कहानी :
सरगम सिंगल मदर है, एक खोली में अपने बच्चे के साथ रहती है। अपना जीवन पाल रही है, कमी है तो घर में एक टॉयलेट की, क्योंकि सुविधाओं का अभाव है, हुआ होगा कहीं विकास, यहां शहर के बीच के स्लम में नहीं पहुंचा, रहा होगा कोई कारण। इसी का फायदा उठा कर सरगम का रेप हो जाता है, तब छोटा सा बच्चा कन्हैया पूछता है 'प्रधानमंत्री' को। अब क्या किया जाए कि उसकी माँ और उसके जैसी औरतों की अस्मिता पर बनी रहे। अर्जी भी है, माँ के लिए टॉयलट बनाना है, मदद कर दो ना।

रेटिंग : 4 STAR

mere pyare prime minister मूवी रिव्‍यू : छोटे बच्‍चे की हिम्‍मत ने निकाला सरकार का दम

समीक्षा :
सोसियो पोलिटिकल सब्जेक्ट्स में राकेश ओमप्रकाश मेहरा की खासी रुचि है, चाहे वो रंग दे बसंती हो (जो कि आज भी प्रासंगिक है), दिल्ली 6 हो या ये छोटी सी फिल्म। इस फिल्म का स्केल चाहे कितना भी छोटा हो इसकी मेसेजिंग बहुत ही क्लियर है। फिल्म 'कथित' विकास का आइना दिखती है, वही आईना जो दिल्ली 6 में साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक था, इस फिल्म में भी जगह पाता है। ये आईना कन्हैया अपनी माँ के लिए अपने हाथ से बनाये हुए टॉयलेट में लगाता है। फिल्म और भी कई टॉपिक्स जो सैनिटेशन से रिलेटेड है उनसे भी डील करती है। फिल्म का डायरेक्शन बहुत ही कंपोज्ड है और फिल्म की राइटिंग सिंपल और टू द पॉइंट है, फिल्म इधर उधर की बातों में ज़्यादा वक़्त बर्बाद किये बिना अपनी कहानी तन्मयता के साथ सुनाती है। एडिटिंग बढ़िया है। म्यूजिक बढ़िया है।

 

एक्टिंग :
सभी बच्चों ने अपनी उम्र से बढ़ कर काम किया है। अंजली पाटिल का काम हमेशा की तरह शानदार है, अतुल कुलकर्णी छोटे से रोल में फिट होते हैं। मकरंद देशपांडे और नीतीश वाढवा का काम भी काबिल ए तारीफ है।

मैंने ये फिल्म हाल में अकेले देखी, क्योंकि इसमें कड़वा सच है जो राजनेताओं और सोशलाइट समाज पर जहर की तरह असर करता इसीलिए शायद इसके ट्रेलर को किसी पॉलिटिकल पार्टी ने ट्वीट नहीं किया, आप अगर एक सच्ची अच्छी फिल्म देखने के मूड में हों तो ज़रूर देखिए 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर'।

Review by : Yohaann Bhaargava

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