RANCHI : जब रांची खपरैल घरों को तरस रही थी उस समय बनी यह इमारत सिटी के एजूकेशन सिस्टम में मील का पत्थर थी. यह पूरे बिहार-झारखंड का सबसे पुराना जिला स्कूल था. यही वह स्कूल था जहां या तो सामंतों के बच्चे पढ़ते थे या फिर अंग्र्रेज अफसरों के. यही वजह है कि इस स्कूल की शान निराली थी. लेकिन अपने बनने के 174 साल गुजरने पर यह अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है.


जर्जर हुआ प्रिंसिपल का आवास
कहने को तो गवर्नमेंट का भवन निर्माण विभाग इसकी मरम्मत करता है, लेकिन यह मरम्मत न जाने कैसी होती है कि इसके कैंपस में बना प्रिंसिपल का आवास ध्वस्त होने के करीब पहुंच गया है। आज इसकी हालत अगर स्कूल के पहले प्रिंसिपल देखेंगे, तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगेे।

पढ़ते थे ऑफिसर्स के बच्चे
रांची जिला स्कूल जिसे अब अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव जिला स्कूल के नाम से जाना जाता है के प्रिंसिपल देवी दयाल मंडल ने बताया कि जिला स्कूल की विरासत बेहद भव्य है। इसकी स्थापना 1839 में हुई थी और तब इसकी बिल्डिंग इतनी खूबसूरत बनी थी कि देखनेवाले देखते रह जाते थे। इस स्कूल को खास तौर से सामंतों के बच्चों के लिए बनाया गया था, इसलिए यहां या तो सामंतों के बच्चे पढ़ते थे या फिर अंग्रेज अफसरों के। उस समय यहां की शिक्षा व्यवस्था इतनी बेहतरीन थी कि यहां अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए गार्जियंस लालायित रहते थे। जिला स्कूल के वर्तमान कैंपस में हाई स्कूल था और प्रैक्टिसिंग स्कूल रांची यूनिवर्सिटी के एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग में था।

सेट थ्योरी यहीं से मिली
स्कूल के हिंदी के टीचर कृष्ण मोहन झा ने बताया कि इस स्कूल के टीचर किस कोटि के होते थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस स्कूल के मैथमेटिक्स के टीचर जीवलाल मिश्र ने गणित में सेट थ्योरी इजाद की और इसे गणित में नई अवधारणा को जन्म दिया। वे 31 जुलाई 1976 को इस स्कूल में ज्वाइन किए थे। गणित के वे प्रखर विद्वान थे। उनकी गणित में काबिलियत अतुल्य थी।

IEC से बहाल होते थे teachers
श्री मिश्र ने बताया कि इस स्कूल के टीचर्स की गुणवत्ता इसलिए बेहतरीन थी, क्योंकि यहां भारतीय शिक्षा सेवा यानि इंडियन एजूकेशन सर्विस से टीचर्स की बहाली होती थी। स्कूल के पहले प्रिंसिपल एमसी चटर्जी थे, जिन्होंने 1839 में यहां ज्वाइन किया था। उनके बाद जो दो प्रिंसिपल जिला स्कूल में हुए वे अंग्रेज अधिकारी थे और उनका नाम मिस्टर पायने और डब्ल्यू मानये था। यहां के अंतिम अंग्रेज प्रिंसिपल टी आर क्रिपलर थे, जो 1933-36 तक यहां के प्रिंसिपल रहे। उसके बाद रायबहादुर एटी घटक भी इसके प्रिंसिपल रहे। उच्च कोटि के शिक्षा अधिकारियों के प्रिंसिपल रहने की वजह से यहां शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा था। वहीं यहां के प्रिंसिपल को पावर भी बहुत थी। श्री मिश्र ने बताया कि जब रांची के डीसी या कलेक्टर कहीं छुट्टी पर जाते थे, तो यहां के प्रिंसिपल को डीसी का प्रभार दिया जाता था। जब यहां अदालत लगती,तो वे यहां बैठ कर फैसले भी सुनाया करती थे। रांची में प्राइवेट स्कूलों की स्थापना से पहले यह रांची का सर्वश्रेष्ठ स्कूल था।

Posted By: Inextlive