आपकी डेली लाइफ की भागदौड़ के बीच जो एक चीज आपको हमेशा मुस्कराने और रिलैक्स करने में मदद करती है वह है कामेडी. यह दोस्तों या कलीग्स के कमेंट्स से भी आ सकती है और बास के तेज गुस्से के बीच भी पैदा हो सकती है. इस कामेडी को एक डे के तौर पर 10 जनवरी को सेलीब्रेट किया जाता है.


‘‘सुख और दुख की घडिय़ां तो जिंदगी में आनी जानी है, हंसी के बिना जिंदगी जीना, जिंदगी से बेईमानी है.’’ वर्ल्ड लाफ्टर डे पर हंसने हंसाने की अहमियत और आनेस्ट हंसी की डेफनीशन बताते हुए एक्टर राजपाल यादव कहते हैं कि पब्लिशिटी की आड़ में वल्गर जोक्स को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन आज भी ऐसे आर्टिस्ट्स का ग्रुप है जो हंसी में मिलावट के खिलाफ है.  राजपाल ने कहा कि असली कामेडी वही है जो घर में बेटी और बाप मिलकर एक साथ देख सकें और हंस सकें. अगर किसी भी कामेंडी को देखकर शर्म आने लगे तो वह कामेडी कहलाने के लायक नहीं है. उनका मानना है कि कॉमेडी सिनेमा पिछले सालों में बदलाव से गुजर रहा है जिसमें सभी तरह के दर्शकों को खुश करने के लिए उनके हिसाब से इसे परोसा जा रहा है.


राजपाल ने कहा, ‘‘मैं कभी किसी सूरत में वल्गर कॉमेडी नहीं करूंगा.’’ यह पूछे जाने पर क्या इंडिविजुअल कमेंट्स और छींटाकशी से हसाना जायज़ है, राजपाल कहते हैं कि यह कामेडी के गिरते लेवल को बताता है.’’

‘ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज-2’ और ‘कॉमेडी सर्कस’ में शिरकत कर चुके सरदार प्रताप फौजदार खुले ढंग से मानते हैं कि हसी के लेवल में पक्के तौर पर गिरावट आई है. हालांकि उनके मुताबिक कॉमेडी का क्लासीफिकेशन हो चुका है. कवि सम्मेलनों में आने वाला एक ग्रुप ऐसा है, जो वहां सोसाइटी और सिस्टम पर चोट करने वाला व्यंग्य सुनने जाता है. उसके बाद मिडिल क्लास का नंबर है, जो घर में टीवी पर ‘स्टैंड अप कॉमेडी’ देखता है और उसके ह्यूमर की खुराक पूरी हो जाती है. इसके बाद वह क्लास है जो देश की आपाधापी से दूर अपने आप में ही खोया है और उसे आप सैरकास्टिक ह्यूमर नहीं समझा सकते. प्रताप फौजदार का मानना है कि कामेडी ऐसी हो कि चाहिए, जिससे किसी को तकलीफ न हो. किसी को हंसाने के लिए दूसरे को दुख देना भी तो ठीक नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘आजकल लोग किसी के चेहरे मोहरे अथवा उसके अंदाज के बारे में भद्दी छींटाकशी कर कामेडी बनाते हैं. यह जरूरी तो नहीं कि हर आदमी दूसरे को अच्छा ही लगे और ऐसा नहीं होने पर उसका मजाक बनाना ठीक नहीं है.’’

ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज के पहले संस्करण के विनर सुनील पॉल का मानना है कि कामेडी को कभी भी ‘टू मच’ नहीं कहा जा सकता. आजकल कामेडी को इसलिए ही ज्यादा परोस रहे हैं क्योंकि उसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है. सुनील भी कामेडी के नाम पर भद्दे कमेंट्स के सख्त खिलाफ हैं.

Posted By: Divyanshu Bhard