ये कैसी तैयारी है?
कहां है कन्ट्रोल रूम फ्लड कन्ट्रोल रूम फूलबाग के बगल में स्थित इरीगेशन डिपार्टमेंट के ऑफिस में खुला हुआ है। अगर आप वहां फ्लड कन्ट्रोल को तलाशते हुए पहुंचेंगे तो फ्लड कन्ट्रोल रूम की बजाए भूमि सिंचाई का ऑफिस मिलेगा। दरअसल कन्ट्रोल रूम को भूमि सिंचाई के ऑफिस से दूसरी जगह (सिचाई संघ ऑफिस में) शिफ्ट किया जा चुका है। लेकिन ऑफिस के बाहर कन्ट्रोल रूम की बजाए सिंचाई संघ का नाम ही लिखा हुआ है। जिसकी वजह से लोग फ्लड कन्ट्रोल रूम का पता लगाने के लिए भटकते रहते हैैं।दो लोगों के भरोसे सबकुछ
सैटरडे की दोपहर आई नेक्स्ट की टीम फ्लड कन्ट्रोल रूम को तलाशते हुए इरीगेशन डिपार्टमेंट पहुंचीं। कन्ट्रोल रूम में दो इम्प्लाइज मौजूद मिले। लाइट गुल होने और जबरदस्त उमस के कारण कन्ट्रोल रूम में मौजूद इम्प्लाईज पसीने से तरबतर नजर आएं। इनवर्टर या जेनरेटर की वहां कोई व्यवस्था नहीं है। इससे भी ज्यादा हैरानगी की बात ये है कि कन्ट्रोल रूम में संचार जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। वायरलेस सेट तो दूर की बात एक फोन तक नहीं है, जिससे कि इमरजेंसी जैसी कोई सूचना कन्ट्रोल रूम से एडमिनिस्ट्रेशन या फ्लड कन्ट्रोल से जुड़े ऑफिसर्स को दी जा सके। 15 जून से इस ऑफिस में फ्लड कन्ट्रोल रूम जरूर खुला हुआ है, लेकिन स्टेशनरी तक उपलब्ध नहीं कराई गई है। पिछले वर्ष के रजिस्टर्स में बचे पेजेस में ही इन दिनों गंगा के वाटर लेवल के अलावा नरौरा व हरिद्वार में गंगा की स्थिति की सूचनाएं दर्ज की जा रही हैैं। इन सूचनाओं के लिए भी कन्ट्रोल रूम सेंट्रल वाटर कमीशन के भरोसे हैैं। सुबह एक इम्प्लाइ सीडब्लूसी के ऑफिस जाकर वहां से गंगा का जलस्तर पता करके लाता है।
कागज पर फ्लड मैनेजमेंटउपकरण-टोटल - डिस्ट्रिब्यूशन- स्टोर में लाइफ सेविंग जैकेट- 218- 40- 178रस्सा नायलॉन- 14-05-09नाव साधारण- 08-02-06(खराब)मोटर वोट- 01-01-00रोप लेडर- 06-00-06दो बोट चालकतीन नाविक(2 डिस्ट्रिक्ट्स के बाहर)(नोट-डेटा अप्रैल में जारी की गई फ्लड मैनेजमेंट प्लान बुकलेट से है)नरौरा से गंगा में छोड़ा गया लाखों क्यूसेक पानीपिछले दिनों उत्तराखंड में हुई बारिश और बादल फटने का असर सिटी में नजर आने लगा है। गंगा का वॉटर लेवल तेजी से बढ़ रहा है। दो दिनों में वॉटर लेवल एक मीटर से अधिक बढ़ गया है। सैटरडे को जलस्तर 112 मीटर के पार पहुंच गया है। जबकि वॉर्निंग लेवल 113 व डेंजर लेवल 114 मीटर है। वहीं नरौरा से लगातार गंगा में पानी छोड़ा जा रहा है। इरीगेशन डिपार्टमेंट के ऑफिसर्स की मानें तो अगर पिछले दिनों की तरह नरौरा से गंगा में लगातार पानी छोड़ा गया तो फ्लड के हालात बन सकते हैैं।
नरौरा से सिटी तक 3 दिन मेंनरौरा से गंगा में छोड़े गए पानी को सिटी आने में करीब 3 दिन लग जाते हैैं। जबकि नरौरा से 20 व 21 जून को मिलाकर 10 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया है। इससे पहले 19 जून को 4.26 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। जिससे की वजह गंगा का वॉटर लेवल 112 मीटर के करीब पहुंच गया है।अगस्त-सितंबर में होता है ये हालफिलहाल गंगा की जो पोजीशन है, नॉर्मली ये स्थिति अगस्त व सितंबर में होती है। लेकिन अबकि बार उत्तराखंड में जबरदस्त बारिश व बादल फटने से अभी से फ्लड जैसे हालात को लेकर ऑफिसर्स आशंकित हैैं। उनकी ये चिन्ता भी वाकिफ है क्योंकि 18 जून से गंगा का जलस्तर लगातार तेजी से बढ़ रहा है। पिछले 2 दिनों में वॉटर लेवल 2 मीटर बढ़ गया है। पिछले 24 घंटे में तो गंगा का जलस्तर एक मीटर बढक़र 112 मीटर के करीब पहुंच गया है। डेंजर लेवल के भी पारसेंट्रल वॉटर कमीशन के मुताबिक कानपुर साइड गंगा का वार्निंग लेवल 113 मीटर और डेंजर लेवल 114 मीटर है। जबकि शुक्लागंज साइड तो ये क्रमश: 112 व 113 मीटर है। तीन साल पहले 29 सितंबर 2010 को गंगा में जबरदस्त उफान आया था। वॉटर लेवल डेंजर लेवल का पार कर 114.070 मीटर पर पहुंच गया था।
इन इलाको में भर गया था पानी2010 में गंगा के उफान पर आने से सिटी में पानी घुस गया था। पहले फ्लड ने गंगा कटरी के गांवों में तबाही मचाई फिर गंगा के घाटों के किनारे बसे मोहल्लों में पानी भर गया था। यही नहीं फ्लड के कारण मैनावती मार्ग किनारे डीपीएस को बन्द देना पड़ा। पानी एक तरफ मैनावती मार्ग और दूसरी बिठूर-कल्याणपुर रोड को पार गया था। परमट और सत्ती चौराहा तक पानी भर गया था। गंगा में गिरने वाले नाला बैक फ्लो होने लगे थे।एक नजर इधर भी-पिछले तीन दिनों में नरौरा से गंगा में छोड़ा गया 10 लाख क्यूसेक पानी कानपुर पहुंचने लगा है। इसी वजह से गंगा का वाटर लेवल तेजी से बढ़ रहा है।-एमके निगम,एक्सईएन, गंगा बैराज डिवीजन इरीगेशन-गंगा के जलस्तर पर लगातार निगाह बनी हुई है। हालात से निपटने के सभी जरूरी इंतजाम हैैं। अभी जलस्तर और बढऩे के आसार हैं- एमए फारूखी, तहसीलदारगंगा का वॉटर लेवल
डेट- वॉटर लेवल22 जून( शाम 4 बजे)- 111.58022 जून (दोपहर 12 बजे)-111.50022 जून (सुबह 8 बजे)- 111.39021 जून- 110.75020 जून- 109.58019 जून- 109.43018 जून- 109.070 17 जून- 108.97016 जून- 108.680(गंगा का वॉटर लेवल कानपुर साइड का है और मीटर में है)29 सितंबर 2010 को फ्लड गंगा का वॉटर लेवल पहुंचा-114.075 मीटरवार्निंग लेवल- 113 मीटरडेंजर लेवल- 114 मीटरनरौरा से गंगा में छोड़ा गया पानीडेट- वॉटर डिस्चार्ज22 जून- 09921821 जून-50852620 जून-58649619 जून-42616818 जून- 09993817 जून- 02691716 जून- 019094(वॉटर डिस्चार्ज क्यूसेक में)हिल एरिया के प्रलय का प्रभाव यहां भी कुदरत के कहर ने उत्तराखंड में तबाही की जो इबारत लिखी है उसे साफ करने में सालों लग जाएंगे। लेकिन वहां से गंगा में तेजी से आ रहे अरबों लीटर पानी और उसके साथ बहकर आ रही गाद व गंदगी मैदानी इलाकों में भी अपना दुष्प्रभाव दिखाएगी। आईआईटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि जब यह गाद गंगा की मेन स्ट्रीम में जमा हो जाएगी तो कभी जलस्तर बढऩे पर गंगा की धाराएं किनारे वाले इलाकों में घुसकर तबाही मचाने लगेंगी। समस्या केवल यहीं पर खत्म नहीं होती, बल्कि पहाड़ों से बहकर आ रही गंदगी अपनी ही पूरी एक्वेटिक लाइफ, मछलियों, जीव जंतुओं के जीवन के लिए संकट आ गया है।सिटी में बाढ़ का संकटगंगा रिवर बेसिन प्रोजेक्ट से जुड़े आईआईटी के प्रोफेसर डॉ। विनोद तारे ने कहा कि जिस तरह से पहाड़ पर बीती 15-16 जून की नाइट में बादल फट गए उससे गंगा रिवर के आसपास के गांवों में आने वाले टाइम में प्रॉब्लम हो सकती है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कानपुर में भी बाढ़ की आशंका जतायी है। डॉ। तारे का कहना है कि जब गाद गंगा की मेन धारा में जमा हो जाएगी तो फिर बाढ़ का पानी गंगा के आसपास बसे टाउन में कहर बरपाएगा।तेज बहाव में सिल्ट दूर तक जाएगीसबसे ज्यादा वो प्लेन का एरिया होगा जो पहाड़ों से सटा होगा। उत्तराखंड में जो तांडव हो चुका है अब प्लेन को बचाने की तरफ वर्क करना चाहिए। पहाड़ से आने वाली सिल्ट कानपुर ही नही बल्कि काफी दूर तक जाएगी इसकी वजह यह है कि पानी का बहाव इतना तेज है कि वो तेजी से आगे की तरफ जा रही है। यही सिल्ट प्लेन के लिए मुसीबत बन जाएगी।जिंदगी खतरे मेंप्रो। डॉ विनोद तारे का कहना है कि इस तबाही का असर अब गंगा में रहने वाली मछलियों पर पड़ेगा। उनकी लाइफ पर भी संकट आएगा। मछली के लिए जून, जुलाई बहुत ही अहम होते हैैं। ऐसे में यह पानी उनके जीवन पर संकट बनकर आया है। ऐसे टाइम वो सुरक्षित स्थान खोजती हैैं। मछली के अलावा अन्य जीव जन्तुओं की लाइफ पर संकट आ गया है।भूस्खलन रोकना होगाआईआईटी गांधीनगर के डायरेक्टर प्रो। सुधीर जैन (पूर्व विभागाध्यक्ष आईआईटी कानपुर) ने कहा कि निश्चित तौर पर अब मैदानी इलाकों में गंगा का स्टाइल बदल जाएगा। जो कि एक तरह से खतरे का संकेत हैै। अब हमें पहाड़ का भूस्खलन रोकने की दिशा में वर्क करना चाहिए। अगर अभी भी नहीं बदले तो फिर फ्यूचर में इससे ज्यादा भयावह मंजर देखने को मिलेगे। पहाड़ को विस्फोट से समाप्त न करें बल्कि उन्हें संरक्षित करने की दिशा में वर्क करें। ट्री प्लांटेशन पर फोकस करना चाहिए।