- डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी के हिस्ट्री डिपार्टमेंट की ओर से ऑर्गेनाइज हुआ नेशनल सेमिनार

- फ्यूचर आसपेक्ट्स को लेकर डिफरेंट मुद्दों पर हुई बहस

GORAKHPUR :

फास्ट लाइफ मौजूदा वक्त की जरूरत बन गई है। जरा सी लापरवाही या इग्नोरेंस, जिंदगी में पीछे करने के लिए काफी है। यही वजह है कि लोग वक्त के साथ बने रहने के लिए हर तरह की कोशिशों में लग गए हैं। इन सबके बीच वह अपने वर्क स्टाइल, फैमिली, रिलेटिव, ट्रेडिशन के साथ कल्चर को भी दर किनार कर चुके हैं। इसके रिजल्ट में उनके साथ तो स्ट्रेस जुड़ चुकी है, वहीं समाज में भी कई बेसिक डिफरेंस आए हैं। भाग-दौड़, स्ट्रेस और टेंशन के साथ जीना भला कोई जीना है। यह बातें सामने आई डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी के हिस्ट्री डिपार्टमेंट में ऑर्गेनाइज नेशनल सेमिनार में, जहां टयूविंजम यूनिवर्सिटी जर्मनी से आए डॉ। दिव्यराज अभिय की नोट स्पीकर के तौर पर मौजूद रहे।

पचास साल में आए बेसिक चेंज

डॉ। दिव्यराज ने बताया कि पिछले पचास सालों में समाज में काफी चेंजेस आए हैं। इसमें तीन बेसिक चेंजेस देखने को मिले हैं। इसमें सबसे पहला है बच्चों में बढ़ती होड़। उन्होंने बताया कि पहले जहां क्9भ्0 के दशक में हाईस्कूल और सेकेंडरी एग्जाम में भ्0 परसेंट नंबर पाने वाले बच्चे लोगों की नजर में हीरो होते थे, मगर अब क्00 परसेंट पाने वाले बच्चे की भी कोई अहमियत नहीं है। वहीं ज्ञान और शिक्षा का बढ़ता हुआ बोझ और वक्त की कमी ने पेरेंट्स और टीचर्स को नई पीढ़ी का दुश्मन बना डाला है।

मजदूर हो चुके हैं हम

सेमिनार के दौरान बातचीत में यह बात सामने आई कि हम अब पूरी तरह से मजदूर हो चुके हैं। पहले जहां हम 8 से क्0 घंटे मेहनत कर ब्-भ् या इससे भी बड़े परिवार आसानी से चला लेते थे, वहीं अब हसबेंड और वाइफ दोनों मिलकर कमाने के बावजूद कुछ कमी रह जा रही है। हसबेंड और वाइफ दोनों के वर्किंग आवर्स की बात करें तो यह ख्ब् घंटे हो जा रहा है। यानि वर्क उतना ही है और वर्किंग आवर्स के साथ हमारी मेहनत पहले से तीन गुना बढ़ गई है। वहीं टेक्निकल क्रांति की वजह से हमारी उत्पादकता भी पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गई है, मगर फिर भी हमें इसका फायदा नहीं मिल रहा है। आखिर ऐसा क्यों है, यह एक बड़ा सवाल है। इसके साथ ही एनवायर्नमेंट को भी काफी नुकसान पहुंचा है।

इंटरएक्टिव सेशन में खूब हुई बहस

सेमिनार के दौरान एक इंटरएक्टिव सेशन भी ऑर्गेनाइज किया गया। इसमें डॉ। दिव्यराज की दिल्ली पर बेस्ड डॉक्युमेंट्री 'यह जीना भी कोई जीना है' पर लोगों ने थोड़ी आपत्ति उठाई, वह यह कि दिल्ली की जो कंडीशन है वह जरूरी नहीं है कि पूरे देश की कंडीशन हो। इस पर एचओडी डॉ। हिमांशु चतुर्वेदी ने अपना मत रखते हुए कहा कि एलविन टॉफलर ने क्980 में फ्यूचरोलॉजी पर बेस्ड बुक 'फ्यूचर शॉक' लिखी थी, जिसमें मौजूदा हालात का जिक्र था। तो क्या जो इस डॉक्युमेंट्री में कहने की कोशिश की गई है, वह कंडीशन फ्यूचर में फेस नहीं करनी पड़ सकती है।

वीसी ने किया नौकरी का विशलेषण

सेमिनार की अध्यक्षता वीसी प्रो। अशोक कुमार ने की। इस दौरान उन्होंने नौकरी का रोचक विश्लेषण किया और शिक्षा व्यवस्था पर अपने एक्सपीरियंस शेयर किए। गेस्ट का वेलकम एचओडी डॉ। हिमांशु पांडेय ने और संचालन डॉ। चंद्रभूषण अंकुर ने किया। इस दौरान बड़ी तादाद में टीचर्स, स्टूडेंट्स और डेलीगेट्स मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive