बेटी थी, इसलिए लावारिस छोड़ा या मार डाला

- मेरठ में हर महीने एवरेज 12 से 15 बच्चियों को छोड़ दिया जाता है लावारिस

- चाइल्ड सेक्स अनुपात और सेक्स अनुपात में लगातार आ रही है कमी

Meerut : हम बेटी और बेटे में काई फर्क नहीं करते हैं। आज बेटी अपने मां-बाप का नाम खूब रोशन कर रही हैं। बात चाहे बोर्ड एग्जाम की हो या फिर मेडिकल की। हर जगह लड़कियां ही अव्वल हैं। वहीं ऐसी सोच भी है, जो बेटियों को बोझ मानती है और उन्हें सांस लेने का भी हक नहीं देती। कभी जन्म से पहले तो कभी जन्म देने के बाद बदनसीब बेटियों को मौत दे दी जाती है। अगर मारा भी नहीं जाता तो उन्हें लावारिस जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया जाता है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि सरकारी आंकड़े चिल्ला-चिल्लाकर कर इस बात की पुष्टि कर रहे है।

मेरठ में ऐसा कोई सेंटर नहीं है, जहां दस साल तक के बच्चों को रखा जा सके। उन्हें रामपुर भेज दिया जाता है। इनमें से अधिकतर लड़कियां ही होती है। ये काफी दुर्भाग्य हैं कि आज के मॉर्डन युग में लड़कियों को इस तरह से लावारिस की तरह छोड़ दिया जाता है।

- रवि मल्होत्रा, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति

Child sex ratio

India 919

UP 902

Meerut 850

Kanpur 870

Bareilly 900

Lucknow 913

Allahabad 893

Varanasi 885

Gorakhpur 909

Agra 835

Dehradun 889

Patna 869

Jamshedpur 895

Ranchi 938

Sex ratio

India 943

UP 912

Meerut 888

Kanpur 852

Lucknow 915

Allahabad 893

Varanasi 913

Gorakhpur 950

Bareilly 887

Agra 868

Dehradun 902

Patna 882

Jamshedpur 920

Ranchi 949

कब तक मरती रहेंगी

वैसे तो मेरठ सिटी को एजुकेशन हब के साथ मेडिकल हब भी कहा जाता है। लेकिन बावजूद इसके लोगों में बेटियों को लेकर संवेदनहीनता साफ दिखाई देती है। अगर जनगणना 2011 के हिसाब से मेरठ के सेक्स रेशो की बात करें तो 1000 लड़कों पर 888 ही लड़कियां हैं। वहीं चाइल्ड सेक्स रेशो की पर नजर डाले तो स्थिति और भी बुरी नजर आती है। प्रत्येक 1000 बच्चों पर 850 ही बच्चियां हैं। प्रदेश के दूसरे शहरों की बात करें तो चाइल्ड सेक्स रेशो में उनकी स्थिति हमसे कुछ बेहतर नजर आती है। बरेली (900), लखनऊ (913), कानपुर (870), इलाहाबाद (893), बनारस (885), गोरखपुर (909) प्रमुख हैं।

बढ़ रही हैं कत्लगाहों की संख्या

वहीं अल्ट्रासाउंड सेंटर्स लड़कियों की जिंदगी के लिए आफत बन गए हैं। मगर इनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। अगर बात मेरठ की करें तो सिटी में रजिस्टर्ड अल्ट्रासाउंड सेंटर्स की संख्या करीब 200 हैं। जबकि गिनती में इनकी इससे कहीं ज्यादा है। जहां हर रोज न जाने कितनी मासूमों को सजा-ए-मौत मिल रही है और पीएनडीटी एक्ट की धज्जियां उड़ाई जा रही है। न तो प्रशासन ही लगाम कस रहा है और सरकार भी इन पर नकेल कसने को तैयार नहीं है। ऐसे में ये सेंटर्स अपने कुछ फायदे के लिए कोख में ही बेटियों का कत्ल कर रहे हैं।

लावारिस छोड़ रहें हैं बेटियों को

ऐसे लोग भी कम नहीं हैं, जो बेटियों को पैदा तो करते हैं, लेकिन जब बात पालन पोषण की आती हैं तो उन्हें नालों के किनारे, कूड़े के ढेर में, हॉस्पिटल में या फिर किसी अनाथालय की चौखट पर छोड़कर चले जाते हैं। बाल कल्याण समिति के रवि मल्होत्रा कहते हैं कि मेरठ में 10 साल तक की लावारिस लड़कियों के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे में उन्हें रामपुर भेज दिया जाता हैं। जनहित फाउंडेशन की डायरेक्टर अनीता राणा बताती हैं कि हर महीने हमारे यहां अनाथालयों में करीब 12 से 15 केस एवरेज आ जाते हैं जो लड़कियों को लावारिस छोड़ के चले जाते हैं।

आखिर क्यों छोड़ देते हैं?

जनहित फाउंडेशन की चेयरमैन अनीता राणा बताती हैं कि कुछ दिन मेडिकल में एक परिवार नवजात बच्ची को छोड़कर चला गया था। जब हम पहुंचे तो डॉक्टर ने बताया था कि इस बच्ची के बचने के काफी कम चांस थे। अब भी वह पूरी जिंदगी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकेगी। इस कारण से भी पेरेंट्स नहीं लेकर गए। अनीता ने बताया और भी कारणों से बच्चों को छोड़ दिया है। अगर किसी परिवार में एक या उससे अधिक लड़कियां होती हैं या फिर किसी परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं होती तो भी ऐसे केस सामने आते हैं।

लड़कियों को मारने और छोड़ने के प्रमुख कारण

- घर में पहले से ही एक या उससे ज्यादा लड़की होना।

- परिवार के बुजुर्गो में लड़के की लालसा होना।

- आर्थिक स्थिति ठीक न होना।

- परिवार का पढ़ा लिखा न होने की वजह से अवेयर न होना।

- जन्म के तुंरत गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाना।

- लड़कियों को बोझ समझना।

- सिर्फ लड़कों को अपने परिवार का फ्यूचर समझना।

वर्जन

चाइल्ड सेक्स रेशियो की बात करें या फिर जन्म के कुछ घंटों बाद लड़कियों को छोड़ देने की बात हो दोनों के सोशल रीजंस हैं। अधिकतर लोगों का अभी भी माइंड सेट 1950 और 60 वाला ही है। लोगों को समझना चाहिए कि आज लड़कियां लड़कों के कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है।

- अल्का गर्ग, गायनाकॉलोजिस्ट

हमें कई ऐसे केसेज मिलते हैं जो लड़कियों को इसलिए छोड़ जाते हैं क्योंकि जन्मजात किसी न किसी बीमारी ग्रसित होती है। उन्हें उसके इलाज का खर्चा न उठाना पड़े इसलिए वो छोड़ जाते हैं। कई ऐसे भी होते हैं जो इसलिए छोड़ जाते हैं क्योंकि उनके घर पहले से ही एक या उससे ज्यादा लड़कियां होती है।

- अनिता राणा, डायरेक्टर, जनहित फाउंडेशन

Posted By: Inextlive