नुक्कड़ नाटक, डिस्प्ले मैसेज, जागरूकता अभियान गांव तक ले जाने की जरूरत

रूरल एरिया में मेडिकल फैसिलिटी अवेलेवल नहीं

RANCHI: डायन प्रथा के लगभग मामले ग्रामीण क्षेत्रों में होते आए हैं, लेकिन इसके उन्मूलन के लिए चलाया जाने वाला अभियान शहरों तक ही सिमट कर रह जा रहा है। नतीजन, गांव में डायन के रूप में चिन्हित की गई महिलाओं की स्थिति ज्यों का त्यों बनी रहती है, जबकि उनकी सुरक्षा और स्थिति को बेहतर करने के लिए हर तरह के कदम उठाए जाने हैं। आशा संस्था के सेक्रेटरी अजय कुमार बताते हैं कि गांव तक ऐसे अभियान नहीं पहुंच पा रहे हैं, जिनके जरिए डायन प्रथा का उन्मूलन किया जा सके। नुक्कड़ नाटक, डिस्प्ले मैसेज, जागरूकता अभियान शहरों तक ही सिमट कर रह गई हैं। जबकि गांव में जहां डायन प्रथा का सबसे ज्यादा प्रभाव हैं, वहां के लोग अभियान के जरिए शिक्षित नहीें हो पा रहे हैं।

.उठाने होंगे ये कदम।

लोगों को शिक्षित करें

डायन प्रथा के उन्मूलन में शिक्षा को अहम माना गया है। महिला आयोग से लेकर बाल कल्याण समाज विभाग तक गांव में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त कराने की बात कहते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं है। इसके लिए तमाम पारा टीचर्स को भी स्मार्ट ट्रेनिंग देने के साथ प्रॉक्सी टीचिंग जैसे मामलों की जांच कर शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की जरूरत है।

चिकित्सीय सेवा सुधारें

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष महुआ माजी झारखंड के गांवों का शहर से कट जाने की बात कहती हैं। वह कहती हैं गांवों में सड़क और चिकित्सीय व्यवस्था न होने के कारण महिलाएं शहर तक काम करने नहीं पहुंच पाती हैं। वहीं, चिकित्सा व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों की साधारण बीमारी भी बड़ा रूप ले लेती है। ऐसे में ओझा के कहने पर लोग झाड़-फूंक कराने के लिए विवश होते हैं।

महिलाओं को मिले संपत्ति हिस्सा

शहर के बजाए गांवों में नुक्कड़ नाटक कर लोगों को डायन प्रथा के खिलाफ जागरूक करने की जरूरत है। अब भी कई गांव हैं, जहां आदिवासी महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता है। ऐसे में अकेली या विधवा महिला को डायन बताकर उनके पति की संपत्ति हड़प ली जाती है।

ओझा-गुणी पर कार्रवाई हो

किसी भी महिला के डायन होने की पुष्टि उस गांव के ओझा, गुणी ही करते हैं। महिला आयोग की सदस्य किरण कुमारी बताती हैं कि डायन प्रताड़ना का मामला सामने आने पर अक्सर ओझा गुणी को पकड़ना चाहिए क्योंकि ये ही वे शख्स होते हैं जो ऐसी प्रथा को प्रगाढ़ बनाते जा रहे हैं। इन पर कानूनी रोक लगानी की जरूरत है। ओझा गुणी अक्सर चावल के अंदर ज्वलंत पदार्थ छुपा कर डाल देते हैं और डायन होने का प्रमाण उस चावल को जलाकर दिखाते हैं।

विज्ञान के बारे में बताएं

डायन प्रथा की मानसिकता के पीछे अंधविश्वास छुपा हुआ है। इससे छुटकारा दिलाने के लिए लोगों को विज्ञान की जानकारी देने की जरूरत है। किन वजहों से बीमारी होती है, कैसे फैलती है यह बताना बेहद जरूरी है। इसके अलावा उन्हें ओझा गुणी द्वारा भ्रमित करने वाले उपचार को भी विज्ञान से जोड़कर बताना चाहिए, ताकि लोगों को यह समझ आए कि कैसे उन्हें धोखे में रखकर ओझा गुणी या उस मानसिकता के लोग भ्रमित करते हैं।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को मिले ट्रेनिंग

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेवारी दी जानी चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में डायन प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरूक करें। उन्हें इस प्रथा को लेकर शिक्षित करने की जरूरत है।

संवेदनशील बने पुलिस व प्रशासन

आशा एनजीओ द्वारा अब तक कई ऐसी महिलाओं की कहानी लिखी जा चुकी है, जो डायन प्रथा की शिकार हैं। प्रताड़ना के वक्त जब इन्होंने पुलिस की मदद मांगी तो पुलिस की ओर से नजरअंदाज कर दिया गया। ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन को संवेदनशील करने की जरूरत है, ताकि उनकी भूमिका के जरिए इन पर रोक लग सके।

Posted By: Inextlive