कानपुर। भारतीयों के लिए आज का दिन बेहद खास है क्योंकि देश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी इसी दिन पहली बार शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर से मिले थे। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर की पहली मुलाकात 6 मार्च, 1915 को हुई थी।

पहली बार पहुंचे शांतिनिकेतन लेकिन नहीं हो सकी मुलाकात

वैसे तो गांधी 1915 और 1945 के बीच आठ बार शांतिनिकेतन में गए। पहली बार वे अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ 17 फरवरी, 1915 को शांतिनिकेतन में पहुंचे थे लेकिन उस समय टैगोर कलकत्ता में थे, इसलिए उनसे मुलाक़ात नहीं हो पाई। शांतिनिकेतन में पहली बार पहुंचने के बाद गांधी ने कहा, 'आज मुझे जो ख़ुशी  हो रही है, वह मैंने पहले कभी महसूस नहीं की। हालांकि रवींद्रनाथ यहां मौजूद नहीं हैं, फिर भी हम उनकी उपस्थिति को अपने दिल में महसूस कर रहे हैं। मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि आपने भारतीय तरीके से स्वागत की व्यवस्था की है।'

छह मार्च को हुई मुलाकात
इसके बाद 6 मार्च, 1915 को महात्मा गांधी दूसरी बार शांतिनिकेतन में पहुंचे, जहां पहली बार उनकी मुलाकात रवींद्रनाथ टैगोर से हुई। इस मुलाक़ात के दौरान टैगोर और गांधी की एकसाथ बैठे हुए कई तस्वीरें ली गईं। इन दुर्लभ तस्वीरों के साथ साथ और गांधी-टैगोर द्वारा एक दूसरे को लिखे गए पत्र 100 साल के बाद विश्व-भारती द्वारा लगाई गई एक प्रदर्शनी में पहली बार दुनिया को देखने को मिले।

इसके बाद शांतिनिकेतन में शुरू हुआ अनोखा मूवमेंट
टैगोर के साथ हुई पहली मुलाकात के दौरान गांधीजी को शांतिनिकेतन के कुछ तौर तरीके पसंद नहीं आये। वह चाहते थे कि छात्र पढ़ाई के साथ-साथ अपना काम भी खुद करें, उन्हें ऐसा लगा कि बहुत सारे छोटे-छोटे कामों के लिए शांतिनिकेतन में अलग से नौकर रखने की जरुरत नहीं है। इसके बाद ही 10 मार्च, 1915 को टैगोर की सहमति से गांधीजी ने शांतिनिकेतन में सेल्फ-हेल्प (अपना काम अपने हाथ) मूवमेंट की शुरूआत की, जिसके तहत उस दिन, सभी छात्र और शिक्षक ने परिसर की सफाई खुद की और इस दिन को शांतिनिकेतन में ' गांधी पुण्याह (Gandhi Punyaha)' का नाम दिया गया।

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