- वर्क प्रेशर के चलते चिड़चिड़े हो रहे बीआरडी मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर

- 36-36 घंटे तक करनी पड़ती है ड्यूटी, पढ़ाई का अलग झेलते हैं बोझ

GORAKHPUR: आए दिन बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बवाल तो जैसे आम बात हो गई है। लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि जरा-जरा सी बात पर तीमारदारों से भिड़ जाने वाले यहां के जूनियर डॉक्टर्स को आखिर इतना गुस्सा क्यों आता है? पढ़ाई में इतने तेज होने के बावजूद सड़कछाप गुंडों जैसा बर्ताव आखिर किस वजह से अनजाने में कर बैठते हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इसके पीछे की असल वजह जानने की कोशिश की। जो वजह निकलकर आई वो है वर्क प्रेशर। यहां के ज्यादातर जूनियर रेजिडेंट्स को सीनियर्स की उदासीनता के बीच काम के बोझ तले लगातार 36 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। इसी के बीच उन्हें पढ़ाई से लेकर प्रैक्टिकल तक में बैलेंस बनाने की टेंशन अलग झेलनी पड़ती है। ऊपर से मरीजों का ओवरलोड उनका शेड्यूल और भी हेक्टिक बना देता है।

पढ़ाई के साथ ही ड्यूटी का भी बोझ

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में गोरखपुर सहित नेपाल, बिहार व आसपास जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग इलाज कराने आते हैं। यहां ड्यूटी करने वाले डॉक्टर्स और जूनियर रेजिडेंट्स पर काम के बोझ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 500 मरीजों पर एक डॉक्टर है। इसमें भी ज्यादातर विभागों में जूनियर और सीनियर रेजिडेंट्स ही ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। घंटों तक चलने वाली ड्यूटी के बीच ही इन लोगों को अपनी रेग्युलर पढ़ाई के साथ ही प्रैक्टिकल की तैयारियों को भी बैलेंस करके चलना होता है। एक सीनियर रेजिडेंट ने बताया कि ज्यादातर समय उन लोगों के जिम्मे ही ओपीडी देखने से लेकर इमरजेंसी में मरीजों को भर्ती करना आदि जिम्मेदारियां होती हैं। इसी में जो वक्त बचता है उसमें अपनी पढ़ाई करते हैं जिससे परीक्षा में अच्छे मा‌र्क्स मिल सकें।

डॉक्टर्स की कमी, रेजिडेंट्स के भरोसे व्यवस्था

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कंसल्टेंट डॉक्टर्स की बेहद कमी है। यहां करीब 1050 बेड हैं जिनपर वर्तमान में करीब 1400 मरीज भर्ती हैं। चिल्ड्रेन वार्ड में तो ये हाल कि एक बेड पर दो-दो पेशेंट भर्ती किए गए हैं। डॉक्टर्स की कमी होने के बावजूद बीआरडी प्रशासन जूनियर और सीनियर रेजिडेंट्स के भरोसे ही मरीजों का इलाज चल रहा है।

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सीनियर डॉक्टर्स का रवैया भी वजह

रेजिडेंट्स के जरा-जरा सी बात पर आपा खो देने के पाछे यहां के विभागों की जिम्मेदारी निभाने वाले सीनियर डॉक्टर्स का रवैया भी जिम्मेदार है। जूनियर से लेकर सीनियर रेजिडेंट्स तक सभी ने दबी जुबान में सीनियर्स की उदासीनता को जूनियर डॉक्टर्स के शॉर्ट टेंपर की असल वजह बताया। नाम ना छापने की शर्त पर एक जूनियर रेजिडेंट ने बताया कि कई सीनियर डॉक्टर मरीजों को रेजिडेंट्स के भरोसे छोड़ खुद ड्यूटी से गायब रहते हैं। जिसके चलते कई मौकों पर रजिडेंट्स को 36-36 घंटे तक लगातार ड्यूटी करनी पड़ती है। ऐसे में साफ है कि वर्क लोड इन लोगों को चिड़चिड़ा बना रहा है जिससे वे हमेशा प्रेशर और तनाव में रहते हैं।

बीआरडी में डॉक्टर्स की संख्या

कंसल्टेंट डॉक्टर - 50

सीनियर रेजीडेंट - 25

जूनियर रेजीडेंट - 150

एमबीबीएस प्रथम, द्वितीय, तृतीय वर्ष के स्टूडेंट्स - 400

इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टर्स - 100

बीआरडी में बेड - 1050

प्रतिदिन ओपीडी की संख्या - 7500

प्रतिदिन इमरजेंसी में भर्ती होने वाले मरीज - 500

रेजिडेंट्स पर इन कामों का बोझ

- रिसर्च का वर्क

- ओपीडी के मरीजों को देखना

- इमरजेंसी केस वाले मरीजों को भर्ती करना

- पोस्ट ऑपरेटिव मरीजों को भर्ती करना

- कंसल्टेंट के साथ वार्ड का राउंड लेना

- वार्ड मैनेज करना

- आईसीयू, ट्रामा सेंटर में आने वाले मरीजों कों देखना

- मेडिकोलीगल करना

वर्जन

एक तरफ मरीजों का लोड तो दूसरी तरफ डॉक्टर्स की कमी बीआरडी के रजिडेंट्स के शॉर्ट टेंपर की मुख्य वजह है। यहां पर रनिंग वर्क काफी है। दूर दराज से मरीज के साथ तीमारदर आते हैं। कुछ तो पढ़े लिखे होते हैं तो कुछ अनपढ़ होते हैं। वह कई बार एक ही सवाल पूछते हैं और बार-बार उसका उत्तर देना होता है। साथ ही वर्क का सबसे अधिक दबाव होता है। जिसकी वजह से जूनियर रेजिडेंट्स को गुस्सा आ जाता है। डॉक्टर्स की ड्यूटी निर्धारित की जाए। एक पेशेंट के साथ दो ही अटेंडेंट को उनके साथ रहने की अनुमति दी जाए। साथ ही डॉक्टर्स के मनोरंजन की व्यवस्था की जाए। कई बार इस संबंध में प्रिंसिपल से मुलाकात कर जिक्र किया गया। लेकिन अभी तक इसे अमल मे नहीं लाया जा सका है।

- डॉ। सूर्यकांत ओझा, रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन, बीआरडी

डॉक्टर्स से हमेशा धैर्य की उम्मीद की जाती है। लेकिन काम का जरूरत से ज्यादा बोझ उन्हें भी चिड़चिड़ा बना सकता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट्स भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। वे काम के बोझ के तले दबे होते हैं। दूसरों को कैसे समझाएं इसलिए शब्दों का चयन ठीक से नहीं कर पाते। यही वजह है कि जरा-जरा सी बात पर उन्हें गुस्सा आ जाता है।

- डॉ। अमित शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ

बीआरडी में हुए बवाल

9 अक्टूबर: बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर व स्टाफ नर्स में विवाद।

13 अक्टूबर: मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर पर लगा तीमारदार से मारपीट का आरोप। 16 सितंबर: सर्जरी विभाग में डॉक्टर व तीमारदर के बीच मरपीट।

Posted By: Inextlive