बड़े बड़े स्टार और बड़े बड़े नाम पिछले साल की तरह इस साल भी धराशाई हुए इस साल बहुत कम बड़ी फिल्म्स हिट हुईं। बाहुबली को हटा दें तो कोई ऐसी फिल्म नहीं थी जो बॉक्सऑफिस पे पड़े अकाल को मिटा सकें। पर इस साल मिडल पाथ सिनेमा का पौधा पेड़ बन गया और कुछ बेहतरीन फिल्म्स आई। इन फिल्म्स ने खूब रिझाया।


छोटे पैकेट, बड़े धमाकेBareilly ki Barfi :अश्विनी अय्यर तिवारी की पहली फ़िल्म (निल बटे सन्नाटा ) देख कर हर किसी को उनसे काफी आशा थी, अपनी आशाओं पर खरा उतरते हुए अश्विनी ने एक धमाकेदार फ़िल्म बनाई, और इस फ़िल्म के चर्चे पूरे साल रही, खासकर स्वीटी तेरा ड्रामा गणेश पंडालों से लेके शादियों तक हर जगह बजा।Tumhari Suluये भी इस साल की एक अविस्मरणीय फ़िल्म माननी चाहिए, शहरी जीवन और उसमें सपने देखने वाली एक गृहणी की ज़िंदगी को इतने फिनेस के साथ दिखाने वाली ये एक बेहद अनूठी फ़िल्म थी, इसीलिए शायद लोगों ने इसके साथ खूब रिलेट भी किया।इस साल बच्चों को लेकर बनीं फिल्मSecret Superstar


कुछ ने कहा कि ये 'तारे ज़मीन पे' का एक्सटेंशन फ़िल्म थी, मेरा मानना है क्यों नहीं? बच्चों की समस्याएं भी कम नहीं है, अपने मेनिपुलेटिव स्क्रीनप्ले से इसने बच्चों के सपनों की उड़ान की तरफ दर्शकों को भावुक करते हुए खींचा। फ़िल्म में ज़ायरा और माही ने शानदार अभिनय किया और दर्शकों को खूब रुलाया, इन अ गुड़ वे ऑफकोर्स।इस साल इन फिल्मों को भी सराहा गयाNewton

इस साल की ऑफिसियल ऑस्कर एंट्री भले ही ऑस्कर तक न पहंच पाई है पर यकीनन ये इस साल की सबसे उम्दा फिल्मों में से एक है। फ़िल्म हर लिहाज से और हर डिपार्टमेंट में ऑलमोस्ट परफेक्ट है।Lipstick under my Burkhaअलंकृता की फ़िल्म 'लिपस्टिक वाले सपने' ने जैसे ही अपना नया नाम लिया, देश भरके रूढ़िवादियों की तरफ से काफी तनाव झेला, निलहानी साहब ने तो इस फ़िल्म के मामले में मानो आग ही उगल दिया। फिर भी जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो जनता ने इसे खूब सराहा और ये इस साल की एक प्रॉफिटेबल फ़िल्म है।Death in the Gunjये फ़िल्म इस साल की सबसे वेल डिरेक्टेड फिल्म्स में से एक है। अगर न्यूटन न होती इस साल तो निश्चित तौर पे इस फ़िल्म को भी ऑस्कर के लिए भेजा जा सकता था। इस फ़िल्म में सभी किरदारों के परफॉरमेंस बहुत ही अच्छा था। इस फ़िल्म के सभी तकनीकी पहलू इतने स्ट्रांग थे कि ये इस साल का टेक्निकली ये इस साल की बेस्ट फ़िल्म है।

इस साल एक बात तो बहुत अच्छी हुई की रद्दी फिल्म्स सीधे रद्दी के टोकरे में चली गईं, और दर्शकों ने भी उनका खूब मज़ाक बनायामशीन : अब्बास मस्तान की फ़िल्म मशीन जो उनके युवराज मुस्तफा की लांच फ़िल्म भी थी, हंसी का पात्र बनी। इस फ़िल्म का दर्शकों और समीक्षकों ने जम कर मज़ाक उड़ाया.लाली की शादी में लड्डू दीवाना: अझेल शब्द की परिभाषा चाहिए तो ये फ़िल्म देख लीजिए, अगर पूरी फिल्म को देख लिया तो आप महान हैं।हसीना पारकर: श्रद्धा कपूर के मुँह में ठूसे हुए वड़ापाव की वजह से मुझे उनका एक भी डायलॉग समझ मे नहीं आया, ये इस साल की सबसे खराब पेरफ़ॉर्मेंस वाली फिल्म थी, और उतनी ही बड़ी फ्लॉप भी।

Posted By: Mukul Kumar