Varanasi:अद्भुत अलौकिक अद्वितीय ऑसम. शायद यही कुछ वड्र्स हैं जो कुछ हद तक रविवार की शाम बनारस के घाटों की नजारे को बयां कर सकते हैं. दीपावली की रंगत खत्म होने के बाद बनारस में रविवार की शाम एक बार फिर दीपावली मनाई गयी. इस बार ये दीपावली थी देवताओं के लिए. गंगा के घाट अंसख्य दीपों की रोशनी से जगमग दिखे. लाखों दीपक की टिम-टिम और गंगा की लहरों में उसके प्रतिबिम्ब ने वो नजारा पैदा किया जिसका वर्णन आसान नहीं...


जैसे गंगा के आंचल में सजे हों लाखों सितारे


यहां से वहां तक फैले घाटों की श्रृंखला मानो मां गंगा का आंचल हो और इस पर रविवार की रात लाखों की सितारे जड़ दिये गए हों। इन सितारों की झिलमिल से निकल रही अनंत रश्मियों ने रचा कुछ ऐसा मायाजाल कि स्वर्ग लोग से देवता अदृश्य रूप में धरती पर उतरने को मजबूर हुए। अरे धरती पर स्वर्ग का नजारा? अद्भुत! आश्चर्यजनक! अलौकिक! लेकिन यह सच था। धरती वासियों ने गंगा के घाटों पर उपस्थित किया था स्वर्ग का नजारा। मौका था देव दीपावली का। यहां से वहां और वहां से जहां तक नजर गई जगमग दीयों की लंबी श्रृंखला झिलमिलाती दिखी। धरती तो धरती आकाश भी अनंत स्वर्ण रश्मियों से आलोकित हुआ। घाट की सीढिय़ों से लेकर गंगा की लहरों तक फिर घरों से लेकर मंदिरों तक हर जगह रोशनी ही रोशनी दिखी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाये जाने वाले देव दीपावली पर्व रविवार को पूरे बनारस में पूरे श्रद्धा और उल्लास से मनाया गया। कहीं कुछ छूट न जाये

धरती पर ऐसा अनुपम दृश्य उपस्थित हुआ तो उसे निहारने के लिए लोगों का रेला उमड़ पड़ा। हर आंख के इस खास मंजर को पूरी तरह अपने आप में समेट लेने को आतुर दिखी। कोशिश यही कि जी भर के देख लें। कहीं कुछ छूट न जाये। देव दीपावली को देखने के लिए लोगों को घाटों पर पहुंचने का दोपहर बाद से ही शुरू हो गया था। जैसे-जैसे सूरज अस्ताचल की बढ़ रहे थे वैसे वैसे घाटों की ओर जाने वाले सड़कों पर लोगों का हुजूम बढ़ता गया। हर जगह जाम की स्थिति पैदा हुई। दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, मानमंदिर घाट, अस्सी घाट, मीरघाट, त्रिपुरा भैरवी घाट, ललिता घाट, मणिकर्णिका घाट, सिंधिया घाट, पंचगंगा घाट, संकठा घाट, भोसला घाट, मेहता घाट, ब्रह्माघाट आदि घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं थी। सूरज डूबा तो जगे सितारे

पांच बजते बजते दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, राजेन्द्र प्रसाद सहित लगभग हर घाट लोगों से पट गये। अब हर किसी को सूर्य के अस्त होने का इंतजार था। फिर जैसे ही सूर्य ने पश्चिम में डुबकी लगायी घाटों का नजारा बदलने लगा। एक से शुरू हुआ दीप प्रज्ज्वलन कब लाखों में बदल गया पता ही नहीं चला। असंख्य दीपों की रोशनी से घाटों का कोना कोना नहा उठा। कोई दिये में तेल डालता दिखा तो कोई दीयों में बाती रखता। फिर आया दीयों को रोशन करने की बारी। लोगों ने पूरे उत्साह के साथ दीयों को प्रज्जवलित कर देव दीपावली का पर्व मनाया। महाआरती में उमड़ी भीड़ दशाश्वमेध घाट पर गंगा सेवा निधि की ओर से देव दीपावली कार्यक्रम का आयोजन हुआ। यहां महाआरती को देखने के लिए हजारों लोग पहुंचे। चीफ गेस्ट प्रख्यात गांधीवादी एसएन सुब्बाराव थे। टूरिस्ट मिनिस्टर ओम प्रकाश सिंह बतौर गेस्ट ऑफ आनर कार्यक्रम में शामिल हुए। इसी क्रम में शीतला घाट पर गंगोत्री सेवा समिति की ओर से भी देव दीपावली महोत्सव का आयोजन हुआ.  इसके अलावा बूंदी परकोटा घाट और पंचगंगा घाट पर शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया था। आसमान में आतिशी नजारा जब गंगा किनारे के घाट असंख्य दीपकों से झिलमिला रहे थे तो दूसरी तरफ आसमान में आतिशी नजारे भी ध्यान खींचा। दुर्गाघाट, पंचगंगा घाट, रामघाट आदि घाटों पर हो रहे आतिशबाजी का नजारा देखने लायक था। जबरदस्त भीड़ के चलते पुलिस को दशाश्वमेध, शीतला आदि घाटों पर कुछ देर के लिए एंट्री रोकनी भी पड़ी। ये भीड़ आस-पास के दूसरे घाटों पर चली गई। अस्सी घाट पर भी देव दीपावली कार्यक्रम का शानदार आयोजन हुआ। दीये दमके पूरी ताकत से
मिट्टी के दिये अपनी पूरी ताकत से दमके। कहीं छोटे दीयों ने घाटों को रोशन किया तो बड़े दीयों ने रोशनी का दम भरा। घाट की सीढिय़ों पर कहीं स्वास्तिक और ओम की आकृति को दीयों से उकेरा गया था। रामघाट पर रंग बिरंगी रंगोली पर सजाये गये दीये अलग ही छटा प्रदर्शित कर रहे थे। पंचगंगा घाट पर प्रस्तर स्तंभ हजारा में प्रज्जवलित दीयों का अनुपम दृश्य बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींच रहा था। हर घाटों पर दीप प्रज्वलन के पहले मां गंगा की विधिवत आरती व पूजन किया गया। लहरों से लिया नजारा एक तरफ तो घाटों पर लोगों की भीड़ जमा थी तो तो दूसरी तरफ हजारों ने गंगा की लहरों पर बलखाती नावों से इसका नजारा लिया। छोटे से लेकर बड़ी हर नाव पर लोग ही लोग। नावों की पतवारों से गंगा की शांत लहरे भी मचलती सी दिखाई दीं। छोटी हो या बड़ी, हर नाव पर लोग जमे थे। छोटी नाव की बुकिंग भी हजारों में थी। बजड़े की बुकिंग में अच्छे खासे पैसे खर्च हुए। मेरा सचिन महान
देव दीपावली के दियों में सचिन की चमक भी दिखी। मीरघाट पर लोगों ने दीयों से 'मेरा सचिन महान लिखा। इलाके के लोगों ने सचिन को बधाई देने का यह अंदाज निराला था। इसी तरह लोगों ने महंगाई को भी दीयों की रोशनी के माध्यम से पेश किया। देवताओं की जीत से जुड़ी है ये दीपावली काशी में देव दीपावली मनाने की परंपरा अति प्राचीन काल से सिर्फ पंचगंगा घाट पर थी। देव दीपावली का वर्तमान स्वरूप 1989 में वजूद में आया जो आज बढ़ कर महोत्सव का रूप ले चुका है। देव दीपावली आयोजन के सम्बन्ध में दो पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं। पहला यह कि काशी के पहले राजा दिवोदास ने अपने राज्य में देवताओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन कार्तिक मास में पंचगंगा घाट पर स्नान के महात्म्य का लाभ लेने के लिए देवता छिप कर यहां आते रहे। बाद में देवताओं ने राजा दिवोदास को मना लिया और खुशी में दीपोत्सव हुआ। दूसरी कहानी के अनुसार त्रिपुर नामक राक्षस पर विजय के पश्चात देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ शंकर की महाआरती की थी और नगर को दीपमालाओं से सजा कर विजय दिवस मनाया था।

Posted By: Inextlive