Kanpur: आपको को सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह सच है कि जेल से में पेशी पर आने वाले दबंग और रईस बंदियों के लिए कचहरी ऐशगाह से कम नहीं है. यहां पर बंदी कुछ रुपए का लालच देकर कोर्ट में पेशी कराने के बाद कैम्पस के बाहर घूमने चले जाते है. इसके लिए उनको हवालात प्रभारी से भी सेटिंग करनी पड़ती है जो रुपए के दम पर बहुत आसानी से हो जाती है. इसी सेटिंग और बातचीत के बीच सिपाही बंदी पर ज्यादा भरोसा कर लेते है. जिसका फायदा उठाकर बंदी सिपाही को गच्चा देकर फरार हो जाता है. पिछले साल तो दो बंदी सिपाही को शराब पिलाकर भाग गए थे. औसतन हर साल आधा दर्जन से अधिक बंदी कचहरी में भाग जाते है.

बंदी सिपाही को गच्चा देकर फरार

कचहरी में सैटरडे को पेशी पर आया एक बंदी सिपाही को गच्चा देकर फरार हो गया। पेशी के बाद सिपाही बंदी को हवालात ले जा रहा था। सिपाही को बातों में उलझाकर बंदी ने हाथ में बंधी रस्सी को धीरे से सरका दिया और भाग निकला। सिपाही चिल्लाते हुए उसके पीछे दौड़ा, लेकिन मिनटों में बंदी छू मंतर हो गया। सूचना मिलते ही कोतवाली इंस्पेक्टर हवालात पहुंचे, तो पता चला कि आरोपी सिपाही भी
गायब है। फरार बंदी की तलाश के लिए शाम तक बंदी के घर समेत कई जगह दबिश दी गई, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली।
आखिर कैसे खुल गई रस्सी?
जूही लाल कालोनी में रहने वाले गुरुचरन दीक्षित के बेटा मनोज दीक्षित को किदवईनगर पुलिस ने धोखाधड़ी और अमानत में खयानत के आरोप में गिरफ्तार किया था। वह गिरफ्तारी के बाद से जेल में है। उसकी जमानत अर्जी भी कोर्ट से खारिज हो चुकी है। सैटरडे को मनोज को एमएम-4 कोर्ट में पेशी के लिए जेल से कचहरी भेजा गया था। यहां पर उसको कांस्टेबल लालाराम सदर हवालात से कोर्ट ले गया। पेशी कराने के बाद लालाराम मनोज को वापस हवालात ले जा रहे थे। तभी वह रस्सी को सरका कर भाग गया।
मां की तबियत सुनकर परेशान
कोतवाली इंस्पेक्टर अजय राज वर्मा ने सिपाही से पूछताछ की, तो उसने बताया कि कोर्ट के बाहर मनोज से मिलने कुछ लोग आए थे। उन लोगों ने उसको मां की तबियत खराब होने के बारे में बताया था। जिसे सुनने के बाद वह परेशान हो गया था।
पेशी नहीं पिकनिक है !
आपको को सुनने में अजीब लगेगा लेकिन यह सच है कि जेल से में पेशी पर आने वाले दबंग और रईस बंदियों के लिए कचहरी ऐशगाह से कम नहीं है। यहां पर बंदी कुछ रुपए का लालच देकर कोर्ट में पेशी कराने के बाद कैम्पस के बाहर घूमने चले जाते है। इसके लिए उनको हवालात प्रभारी से भी सेटिंग करनी पड़ती है, जो रुपए के दम पर बहुत आसानी से हो जाती है। इसी सेटिंग और बातचीत के बीच सिपाही बंदी पर ज्यादा भरोसा कर लेते है। जिसका फायदा उठाकर बंदी सिपाही को गच्चा देकर फरार हो जाता है। पिछले साल तो दो बंदी सिपाही को शराब पिलाकर भाग गए थे। औसतन हर साल आधा दर्जन से अधिक बंदी कचहरी में भाग जाते है।


नहीं मानते हैं गाइलाइंस
कचहरी में पेशी पर आने वाले बंदियों की सुरक्षा के लिए पुलिस लाइन से सिपाही भेजे जाते हैं। ये बंदी को हवालात से कोर्ट ले जाते हैं। वहां से बंदी को सुरक्षित हवालात में लाना होता है, लेकिन अक्सर सिपाही कुछ रुपए और फ्री में खाने-पीने के लिए बंदी के जाल में फंस जाते हैं। बंदी सीना तान के आगे-आगे चलता है और सिपाही रस्सी पकडक़र उसको फॉलो करतो है।

तो आंखें बंद है प्रशासन की
जेल से पेशी पर आने वाले ज्यादातर बंदी कचहरी के बाहर ठेलों में खाते हुए मिल जाएंगे। पैसों से मजबूत बंदी आसपास के बड़े होटल में खाना खाने चले जाते हैं। इसके अलावा कुछ वकीलों के चेम्बर में भी बंदी के रुकने का इंतजाम होता है। कचहरी के बाहर राजकुमार छोले-भटूरे, जियालाल की फ्रूट चाट, डीएसओ दफ्तर के पास चोखा-बाटी, पाल का होटल बंदियों की पसन्द हैं। यहां पर रोज खुलेआम बंदियों को खाते-पीते देखा जा सकता है।
हर आजादी का है रेट
कचहरी में पेशी पर आने वाले बंदियों को सेशन और सदर हवालात में रखा जाता है। यहां पर मात्र 350 रुपए देने पर बंदी को जल्दी निकाल दिया जाता है और उनको आखिरी गाड़ी से जेल भेजा जाता है। इस दौरान बंदी सिपाहियों के साथ कहीं भी घूमने चले जाते हैं। वहीं, 250 रुपए में बंदी को जल्दी निकाल दिया जाता है, लेकिन वह कचहरी के बाहर नहीं जा सकता। सिपाही उसको कोर्ट के बाहर बैठाए रखते हैं। जहां पर वह दोस्तों और परिजनों से मिलते हैं, उनके साथ बैठकर खाते-पीते हैं।  
होटल में गर्लफ्रेंड के साथ पकड़ा
एक साल पहले चेतना चौराहे के पास स्थित होटल में बंदी को गर्लफ्रेंड के साथ पकड़ा गया था। छह महीने पहले कचहरी के पास ही बने बड़े होटल में ठगी के आरोपी बंदी को मीडियावालों ने रंगेहाथ परिवारवालों और दोस्तों के साथ खाते-पीते हुए देखा था।
वसूली का जरिया
कचहरी में पेशी पर आने वाले शातिर बंदी और हिस्ट्रीशीटर यहीं से वसूूली की पर्ची लोगों को भेजते हैं। इसके लिए उनके गुर्गे पेशी के दिन पहले ही वहां पहुंच जाते हैं। कोर्ट के बाहर बेंच में बैठकर शातिर मोबाइल से बात भी करते हैं और टारगेट को धमकाते भी हैं।
एक खेल और भी है
जिला जेल में सिर्फ उन्हीं बंदियों को रखा जाता है जिनके खिलाफ कोर्ट में ट्रायल चल रहा हो। सजा सुनाए जाने पर बंदी को सेंट्रल जेल फतेहगढ़ भेज दिया जाता है, बशर्ते उसके खिलाफ किसी अन्य केस में ट्रायल न चल रहा हो। काई बंदी सेंट्रल जेल नहीं जाना चाहता क्योंकि वहां पर कई तरह की परेशानियां और सख्ती भी होती है। जेल से बाहर आने को नहीं मिलता। शहर से दूर होने पर परिजन भी उनसे मिलने कम ही जा पाते हैं। साथ ही वहां पर बंदी को काम भी करना पड़ता है। इसी से बचने के लिए बंदी पूरी प्लानिंग के साथ पेशी के दौरान ही भाग जाते हैं जिससे उनके खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज हो जाती है और कोर्ट में ट्रायल चलने लगता है। इससे वो सेंट्रल जेल जाने से बच जाते है। साथ ही हर तारीख पर कोर्ट में पेशी के दौरान अपने परिजनों और दोस्तों से मिलाई कर लेते हैं।
ईयर    बंदियों के भागने की संख्या
2005    10
2006    08
2007    04
2008    07
2009    04
2010    05
2011 में सबसे ज्यादा हुए 9 दो 11
5 जनवरी       संजय शुक्ला उर्फ पप्पू,
11 फरवरी         नसीम उर्फ भूरा
8 मार्च             विपिन दीक्षित
17 मार्च            राहुल बटई
21 मई             चांद उर्फ अरमान और सुनील सैनी
23 मई             मुजाहिद उर्फ मुन्ना बदरी,
2 जून              नरेश ठाकुर और अजय शर्मा
5 अगस्त           राजकुमार उर्फ झुर्री
23 सितम्बर        कैदी सुशील श्रीवास्तव
31 अक्टूबर        सुनील गिलट
09 दिसंबर         राघव शुक्ला
जनवरी 2012      राहुल
4 अक्टूबर         विजय कुमार भदौरिया
फरवरी 2013       रघुवीर बेरिया
"कचहरी से फरार हुए बंदी की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है। शुरुआती जांच में पता चला है कि सिपाही लाला राम उसको पेशी पर कोर्ट ले गए थे। वहां से लौटते समय वह रस्सी को खोलकर भाग गया। सिपाही को हिरासत में ले लिया गया। "
अजय राज वर्मा, कोतवाली इंस्पेक्टर

Posted By: Inextlive