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LUCKNOW : करीब एक महीने की उहापोह के बाद आखिरकार बसपा सुप्रीमो मायावती  ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन खत्म करने का आधिकारिक ऐलान कर दिया। रविवार को पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में सपा को खरी-खरी सुनाने के बाद आज मायावती ने इस बाबत मीडिया पर आई खबरों पर ट्वीट करके कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बसपा को यह सोचने को मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है। इसलिए पार्टी व मूवमेंट के हित में अब बसपा आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।

गठबंधन धर्म को निभाया

मायावती ने अपने ट्वीट में कहा कि बसपा की ऑल इंडिया बैठक संडे को कल लखनऊ में ढाई घंटे तक चली। इसके बाद राज्यवार बैठकों का दौर देर रात तक चलता रहा जिमें भी मीडिया नहीं था। फिर भी बसपा प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं, वे पूरी तरह से सही नहीं हैं जबकि इस बारे में प्रेसनोट भी जारी किया गया था। वैसे भी जगजाहिर है कि सपा के साथ सभी अपने पुराने गिले-शिकवों को भुलाने के साथ-साथ वर्ष 2012-17 में सपा सरकार के बसपा व दलित विरोधी फैसलों, प्रमोशन में आरक्षण विरुद्ध कार्यों एवं बिगड़ी कानून-व्यवस्था आदि को दरकिनार करके देश व जनहित में सपा के साथ गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाया।

पहले भी दी थी चेतावनी

ध्यान रहे कि लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बाद विगत 5 जून को मायावती ने गठबंधन खत्म करने की चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि मुझे लगेगा कि सपा प्रमुख अपने लोगों को मिशनरी बनाने में कामयाब हो जाते हैं, तो तब हम लोग जरूर आगे भी मिलकर साथ में चलेंगे। उन्होंने बसपा को मिली कम सीटों का ठीकरा सपा पर फोड़ते हुए कहा था कि चुनाव में हमें यादव वोट बैंक का फायदा नहीं मिला। सपा में भितरघात के चलते कई बड़े नेता भी अपनी सीट गवां बैठे। उन्होंने अखिलेश की नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान भी उठाया था हालांकि अखिलेश ने बसपा के अकेले उपचुनाव लडऩे के फैसले का सिर्फ वेलकम करते हुए चुप्पी साधे रखी।

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अखिलेश को सियासी शिकस्त

मायावती के इस ऐलान से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को एक बार फिर तगड़ी सियासी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। इससे पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन को लेकर भी अखिलेश पर तमाम सवाल खड़े हुए थे। वहीं लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन को लेकर खुद मुलायम और शिवपाल भी उनसे सहमत नहीं थे। तमाम विरोध के बावजूद अखिलेश ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा लेकिन इसका कोई फायदा सपा को नहीं हुआ। वहीं बसपा ने दस सीटें जीतकर दोबारा यूपी की राजनीति में अपनी पकड़ बना ली जबकि पिछले चुनाव में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। सूत्रों की मानें तो मायावती ने रविवार को बैठक में यह भी खुलासा किया कि अखिलेश ने धु्रवीकरण से बचने के लिए उनको मुसलमानों को ज्यादा टिकट न देने की सलाह दी थी। मायावती का यह बयान भी भविष्य में अखिलेश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है और मुलायम की वजह से सपा ने जो मुस्लिम वोट बैंक तैयार किया था, वह अब उससे दूर जा सकता है। फिलहाल अखिलेश यादव ने मायावती के हालिया बयान को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

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