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LUCKNOW : इतिहास गवाह है कि बसपा के साथ गठबंधन की सियासत किसी भी दल को रास नहीं आई है और इसका ताजा उदाहरण लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के बीच गठबंधन के साथ भी होता नजर आ रहा है। यूं तो सपा-बसपा के बीच हुए इस गठबंधन के भविष्य को लेकर सियासी जानकार पहले ही तरह-तरह की आशंकाएं जता रहे थे पर इसका अंत इतनी जल्दी होगा, इसका अनुमान लगा पाने में वे भी विफल साबित हुए है। सोमवार को नई दिल्ली में पार्टी पदाधिकारियों की बैठक में बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव में यादव वोट ट्रांसफर न होने और अकेले उपचुनाव लडऩे का ऐलान कर सपा को गहरा झटका दिया है। मायावती के इस बयान से साफ है कि सपा के साथ उनका सफर तकरीबन खात्मे की ओर है।

अखिलेश के लिए नया सबक

सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए मायावती का यह बयान नये सबक की तरह है हालांकि इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के साथ उनकी गलबहियां कोई नया गुल नहीं खिला पाई थी और भाजपा को यूपी में 325 सीटें हासिल हुई थी। इसके बाद विधान परिषद के चुनाव में भी बसपा उम्मीदवार की हार के बाद मायावती ने तो अखिलेश को अनुभवहीन नेता तक करार दे डाला था। वहीं यूपी की सियासत में धरतीपुत्र माने जाने वाले सपा संरक्षक मुलायम सिंह के चुनाव के दौरान गठबंधन को लेकर दिए गये बयान पर गौर किया जाए तो उन्होंने पहले ही अपनी सियासी सूझ-बूझ का परिचय दे दिया था। इतना ही नहीं, सपा से अलग हुए शिवपाल सिंह यादव भी इस गठबंधन को स्वाभाविक नहीं मान रहे थे और चुनाव के बाद दोबारा दो-फाड़ होने के संकेत देेते रहे। कहना गलत न होगा कि मायावती के इस सियासी पैतरे को भांपकर ही कांग्रेस ने गठबंधन से दूरी बनाए रखी, भले ही उसे यूपी में गहरे नुकसान का सामना करना पड़ा। यूपी की सियासत में कुछ दशक पहले की बात करें तो मायावती ने पहले भी सपा के साथ गठबंधन किया था जिसका परिणाम स्टेट गेस्ट हाउस कांड के रूप में सामने आया जिससे दोनों दलों के बीच करीब 25 साल तक दुश्मनी की दीवार खिंच गयी। इसके बाद मायावती ने भाजपा के साथ भी गठबंधन किया पर ये भी लंबे समय तक नहंी टिक सका और मायावती ने भाजपा के तमाम कद्दावर नेताओं को अपने पाले में करके सरकार बना ली।

अखिलेश फिर पड़े अकेले

लोकसभा चुनाव में पहले की करारी शिकस्त से परेशान सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब अकेले पड़ चुके हैं। जिस गठबंधन को लेकर उन्होंने तमाम सपने संजोए थे, वे अब परवान चढऩा मुश्किल नजर आता है। मायावती द्वारा करीब दस साल बाद उपचुनाव लडऩे का ऐलान भी उनकी मुश्किलें बढ़ाने वाला है, क्योंकि गाहे-बेगाहे गठबंधन के नाम पर सपा को मिलने वाला मुस्लिम वोट बैंक भी उनसे छिटक चुका है और उसने यूपी में कांग्रेस को कमजोर जानकर बसपा में संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। सूबे में इस नये सियासी घटनाक्रम के बाद सबकी नजरें एक बार फिर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव पर टिक गयी हैं जो सपा को फिर से जिंदा करने का माद्दा रखते है। अब देखना यह है कि मायावती के इस सियासी दांव का अखिलेश किस तरह मुकाबला करते हैं।

फैक्ट मीटर

- 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ किया गठबंधन

- 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा और रालोद का पकड़ा साथ

- 03 लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को मिली थी सफलता

- 10 सीटें पाकर बसपा लोकसभा चुनाव में जीतीं तो सपा को मिली सिर्फ पांच सीटें

- 38 सीटों पर बसपा तो 37 सीटों पर सपा ने चुनाव में उतारे थे अपने प्रत्याशी

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