पर्सपेक्टिव पर डिपेंडेंट है कहानी
बहुत साल पहले हृषिकेश मुखर्जी ने एक फ़िल्म बनाई थी, जिसका नाम था नौकरी। राज कपूर और राजेश खन्ना अभिनीत ये फ़िल्म एक सिम्पल फ़िल्म थी जो अपनी अनूठी कहानी के ज़रिए डिसिशन या आपके लिए हुए फैसले के दो पहलू दर्शाती थी, 1978 की इस फ़िल्म में बेरोज़गार रोनू अपनि मुसीबतों से तंग आकर आत्महत्या करने का फैसला लेता है और फिर एक इलूज़न के माध्यम से उसे अपने लिये हुए फैसले के परिणाम दिखाई देते हैं, क्या वो अपना फैसला बदलता है या अपने फैसले पे अडिग रहता है या कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करता है यही इस फ़िल्म का क्लाइमेक्स था।

नौकरी की तरह मानसून शूट आउट भी पर्सपेक्टिव को मेन थीम बना कर चलती है।

समीक्षा : प्लॉट या पर्सपेक्टिव

पुलिस वाले आदि का अंतर्द्वंद, कि वो सस्पेक्ट पर गोली चलाये या न चलाये, ये है इस फ़िल्म की थींम।

 



मानसून शूटआउट टेक्निकली एक बढ़िया फ़िल्म है, और टेक्निकली एक खराब फ़िल्म भी , ये फ़िल्म आपको कैसी लगेगी वो इस फ़िल्म की स्टोरी टेलिंग की तरह एक पर्सपेक्टिव है, और आपके मूवी देखने के आउटलुक पे डिपेंड करता है, इसलिए मैं इस फ़िल्म की समीक्षा न करके आपको अपना पर्सपेक्टिव दे सकता हूँ। मानसून शूटआउट एक बढ़िया कांसेप्ट है, हालांकि इसकी थीम एक हॉलीवुड फिल्म से लिफ्ट की हुई जान पड़ती है, फिर भी इसकी लुक एंड फील इंडियन है, ये फ़िल्म मात खा जाती है अपनी कंफ्यूसिंग स्टोरी टेलिंग की वजह से, दर्शक एक समय पर आकर समझ नहीं पाता कि आखिर हो क्या रहा है, एक तरफ एक मार्मिक कहानी है तो दूसरी तरफ एक थ्रिलर है, और दोनों ही ओवरलैप करने लगते है, कहीं कहीं पे ये फ़िल्म आपको रमन राघव 2.0 की याद दिलाती है। फ़िल्म के टेक्निकल डिपार्टमेंट बढ़िया हैं, फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी, पार्श्वसंगीत और फ़िल्म के आर्ट डिपार्टमेंट के काम भी अच्छा है। अमित का निर्देशन अबव एवरेज है।

अदाकारी :

विजय वर्मा आदि के रोल में ठीक ठाक लगे हैं, कहीं कहीं वो थोड़ा नर्वस और नवाज़ के साथ वाले सीन्स में उनसे थोड़े इंतिमिडटेड से लगे। नवाज़ बेहद बढ़िया तरीके से अपने रोल में फिट होते हैं, तनिष्ठा चटर्जी का काम भी बढ़िया है।

कुल मिलाकर इस तरह के स्टोरी ट्रीटमेंट के कद्रदान अभी भारत में कम हैं, और वो भी अगर बेहतर तरीके से किया जाता तो ये एक लैंडमार्क फ़िल्म हो सकती थी, पर फ़िल्म कहीं लॉस्ट सी हो जाती है, प्लाट और पर्सपेक्टिव के बीच में। फिर भी ये फ़िल्म एक अलग किस्म का एक्सपीरियंस है थ्रिलर पसंद करने वाली जनता के लिए, इसलिए आप अगर चाहें तो ये फ़िल्म देखने जा सकते हैं।

रेटिंग : ***

Yohaann Bhargava
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