकते है। हॉस्पिटल्स के आस-पास टावर लगाने से पेशेंट्स पर काफी बुरा असर होता है.'
-प्रो एस एस सोलंकी, प्रोफेसर, बीआईटी रांची
'मोबाइल टावर्स की संख्या के संबंध में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है। हमें अभी तक डिपार्टमेंट से टावर्स के रजिस्ट्रेशन संबंधी कोई गाईडलाइन नहीं मिला है.'
-अयोध्या सिंह, टैक्स इंस्पेक्टर, जेएनएसी

Report by: abhijit.pandey@inext.co.in

Posted By: Inextlive