AGRA: इंसान रोटी कपड़ा और मकान के लिए जिंदगीभर जूझता ही रहता है. जिंदगीभर की कमाई में वह बस एक अदद घर की चाहत संजोए रखता है. पाई-पाई जोड़कर वह घर का सपना देखता है. हालांकि पब्लिक को घर दिलाने का थोड़ा जिम्मा तो गवर्नमेंट का भी बनता है. सिटी में उप्र आवास एवं विकास परिषद और आगरा विकास प्राधिकरण पब्लिक को नॉमिनल रेट्स घर अवेलबल कराते हैं. मगर यह बात हैरान करने वाली है कि सिटी में लगातार बढ़ती आबादी के लिए न तो एडीए ने और न ही आवास एवं विकास परिषद ने पिछले 15 साल से कोई कॉलोनी नहीं बनाई है.

नहीं है लैंड बैंक
गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स के काम का रवैया किसी से छिपा नहीं है। यहां पर न तो काम समय पर होता है और अगर हो भी जाए तो वह सिर्फ फाइलों तक ही सीमित रह जाता है। सिटी में बढ़ी हुई आबादी को छत प्रोवाइड कराने के लिए यह दोनों ही डिपार्टमेंट्स सिर्फ लकीर पीटते नजर आ रहे हैं। सोर्सेज के मुताबिक, दोनों ही डिपार्टमेंट्स के पास लैंड बैंक के नाम पर एक इंच भी जमीन नहीं है।
आबादी हुई डबल
गवर्नमेंट रिकॉर्ड के अनुसार, मौजूदा टाइम में ताज सिटी की आबादी चालीस लाख का आंकड़ा भी पार कर गई है। जबकि अगर बात 2001 के दशक की करें तो उस टाइम आबादी बीस लाख से अधिक थी। जनसंख्या में दोगुनी बढ़ोतरी के बावजूद सरकारी डिपार्टमेंट एक व्यक्ति को भी आशियाना देने की सिचुएशन में नहीं है. 
कॉलोनी तो बसेंगी ही
तेजी से बढ़ती आबादी को रहने के लिए छत मुहैया कराने के लिए जब गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स कोई कदम नहीं उठा रहा तो प्राइवेट बिल्डर्स इस मौके को खूब भूना रहे हैं। यही वजह है कि सिटी में कुकुरमुत्तों की तरह प्राइवेट कॉलोनियां बनती जा रही हैं। लोगों पर दूसरा कोई विकल्प नहीं होने की वजह से वे प्राइवेट कॉलोनियों इनवेस्ट करने के लिए मजबूर हैं। हालांकि गवर्नमेंट कंस्ट्रक्शन हर व्यक्ति की चाह होती है। प्राइवेट बिल्डर्स कॉलोनियां बनाने से पहले प्लान को पास कराने की भी जेहमत नहीं उठाते। यही वजह है कि एडीए ने सिटी में तकरीबन 300 कॉलोनियों को अवैध घोषित कर रखा है। प्राइवेट कॉलोनियों में सुविधाएं तो मिलती हैं, लेकिन हर सुविधा के लिए पब्लिक से शुल्क वसूला जाता है। फिर वह सिक्योरिटी के नाम पर हो या फिर बेसिक फैसिलिटीज के नाम पर।
कुछ तो सोचा होता 
एडीए की ओर से ताज नगरी में बनाए गए लग्जरी अपार्टमेंट्स की कोस्ट आम आदमी की पहुंच से बाहर है। लोअर क्लास की बात तो छोड़ ही दीजिए जनाब, इन अपार्टमेंट्स को अपर मीडियम क्लास भी खरीद नहीं पा रहा है। नतीजा, इस हाईक्लास स्कीम को सेल करने में एडीए का दम फूल रहा है। इस स्कीम को तैयार करने से पहले एडीए ने पब्लिक की जरूरत को कतई ध्यान में नहीं रखा। उधर, बीते कुछ सालों से आवास विकास परिषद अरतौनी में अपनी स्कीम को तैयार करने की कोशिश में लगा हुआ है। हालांकि इस स्कीम की औपचारिकता घोषणा के लिए परिषद अभी तक यहां जमीन तक नहीं ले पाया है।

एक महिला की ओर से हाईकोर्ट में मूव की गई पीआईएल पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने विकास प्राधिकरणों से अवैध कॉलोनी को लेकर रिपोर्ट तलब की है। पिटिशनर ने अपनी पीआईएल के थ्रू कहा था कि जब कॉलोनी बनाई जाती है तब भला प्राधिकरण निर्माण क्यों नहीं रोकता है, और बाद में जब वो बन ही जाती है तो उसे अपनी मान्यता देकर मूलभूत सुविधाएं क्यों नहीं देता है। इस पिटीशन के बाद हाईकोर्ट ने सभी प्राधिकरणों से इस संबंध में रिपोर्ट तलब की है.हाईकोर्ट के डायरेक्शन पर अवैध कॉलोनियों की संख्या जुटाई जा रही है। सिटी में इनकी संख्या 300 तक पहुंच चुकी है। कई और कॉलोनियों के नाम इस फेहरिस्त में जुडऩे बाकी हैं। फिलहाल, इन कॉलोनियों में रहने वाली लाखों की आबादी के आशियाने पर संकट आ घिरा है। आने वाले दिनों में उनके सपनों के आशियाने का क्या होगा? लेकिन, सवाल यह उठता है कि ये बनी क्यों और वास्तव में इनका जिम्मेदार कौन है? सिटी की बढ़ी पॉपुलेशन के रेशियो में एडीए और आवास विकास जैसी गवर्नमेंट एजेंसी के मकान के बीच की खाई का ही तो है।

कमला नगर
अलॉट संपत्तियां-3854
आवास विकास कॉलोनी
कुल अलॉट संपत्तियां- 16267

वर्जन

आवास विकास परिषद का लैंड बैंक फिलहाल निल है। यही वजह है कि अभी कोई नई स्कीम लांच नहीं हो रही है।

-वीएस कुशवाह, सहायक आवास आयुक्त

 

Posted By: Inextlive