व‌र्ल्ड वुमेंस डे की पूर्व संध्या पर आधी आबादी ने रखी अपनी बात

शहर की महिलाओं ने सोसाईटी में बदलाव को बताया समय की जरूरत

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PRAYAGRAJ: अक्सर घरों में कहा जाता है कि लड़की हो, इसलिए इन कामों को सीखना बेहद जरूरी है। लड़कों को बोला जाता है कि यह काम लड़कियों के करने वाले हैं। ऐसी सोच में अभी बदलाव की बहुत संभावनाएं हैं। जिस दिन घरों में लड़कों और लड़कियों के बीच इस अंतर को खत्म कर दिया जाएगा। उस दिन वास्तव में देश में वुमेंस इंपावरमेंट का असर दिखेगा। ये सोचना है अलग-अलग फील्ड में वर्क कर रही आज की महिलाओं का। सृजन हॉस्पिटल के ऑडिटोरियम में वुमेंस डे की पूर्व संध्या पर महिलाओं के बीच महिला सशक्तिकरण समेत कई मुद्दों पर चर्चा हुई। यहां महिलाओं के साथ ही ग‌र्ल्स ने भी अपने विचार बेबाकी के साथ रखे।

पहले के मुकाबले काफी सुधार

डिबेट की शुरुआत करते हुए सृजन हॉस्पिटल की डायरेक्टर और सीनियर गाइक्नोलॉजिस्ट डॉ। सबिता अग्रवाल ने कहा कि मौजूदा दौर में पहले के मुकाबले लोगों की सोच में बड़ा बदलाव आया है। ये महिला सशिक्तकरण के लिए बेहद जरूरी था। शहरी एरिया में ही नहीं अब ग्रामीण एरिया में भी लोग बेटियों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। पढ़ाई के साथ ही दूसरे कई क्षेत्र हैं, जहां पहले के मुकाबले अब महिलाओं को मौके मिल रहे हैं। ये वुमेन इंपावरमेंट का ही असर है कि महिलाएं आज प्रत्येक फील्ड में अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।

पुरुष भी संभालें घर

महिला इंपावरमेंट पर कनिका अग्रवाल का कहना था कि औरतें ही हमेशा से क्यों घर सम्भाले। जब आज पुरुषों की तरह महिलाएं भी जॉब कर रही हैं तो घर सम्भालने की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही क्यों होनी चाहिए। पुरुषों को भी आगे बढ़कर घर सम्भालने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए।

कम नहीं है शारीरिक क्षमता

इस दौरान कुछ लोगों ने महिलाओं की शारीरिक क्षमता को लेकर भी प्रश्न उठाए। कुछ महिलाओं का ही मानना था कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में शारीरिक क्षमता कम होती है। इसका जवाब भी डिबेट के दौरान कुछ महिलाओं ने दिया। डॉ। सबिता अग्रवाल ने इस एक्सक्यूज पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ये कहना कि महिलाओं की शारीरिक क्षमता कम होती है। पूरी तरह से गलत है। डिलेवरी के समय एक महिला जितना पेन सहन करती है। उतना पेन किसी भी व्यक्ति के लिए सहना संभव नहीं है। ऐसे में महिलाओं को कमजोर कहने या समझने की बात गलत है। हालांकि यह जरूरी है कि महिलाओं की सुरक्षा और घरेलू हिंसा जैसी घटनाओं पर रोक आज के समय में भी बेहद जरूरी है। डॉ। दीपाली श्रीवास्तव का कहना था कि आज भी सोसाइटी में माहौल ऐसा नहीं है कि बेटियों को पैरेंट्स लेट नाइट तक अकेले घर से बाहर भेज सकें। ऐसे में महिलाओं व ग‌र्ल्स की सुरक्षा को लेकर अभी बहुत काम होना बाकी है।

बेटों के लिए भी चले अवेयरनेस

डिबेट के दौरान ये भी मुद्दा उठाया गया कि हमेशा महिलाओं या ग‌र्ल्स के लिए ही अवेयरनेस प्रोग्राम चलते हैं। जबकि सबसे अधिक जरूरत ब्वायज और पुरुषों के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाने की है। उन्हें इस बात को लेकर अवेयर किया जाना चाहिए कि दूसरे के घर की बेटी को अपने घर की बेटी जैसा ही समझें। उनके साथ छेड़खानी या किसी भी प्रकार की हिंसक वारदात को अंजाम देने से पहले एक बार सोचें, ये उनकी घर की बेटियों के साथ भी हो सकता है। ग‌र्ल्स के लिए सेल्फ डिफेंस प्रोग्राम को एक सब्जेक्ट के रूप में अनिवार्य रूप से रखना चाहिए। इससे वह खुद की सुरक्षा कर सकेंगी। पैरेंट्स को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बच्चों को शुरु से ही गुड टच और बैड टच के बारे में अवेयर करना चाहिए। कई बार ग‌र्ल्स ऐसी घटनाएं होने पर शर्म के कारण घरवालों को कुछ नहीं बताती हैं। ब्वायज को भी घर में ग‌र्ल्स और महिलाओं की रिस्पेक्ट करने के बारे में अवेयर करना होगा। सही मायने में तभी वुमेन इंपावरमेंट का सपना साकार हो सकेगा।

अक्सर डिलेवरी के समय लड़का या लड़की होने पर परिवार वालों के चेहरे का भाव ही दोनों के अंतर को समझा देता है। ऐसे में जरूरी है कि लोगों की सोच को अभी और अधिक बदला जाए।

डॉ। सपना सिंह

ग‌र्ल्स में पुरुषों के मुकाबले अधिक शारीरिक क्षमता है। इसलिए यह कहना गलत है कि ग‌र्ल्स कमजोर होती है। डिलेवरी के समय एक महिला जितना पेन बर्दास्त करती है। उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।

डॉ। सबिता अग्रवाल

ग‌र्ल्स के साथ ही ब्वायज के लिए भी टाइम-टाइम पर अवेयरनेस प्रोग्राम चलने चाहिए। जिससे उनका भी माइंड वास हो सके और वे ग‌र्ल्स की रिस्पेक्ट कर सकें। इसके लिए जरूरी है कि पैरेंट्स खुद इसकी पहल करें।

कनिका अग्रवाल

ग‌र्ल्स की सेफ्टी पर अभी बहुत काम करने की जरूरत है। घर में ग‌र्ल्स के साथ ही ब्वायज को भी घरेलू काम में इन्वाल्व करने की जरूरत है। ताकि ग‌र्ल्स में किसी भी प्रकार की हीन भावना पैदा न हो सके।

डॉ। दीपाली श्रीवास्तव

अक्सर ग‌र्ल्स को लगता है कि कन्यादान के बाद पैरेंट्स का अधिकार कम हो जाता है। यही कारण है कि आज के समय में ग‌र्ल्स लेट शादी करती है। इसका असर उनकी आने वाली लाइफ पर पड़ता है। ऐसे में इस सोच को भी बदलने की जरूरत है।

ममता

सेफ्टी को लेकर अभी बहुत वर्क की जरूरत है। साथ ही ब्वायज की तरह ही ग‌र्ल्स को अपने स्टार्टटप के लिए फैमली को सपोर्ट करना चाहिए। सिर्फ जॉब के लिए ही नहीं प्रीफर करना चाहिए।

आकांक्षा मिश्रा

Posted By: Inextlive